लोकरीतियों की अवधारणा
लोकरीतियाँ / जनरीतियाँ (Folkways) जनरीतियाँ अपेक्षाकृत स्थायी व्यवहार हैं, जिनका पालन करना एक परिस्थिति में अत्यावश्यक माना जाता है। मेरिल एवं एलरिज के शब्दों में, ” शाब्दिक अर्थ में जनरीतियाँ जनता की रीतियाँ हैं या सामाजिक आदतें हैं, जोकि समूह द्वारा अपेक्षित है और दैनिक जीवन में व्यवहार के फलतः विकसित हुयी है। यह दैनिक जीवन के व्यवहार के ऐसे मानदण्ड है, जो अनियोजित या बिना किसी तार्किक विचार के ही सामान्यतः समूह में अचेतन रूप में उत्पन्न हो जाते हैं।
जनरीतियों चुंकि उस समाज द्वारा बनाई जाती है। जिसमें व्यक्ति रहता है, अतः उनके प्रति आदर की भावना होना स्वाभाविक है। जनरीतियों की अवहेलना करने का अर्थ समाज की अवहेलना करना है और कोई भी व्यक्ति समाज की अवहेलना करके समाज में नहीं रह सकता है। व्यक्ति जनरीतियों का पालन कर्तव्य की भावना से प्रेरित होकर करता है। समनर (Sumner) ने जनरीतियों को इतना अधिक महत्व दिया है कि वह अपनी पुस्तक ‘फोकवेज’ (Folkways) में जनरीतियों को सामाजिक सम्बन्धों का आधार मानता है। प्रत्येक समाज में जनरीतियाँ कुछ सामाजिक मानदण्ड निर्धारित करती हैं, जो कि समाज के सदस्यों के लिए व्यवहार प्रतिमान निश्चित करते हैं।
उदाहरण के लिए, अभिवादन करना, गलती को सुधारते हुए ‘सॉरी‘ शब्द का प्रयोग करना, सहायता करने वाले को ‘थैंक्स‘ देना व खाँसी अथवा छींक आ जाने पर ‘एक्सक्यूज ‘मी’ अथवा ‘सॉरी’ शब्दों का प्रयोग करना समाज की एक श्रेणी के कुछ सर्वव्यापी मानदण्ड है। जनरीतियों का निर्माण व्यवहार में परिमार्जित होकर किया जाता है। समाज में व्यवहार के विरूद्ध किसी व्यक्ति पर कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती। वह तो समाज के उपहास का पात्र ही बनता है, समाज के सदस्यों द्वारा उनकी निन्दा भी की जाती है। अतः वह सामाजिक निन्दा के भय से ही जनरीतियों का पालन करता है।
जनरीतियों से निर्धारित सामाजिक मानदण्ड परम्परागत होते हैं, क्योंकि वे व्यवहार के वांछित प्रकार होते हैं, जो ‘काफी’ समय पही से ‘ऐसे’ ही चले आये हैं। जनरीतियाँ अनियोजित होती है, उनका निर्माण योजनाबद्ध तरीकों से नहीं होता। वे तो अनुभव द्वारा अपेक्षित व्यवहार हैं, अतः जैसे-जैसे नए मानदण्डों की आवश्यकता पड़ती है, वैसे-वैसे ही जनरीतियों के रूप में बदलते रहते हैं। चूँकि जनरीतियाँ प्रकार्यात्मक (Functional) हैं, अतः उनके द्वारा बने हुए मानदण्डों की समाज में कुछ न कुछ उपयोगिता अवश्य रहती है। वे किसी न किसी आवश्यकता की पूर्ति अवश्य करती है। जनरीतियाँ ‘समाज में आचरण करने की मान्यता प्राप्त व स्वीकृत पद्धतियाँ हैं। इसलिए वे जिन सामाजिक मानदण्डों का निर्माण करती है, समाज के सभी सदस्यों द्वारा उनका पालन किया जाता है तथा व्यवहार की एकरूपता बनी रहती है। जनरीतियों द्वारा व्यक्ति अपने समाज में आसानी से व्यवहार करना सीख लेता है। जनररीतियों के आधार पर हम मानव व्यवहार का सही अनुमान कर सकते हैं
सूचनाओं के लिए प्रमाणीकृत विधियों क्या है?
जनरीतियों की प्रकृति स्थायी इसलिए भी होती है कि व सामान्यतः बिना किसी परिवर्तन के पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित होती रहती हैं यों तो जनरीतियों में बहुत कम परिवर्तन होता है, फिर भी वे समनर के शब्दों में अपने ‘सुधार के लिए संघर्ष’ (Strain of Improvement) करती रहती हैं। अनेक जनरीतियाँ तो बालक अनुकरण द्वारा ही सीख लेता है, जैसे- दाँये हाथ से लिखना, दाँये हाँथ से खाना व हर जगह न थूक देना, आदि ।
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