मार्क्स के ‘अतिरिक्त मूल्य’ सिद्धान्त लिखिए।

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मार्क्स के ‘अतिरिक्त मूल्य’ सिद्धान्त – मार्क्स ने अपनी पुस्तक ‘Das Capital’ में इस सिद्धान्त का जिक्र किया है। उसके अनुसार प्रत्येक वस्तु का वास्तविक मूल्य, उस पर खर्च किये गये केवल श्रम के अनुसार होता है, किन्तु बाजार में वह वस्तु काफी ऊंचे मूल्य पर बेची जाती है और उसके बेचने से प्राप्त होने वाला अतिरिक्त धन पूँजीपति द्वारा अपने पास रख लिया जाता है। मार्क्स का कथन है कि पूँजीपति द्वारा रखा गया धन ही ‘अतिरिक्त मूल्य’ है। स्वयं मार्क्स के शब्दों में “यह उन दो मूल्यों का अन्तर है, जिसे मजदूर पैदा करता है और इससे वह वास्तव में पाता है।” दूसरे शब्दों में यह वह मूल्य है जिसे पूँजीपति मजदूर के श्रम से प्राप्त करता है जिसके लिये उसने मजदूर को कोई मूल्य नहीं चुकाया।

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मार्क्स के अनुसार लाखों मजदूरों के श्रम के मूल्य की चोरी से पूँजीपति की पूँजी में दिन दूनी रात चौगुनी की वृद्धि होती है। इससे एक ओर मजदूर वर्ग की हालत दयनीय होती जाती है और वर्ग संघर्ष के तीव्र होने की सम्भावना रहती है।

कुछ आलोचकों ने इस सिद्धान्त की आलोचना करते हुए कहा है कि श्रम, उत्पादन का एकमात्र साधन नहीं है तथा यह सिद्धान्त अस्पष्ट और अतिरंजित है। इसमें मानसिक श्रम की उपेक्षा की गयी है, जिसे वर्तमान समय में बौद्धिक सम्पत्ति कहा जाता है।

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