माध्यमिक शिक्षा की अवधारणा एवं उद्देश्य की विवेचना कीजिए।

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माध्यमिक शिक्षा की अवधारणा

माध्यमिक शिक्षा का अभिप्राय है-मध्य की शिक्षा अर्थात् माध्यमिक शिक्षा प्राथमिक और उच्च शिक्षा के मध्य की शिक्षा है। अंग्रेजी में इसके लिए सेकण्डरी शब्द का प्रयोग किया जाता है। जिसका अर्थ है सेकण्डरी शिक्षा, प्राइमरी और हायर सेकण्डरी के बीच में दी जाने वाली शिक्षा। आज किसी भी देश में माध्यमिक शिक्षा प्राथमिक और उच्च शिक्षा के बीच की कही है, यह अपने में पूर्ण इकाई है तथा इसमें बच्चों के निर्माण की शिक्षा दी जाती है परन्तु यह शिक्षा बच्चों की किस आयु से किस आयु तक चले और इसकी क्या पाठ्यचर्या हो, इस सम्बन्ध में विभिन्न देशों के विभिन्न मत हैं।

हमारे देश में प्राचीन और मध्यकाल में शिक्षा केवल दो भागों में विभक्त थी- प्राथमिक और उच्च शिक्षा इस देश में माध्यमिक शिक्षा का श्रीगणेश आधुनिक युग में ईसाई मिशनरियों द्वारा किया गया। किन्तु यह माध्यमिक शिक्षा आज की माध्यमिक शिक्षा से अलग थी। भारत में आधुनिक माध्यमिक शिक्षा का स्वरूप निश्चित करने में सबसे बड़ी भूमिका वुद्ध के घोषणा पत्र, 1854 की रही। उसमें माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य और पाठ्यक्रम निश्चित किए गए। 1882 में ब्रिटेन सरकार ने भारतीय शिक्षा आयोग का गठन किया। इस आयोग द्वारा माध्यमिक शिक्षा को दो भागों में विभक्त करने का सुझाव दिया।

  • (अ) साहित्यिक और
  • (ब) व्यावसायिक

किन्तु उस समय देश की परिस्थितियाँ कुछ ऐसी थीं कि अंग्रेजों के शासनकाल में माध्यमिक शिक्षा का स्वरूप साहित्यिक ही रहा।

माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य

सन् 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तो शिक्षा के इस महत्त्वपूर्ण स्तर के लिए उद्देश्यों को पुनस्थापित करने की आवश्यकता हुई, क्योंकि स्वतंत्र भारत में नये समाज का निर्माण व बालकों का विकास करना था। इसके सुधार के लिए माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन किया गया। आयोग ने माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्यों के सम्बन्ध में विचार-विमर्श के दौरान कहा था कि नागरिकों की आदतों, प्रवृत्तियों और चारित्रिक गुणों के विकास में शिक्षा का सहयोग प्रदान करना चाहिए जिससे व प्रजातांत्रिक नागरिकता के उत्तरदायित्वों का निर्वाह कर सकें और उन ध्वंसात्मक प्रवृत्तियों का विरोध कर सकें, जो राष्ट्रीय विकस के पथ में बाधा पैदा करती हैं। आयोग ने शिक्षा के द्वारा छात्रों में चारित्रिक गुणों का विकास राष्ट्रीय धर्म-निरपेक्षता की प्रगति और देश की उत्पादन की शक्ति में वृद्धि की अनिवार्यता को ध्यान में रखकर माध्यमिक शिक्षा के चार उद्देश्य तय किये हैं, जो निम्न प्रकार है

  1. छात्रों के व्यक्तित्व का चहुँमुखी विकास करना।
  2. छात्रों में व्यावसायिकता को विकसित करना।
  3. छात्रों में लोकतांत्रिक नागरिकता को विकसित करना। करना।
  4. छात्रों को भविष्य में नेतृत्व के लिए तैयार करना।

कोठारी आयोग ने भी माध्यमिक शिक्षा के निम्न चार उद्देश्य निर्धारित किये हैं

  1. शिक्षा के माध्यम से छात्रों में सामाजिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक गुणों का विकास
  2. शिक्षा के माध्यम से राष्ट्रीय एवं सामाजिक एकता में वृद्धि करना ।
  3. शिक्षा के माध्यम से आधुनिकीकरण की गति को तेज करना ।
  4. शिक्षा को उत्पादकता से संयुक्त कर आर्थिक विकास में वृद्धि करना ।

कोठारी आयोग और माध्यमिक शिक्षा आयोग द्वारा सुझाये गये उद्देश्यों को ध्यान में रखकर माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्यों को निम्न प्रकार भी व्यक्त किया गया है

प्राथमिक शिक्षा के महत्त्व एवं आवश्यकता का वर्णन कीजिए।

  1. छात्रों में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मूल्यों को विकसित करना और उन्हें तदनुकूल आचरण की ओर प्रवृत्त करना, उनका भौतिक और चारित्रिक विकास करना ।
  2. छात्रों को अपने स्वास्थ्य को देखभाल करने और उसमें विकास करने में प्रशिक्षित करना।
  3. छात्रों को संसार के प्रमुख धर्मों की सामान्य जानकारी करना एवं उनके अन्तर्गत _धार्मिक सहिष्णुता को विकसित करना।
  4. छात्रों को अपने राष्ट्रीय लक्ष्यों पर्यावरण संरक्षण और जनसंख्या वृद्धि नियंत्रण के लिए जागरुक बनाना एवं उनमें वैज्ञानिक प्रवृत्ति; राष्ट्रीय एकता एवं अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास करना ।
  5. छात्रों को लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के सिद्धांतों से अवगत कराना तथा जनतंत्रीय जीवन प्रणाली में प्रशिक्षित करना।
  6. सामान्य छात्रों को उनकी रुचि, योग्यता और आवश्यकता के अनुसार किसी व्यावसायिक कार्य में कुशल बनाना और प्रतिभाशाली, योग्य, सक्षम छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए तैयार करना।
  7. छात्रों का समाजीकरण करना, उन्हें आवश्यक सामाजिक बदलाव लाने के लिए तैयार करना।
  8. छात्रों को भिन्न-भिन्न प्रकार के विषयों का ज्ञान प्रदान करना तथा उन्हें सोचने विचारने, निर्णय लेने में कुशलता हासिल करना।

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