लैंगिक समानता के विकास में शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिये।

लैंगिक समानता के विकास में शिक्षा की भूमिका – किसी भी समाज की उन्नति शिक्षा के बिना असम्भव है। हमारे समाज में नारियों का शिक्षित होना नितान्त आवश्यक है। यदि नारी शिक्षित नहीं होगी तो वह परिवार उन्नति नहीं कर सकता। समाज की कुरीतियों, अन्धविश्वासों एवं अन्य सामाजिक बुराइयों के वातावरण में अशिक्षित नारी हीनता का पात्र बनी रहेगी। नारी शिक्षा की सार्थकता इसमें है कि वह स्वयं रुचि लेकर विद्याध्ययन करें, घर पर अपने बच्चों को भी पढ़ाये एवं गृहस्थी के कार्यों को भी सुचारु रूप से संचालित करे। प्रत्येक नारी का साक्षर एवं सुशिक्षित होना आवश्यक है, यदि वह अनपढ़ या निरक्षर रहेगी तो समाज के अनेक कार्यों में अपना योगदान नहीं दे सकेगी।

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अतः बालिका शिक्षा की अनिवार्यता परिवार, समाज, राष्ट्र की उन्नति एवं गृहस्थी के जीवन को आनन्ददायक बनाने में है। प्रत्येक परिवार में नारी. यदि सुशिक्षित होगी तो वह परिवार सफल परिवार कहलायेगा। बच्चों का लालन-पोषण भी सही ढंग से हो सकेगा तथा उनका सर्वांगीण विकास भी हो सकेगा। बालिका शिक्षा का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग उनकी स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा है। शरीर से सबल होने पर भी बालिकाएँ उच्च शिक्षा एवं उत्कृष्ट भावनाओं को अधिक योग्यता के साथ ग्रहण कर सकेंगी, जिसके द्वारा न्याय की ओर उनकी प्राकृतिक प्रवृत्ति दृढ़ होगी, अपने आचरण को अधिक प्रवल बनायेंगी तभी आदर्श माता, आदर्श पत्नी, आदर्श अध्यापिका एवं आदर्श समाज सेविका के रूप में देश के निर्माण में सहायक हो सकेंगी। नारी ही अपनी कोख से जनम देकर बच्चों का पालन पोषण करके राष्ट्र के लिये राष्ट्रभक्त एवं चरित्रवान् राजनेता, महान् वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, इन्जीनियर, वकील एवं न्यायाधीशों का निर्माण करती हैं। अतः इस प्रकार हम निश्चित रूप से यह कह सकते हैं कि नारी का शिक्षित होना परमावश्यक है। यदि नारी शिक्षित नहीं होगी तो राष्ट्र एवं समाज के भावी कर्णधारों के निर्माण में अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न हो जायेगी। राष्ट्र एवं समाज के विकास एवं उन्नति के लिये नारी का शिक्षित होना आवश्यक है।

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