मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की आवधारणा की व्याख्या कीजिये।

मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की आवधारणा – ऐतिहासिक भौतिकवाद से भिन्न द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद एक ऐसी सोच या समझ है। जिसे वास्तव में मार्क्सवाद का दर्शन कहना चाहिए। मार्क्सवादी विज्ञान को हम द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद में देख सकते हैं। यदि उद्गम की दृष्टि से देखा जाय तो मार्क्स का द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद दो विचारधाराओं से बना है। पहली विचारधारा यांत्रिक भौतिकवाद है। यह यांत्रिकता वैज्ञानिक क्रांति के परिणामस्वरूप पैदा हुई थी। दूसरी विचारधारा हीगेल के आदर्शवादी द्वन्द्व की है। इस तरह मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद में जहाँ पूँजीवादी दर्शन है जो यांत्रिक भौतिकवाद है वही आदर्शवाद भी है।

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मार्क्स एक तरफ पूंजीवाद को नकारते हैं और दूसरी ओर तत्व मीमासा को अस्वीकार करते हैं। मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का जो केन्द्रीय सिद्धान्त है, वह सब तरह से वैज्ञानिक है। यह द्वन्द्व प्रकृति, समाज और विचारधारा सभी में समान रूप में देखने को मिलता है। द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के दर्शन के सिद्धान्त को मार्क्स इतिहास पर लागू करते हैं।

उन्होंने द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद में दृढ़तापूर्वक कहा है कि विचार और पदार्थ दोनों जुदा-जुदा है। यदि गहराई से देखा जाये तो ये दोनों केवल जुदा ही नहीं, परस्पर विरोधी भी है। लेकिन जब विचार और पदार्थ को उनकी एकता के रूप में देखते हैं तो पदार्थ एक बुनियादी तत्व है। यह प्राथमिक है। मस्तिष्क या विचार के अभाव में भी पदार्थ का अस्तित्व भी है।

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