माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952-53) की मुख्य सिफारिशें क्या थी?

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माध्यमिक शिक्षा आयोग की सिफारिशें

केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की सिफारिश को स्वीकार कर भारत सरकार द्वारा 23 सितम्बर, 1952 को माध्यमिक शिक्षा आयोग की नियुक्ति की गयी। यह आयोग मुदालियर कमीशन के नाम से भी जाना जाता है।

माध्यमिक शिक्षा उद्देश्य भारतीय माध्यमिक शिक्षा का वर्तमान रूप उस ब्रिटिश शिक्षा व्यवस्था की देन है जिसकी आधारशिला सन् 1854 में वुड के घोषणा पत्र के द्वारा रखी गयी थी। तब से लेकर अब तक माध्यमिक शिक्षा के स्वरूप में अनेक छोटे-बड़े परिवर्तन आये हैं। परन्तु मूल रूप से इसकी प्रवृत्ति वही बनी रही है। माध्यमिक शिक्षा की अवधि में अनेक बार संकुचन तथा विस्तार हुए हैं। वर्तमान समय में भी माध्यमिक शिक्षा विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न है। मुदालियर आयोग (1952-53) ने शिक्षा के द्वारा चारित्रिक गुणों के विकास राष्ट्रीयता व

धर्मनिरपेक्षता की प्रगति तथा राष्ट्र की उत्पादन शक्ति में वृद्धि की आवश्यकता को ध्यान में रखकर माध्यमिक शिक्षा के चार प्रमुख उद्देश्य बताये जो कि निम्नवत् हैं

  1. प्रजातान्त्रिक नागरिकता का विकास करना।
  2. व्यावसायिक कुशलता का विकास करना।
  3. व्यक्तित्व का विकास करना।
  4. शिक्षा के द्वारा आध्यात्मिक, सामाजिक तथा नैतिक विकास करना।

अतः उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि माध्यमिक शिक्षा का उद्देश्य छात्रों का सर्वांगीण विकास करके राष्ट्रीय विकास व एकीकरण को सुनिश्चित करना है। माध्यमिक शिक्षा सामान्य शिक्षा का अन्तिम सोपान होने के कारण जहाँ एक और शिक्षा के द्वार खोलती है यहाँ दूसरी ओर रोजगार व जीवन यापन के क्षेत्र के लिए भी तैयार कराती है।

माध्यमिक शिक्षा पाठ्यक्रम अपने शैशवकाल से ही आलोचना का एक प्रमुख विषय रहा है। ब्रिटिश शासकों के द्वारा अपने निहित राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए बनाये गये पाठ्यक्रम को थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ अभी भी माध्यमिक कक्षाओं में पढ़ाया जा रहा है। माध्यमिक शिक्षा का वर्तमान पाठ्यक्रम संकुचित, एकांगी, पुस्तकीय, सैद्धान्तिक, अनुपयोगी तथा अव्यावहारिक होने के साथ-साथ परीक्षा केन्द्रित भी है। इस पाठ्यक्रम की सहायता से माध्यमिक शिक्षा उद्देश्यों की प्राप्ति सम्भव प्रतीत नहीं होती है।

मुदालियर आयोग (1952-53) ने माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम को अनुभवों की समा (Totality of Experience) विविधता व लोचनीयता (Variety for Flexibility ) समुदाय केन्द्रिता (Community Centred) अवकाशोपयोगी (Useful for Liessuru), जैसे सिद्धान्तों के आधार पर तैयार करने का सुझाव दिया था। इसी क्रम में कोठारी आयोग का विचार था कि ज्ञान के विस्तार तथा भौतिक शास्त्र, जीव विज्ञान व समाजशास्त्र के बदले प्रत्ययों को देखते हुए स्कूल पाठ्यक्रम में व्यापक परिवर्तन लाना आवश्यक है।

  1. सामान्य शिक्षा धारा (General Education Spectrum)
  2. व्यावसायिक शिक्षा धारा (Vocational Education Spectrum)

सन् 1985 में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं परीक्षण परिषद ने समानता, राष्ट्रीय पहचान, वैज्ञानिक स्वभाव, कला व सृजनशीलता, ज्ञानं की वृद्धि व अनुगमन राष्ट्रीय तकनीकी कार्यव शिक्षा का परस्पर सम्बन्ध मूल्य शिक्षा तथा वातावरण संसाधन व जनसंख्या जैसे सामाजिक सांस्कृतिक कारकों एवं छात्र राष्ट्रीय पाठ्यक्रम तैयार किया गया था। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम इस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

संविधान द्वारा मौलिक अधिकारों के परीक्षण की विवेचना कीजिए।

संक्षेप में आयोग ने माध्यमिक शिक्षा के पुनर्गठन के लिए सर्वप्रथम नवीन उद्देश्यों का सुझाव दिया जो इस प्रकार है

  1. लोकतन्त्रात्मक नागरिकता का विकास।
  2. व्यावसायिक दक्षता का विकास।
  3. व्यक्तित्व का विकास।
  4. नेतृत्व के लिए शिक्षा।

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