मानवाधिकार शिक्षा
मानवाधिकार, शिक्षा एवं शिक्षण उन मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए जो UN के आधारों पर आधारित हों। मानवाधिकारों की विश्वस्तरीय घोषणा, मानवाधिकारों के अन्तर्राष्ट्रीय संयोजक एवं अन्य अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों के माध्यम इसलिये समस्त मानवाधिकारों की अभिभाज्यता जैसे कि न्यायिक एवं राजनैतिक अधिकार, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा वैयक्तिक एवं सामूहिक अधिकार पर गुरुत्व देने की आवश्यकता है।
मानवाधिकार शिक्षा के लक्ष्य एवं शिक्षण
मानवाधिकार शिक्षा एवं शिक्षण के लक्ष्य –
- मानवाधिकारों में धैर्य, सम्मान, सुदृढ़ता बढ़ाना।
- राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण से तथा मानवाधिकार यंत्रण हेतु संस्थापित संस्थाओं को मानवाधिकार संबन्धित ज्ञान प्रदान करना।
- राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों की सामाजिक एवं राजनैतिक सच्चाई का अनुवाद करने हेतु माध्यमों का विकास करना एवं व्यक्तिगत जाग्रति लाना।
- मानवाधिकारों का शिक्षण सभी स्तरों के शिक्षण संस्थाओं, गैर शिक्षण संस्थाओं, जैसे पारवारिक, निरन्तर शैक्षिक कार्यक्रम, साक्षरता अभियान एवं पूर्ण साक्षरता अभियान में होना चाहिए।
- मानवाधिकार सम्बन्धित मनोवृत्ति एवं मूल्यबोध का विकास करना महत्वपूर्ण है। इसलिये न्याय एवं शान्ति के प्रति वचनबद्धता, आत्म-सम्मान तथा दूसरों का सम्मान आदि को। प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
मानवाधिकार शिक्षण पाठ्यक्रम
मानवाधिकार संबंधित विश्व स्तरीय सम्मेलन मानवाधिकार, मानवाधिकार कानून, प्रजातांत्रिक कानून के राज, को सभी अधिगम संस्थाओं में औपचारिक एवं अण अनुष्ठानिक दृष्टिकोण से लागू करने का प्रोत्साहन देते हैं। मानवाधिकार शिक्षा शान्ति, प्रजातंत्र, सामाजिक न्याय, विकास जो कि राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार के यन्त्र है, को साधारण बूझामण एवं जागरूकता लाने के दृष्टिकोण से मानवाधिकार के प्रति वचनबद्धता लाती है। मानवाधिकार शिक्षण और प्रजातन्त्र वह विश्व योजना है जो 1993 में मानवाधिकार शिक्षण प्रजातन्त्र की विश्व – कांग्रेस UNESCO की और अन्य मानवाधिकार यन्त्र, मानवाधिकर विश्व सम्मलेन के माध्यम से। राज्यों को मिश्रित योजनाएँ एवं कार्यक्रम बनाने हेतु प्रोत्साहित करता है जिससे कि विस्तृत मानवाधिकार शिक्षा और महिला मानवाधिकारों का लोक प्रचार किया जा सके।
विद्यालय पाठ्यक्रम के पाठ्यक्रम में मानवाधिकार शिक्षण पृष्ठभूमि के तौर पर निम्नलिखित विषय मानवाधिकार शिक्षण के पाठ्यक्रम में शामिल हैं –
- विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान
- अंग्रेजी एवं अन्य भाषाएँ
- नैतिक मूल्य शिक्षा
- सह-पाठ्य कार्यक्रम
- कला एवं स्कल्पचर
- मानवाधिकार प्रकटीकरण एवं दृष्यमान
- मानवाधिकार के आयाम और हिंसा।
मानवाधिकार संबन्धित पाठ्य पुस्तक
- पाठ्यक्रम में निम्नलिखित सूचियाँ अन्तर्मुक्त होनी चाहिए (क) मानवाधिकार घोषणाएँ एवं क्रियाओं को प्रस्तुत करना।
- मानवाधिकार गठन संबन्धित जानकारी एवं मानवाधिकार विश्व व्यापकता को विकसित करना।
- नागरिक के दायित्व एवं मानवाधिकार की समीक्षा प्रदर्शित करना।
- मानवाधिकारों की रक्षा करने वाले संगठन एवं अनुष्ठानों की जानकारी देना।।
- मानवाधिकार उल्लंघन के अन्तर्राष्ट्रीय आयाम विस्तृत करना।
- “दूसरों के अधिकार” नामक एगो (Topics) को मान्यता देना।
मानवाधिकार शिक्षा के लिए क्रियाएँ
- औपचारिक शिक्षा (Formal Teaching) – पाठ्यक्रम में मानवाधिकार का अध्ययन अनिवार्य बनाया जाना चाहिए।
- विवेचन (Discussion) एवं वाद-विवाद (Debates) मानवाधिकार संबन्धित तर्क-वितर्क तथा भिन्न-भिन्न दलीय आलोचना साप्ताहिक, मासिक एवं वार्षिक मानवाधिकार दिवस पर कार्यक्रम होने चाहिए।
- नाटक एवं अभिनय क्रम (Drama and Role Playing ) व्यक्तियों के बीच मानवाधिकार की चेतना जगाने हेतु भिन्न-भिन्न नाटक एवं अभिनय कार्यक्रम सभी स्तरों पर प्रविष्ट किये जायें।
- समस्या समाधान विधियाँ (Problem solving methods) – छात्रों में भिन्न भिन्न प्रश्नावली आधारित ज्ञान, चिन्ता धारा, कौशल एवं चिन्तन विकसित करें।
- कार्यशालाएँ (Workshop) एवं सेमिनार्स (Seminars) संस्थाओं के द्वारा भिन्न-भिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम, विशेषज्ञों की अनुमति महासभा के द्वारा प्रदान की जाये।
- विश्लेषणात्मक विधियाँ (Analytical Method) छात्रों को आत्म मूल्यांकन के माध्यम से तत्व एवं व्यवहारिक ज्ञान में तुलनात्मक अध्ययन करें।
- सम्मिलित विधियाँ ( Participative Method) प्रारंम्भिक शिक्षा तथा सेवा के समय सार्वजनिक चेतना उत्पन्न की जानी चाहिए। इसमें बच्चों, वयस्कों एवं अन्य वर्गों को शिक्षा देकर, मानवाधिकार क्या है? उनके सतत् संरक्षण के लिये जो कुछ उपेक्षित है, का ज्ञान प्रदान किया जाना चाहिए।
परिवार की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
शिक्षक की भूमिका
- विद्यालयों के वातावरण एवं अनुबन्धन का साधारण अधिगम एवं उसका विकास।
- पाठ्यक्रम, पुस्तक, विधियों, प्रायोगिक उपकरण तथा विषयसूची का पूर्ण ज्ञान।
- शिक्षकों का व्यवहार प्रजातांत्रिक होना चाहिए।
- शिक्षकों का दृष्टिकोण समस्त छात्रों के प्रति समान होना चाहिए।
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