मानव के मूल अधिकार
मानव के मूल अधिकार अन्य देशों की तरह भारत के नागरिकों के मूल अधिकारों की भी अपनी कुछ निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –
(1) न्यायालय को संरक्षक माना गया है
अमरीकी संविधान नागरिकों के मूल अधिकारों का संरक्षक न्यायालय को घोषित करता है। परन्तु न्यायालय की भूमिका नकारात्मक है अतः जब किसी के अधिकारों का हनन हो चुका होता है, तभी उसकी प्रार्थना पर न्यायालय क्षतिपूर्ति के रूप में हनन करने वाले से कुछ रकम दिलवा सकता है।
(2) उदारवादी स्वरूप-
अमरीकी संविधान पर मांटेस्क्यू के शक्ति पृथक्करण तथा लॉक के उदारवादी विचारों का भारी असर था, हकीकत में वही मूल अधिकार-पत्र में भी देखने को मिलता है। वहाँ हरेक व्यक्ति को आत्मचेतना के अनुसार राज्य के बिना हस्तक्षेप किये हुए कार्य करने अथवा आचरण करने की छूट है। आज भी अमेरिकी सरकार अहस्तक्षेप की नीति की समर्थक है।
(3) अधिकार निरपेक्ष नहीं है
भारतीय संविधान की भाँति इन अधिकारों पर सार्वजनिक हित में रोक लगाई जा सकती हैं। इस मामले में न्यायाधीशों को यह अधिकार दिया गया है कि कार्यपालिका द्वारा लगाई गई रोक उचित भी है अथवा नहीं, इसकी जाँच करें। सरकार सार्वजनिक सुरक्षा, जन स्वास्थ्य, नैतिकता तथा समाज कल्याण के नाम पर कभी भी प्रतिबन्ध लगा सकती है। मूल अधिकार
परिवार की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
(4) अधिकारों की अस्पष्टता
अमरीकी संविधान में नागरिकों के अधिकारों को इतना स्पष्ट नहीं किया गया है जितना भारतीय संविधान में नागरिकों के मूल अधिकार स्पष्ट किये। गये हैं। वहाँ न्यायालय ही कानून की ठीक से प्रक्रिया की धारा के अन्तर्गत निर्णय करता है कि क्या वास्तव में किसी नागरिक के अधिकारों को समाप्त किया गया है।
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