कुषाण कौन थे? कृषाणों के आरम्भिक इतिहास का विस्तृत वर्णन कीजिए।

कुषाण कौन थे? चीन के पश्चिमोत्तर प्रान्त में यू पी जति निवास करती थी। द्वितीय शताब्दी है. मंगोलिया में हियगनु (हण) जाति ने यू-ची जाति को पराजित करके मंगोलिया से खदेड़ दिया।

यू-ची भागकर जैक्जार्टीज (सरदरिया) आए, जहाँ शक रहते थे। शकों क111111 यूचियों ने भगा दिया, जिन्होंने जाकर बैक्ट्रिया में पनाह ली। उस समय इन खानाबदोश जातियों में बराबर संघर्ष चल रहा था। यू-ची के पुराने शत्रु वू-सून थे। यू-सून और हिबगनु (हूण) ने मिलकर फिर यू ची पर आक्रमण कर दिया और उनको इस नए स्थान से निकाल बाहर किया।

नवीन प्रदेश की खोज में इस जाति को अनेक शाखाओं में विभक्त हो जाना पड़ा। प्रथम शाखा नानशान थी जो पहाड़ी स्थानों पर जाकर बस गई और इसे सिआओं सूची कहा जाने लगा। यूची जाति की एक दूसरी शाखा जिसका नाम तायूची था, ये आक्सस नदी को पार करके ताहिया प्रदेश पहुँचे और रेया के प्रदेश में जाकर बस गए। ताहिया के निवासी युद्ध वृत्ति के नहीं थे। व्यापार उनका मुख्य व्यवसाय था। तायूची शाखा ने वहाँ के शकों को परास्त करके सर्व प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया और उनसे अपनी अधीनता स्वीकार करा ली। इसके पश्चात् यूचियों ने बैक्ट्रिया और साक्डियाना भी जीत लिया और वहाँ से शकों को निकाल बाहर किया। बैक्ट्रिया पुनः एक नवीन शक्ति की जननी हुई। यू-ची यहाँ लगभग सौ वर्ष रहे होंगे। तान्यूची

जाति का विस्तार अधिक हो जाने के कारण से यह राज्य पाँच शाखाओं में विभक्त हो गया। यू-ची जाति में पाँच अलग अलग शासक (युवन) थे

  1. हिमक (जिसका तात्पर्य वाकहान से है)
  2. चाऊ-आंग (मीर जो चितरान प्रदेश में स्थित था)
  3. कोई चाऊ-आंग (जिसे गान्धार माना गया और यही प्राचीन भारत में कुषाण के नाम से विख्यात हुआ)
  4. हीतुन (इसका तात्पर्य परवान से है)
  5. ताऊ-मी (यह काबुल के आस-पास स्थित था)

25-82 ई. की अवधि के बीच में दो महत्वपूर्ण बातें हुई पहली यह कि एक शाखा के शासक ने अन्य चार शाखाओं पर अधिकार स्थापित कर लिया और वैक्ट्रिया पर अपना राज्य स्थापित कर लिया। यहीं शाखा कुषाण के नाम से प्रसिद्ध है। कुषाणों ने कालान्तर में हिन्दुकुश पर्वत पार करके दक्षिणी अफगानिस्तान, काबुल और कन्धार पर भी अधिकार प्राप्त कर लिया और पहव राज्य का अन्त कर दिया। कुषाणों का प्रथम राजा कुजुलकैडफीसेस था। इस समय कन्धार क्षेत्र में गाण्डोफर्नीज या उसके उत्तराधिकारियों का राज्य था।

दूसरी बात यह है कि बैक्ट्रिया पहुँच कर कुषाण सभ्य राज्यों के संपर्क में आए। यवन, पल्लव और रोम की संस्कृति का उन पर प्रभाव पड़ा जिसके फलस्वरूप उनके जीवन की गतिविधियों ही बदल गई। कुषाण मंगोलियन नहीं थे। उनकी उत्पत्ति आर्य जाति से थी। यह गौर वर्ण के थे। सभ्य जातियों के सम्पर्क में आकर उन्होंने शीघ्र ही सभ्यता ग्रहण कर ली।

कुजुल कैडफिसेस (25-50 ई.)

कुलकैडफिसेस के सिक्कों में महारज रजित रजस कयुल कफस की उपाधि है जिससे विदित होता है कि वह सम्राट था। कुषाण वंश का प्रथम शक्तिशाली एवं महत्वपूर्ण शासक कुलकैडफिसेस था। इसने अपने राज्य को अधिक शक्तिशाली बनाने का प्रयास किया। सर्वप्रथम उसने पार्थिया को परास्त करके अपने राज्य में मिला लिया था। उसने दक्षिणी अफगानिस्तान, काबुल, कन्धार, किपिन और पार्थिया का कुछ भाग जीता। गान्धार के आखिरी ग्रीक राजा हम्युज (Hatmacus) को पराजित किया और यवन शक और पल्लवों को परास्त किया। इसका साम्राज्य आवसम नदी से लेकर सिन्ध नदी तक विस्तृत था जिसमें बैक्ट्रिया, अफगानिस्तान, ईरान का पूर्वी भाग तथा भारत के उत्तरी और पश्चिमी सीमा प्रान्त स्थित थे। रोम के सम्राट से उसकी मित्रता थीं। इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी। मुद्राओं से विदित होता है कि कुजुल कैडफिसेस बौद्ध धर्मावलम्बी था।

विम कैडफिसेस या कैडफिसेस द्वितीय (50-78 ई.)

कुषाण वंश का दूसरा शक्तिशाली सम्राट विम कैडफिसेस ही था। विम कैडफिसेस, कुजुलकैडफिसेस का पुत्र था जो पिता की मृत्यु के पश्चात् सिंहासनारूढ़ हुआ था। डॉ. रमाशंकर त्रिपाठी का कथन है कि “उसके सिक्कों के सुविस्तृत प्रचलन और महाराजा राजाधिराज जनाधिप ऐसे उसके समुन्नत विरुदों से प्रमाणित होता है, कि उसका अधिकार सिन्धु नदी के पूर्व पंजाब और सम्भवतः संयुक्त प्रान्त के ऊपर भी था। उसने अपने पिता द्वारा छोड़े गए साम्राज्य का विस्तार किया। भारत में उसने पूरा पंजाब, कश्मीर, सिन्ध तथा वर्तमान उत्तर प्रदेश का पश्चिमी भाग विजित कर लिया और इनके शासन के लिए क्षत्रप नियुक्त किए। अपने भारतीय प्रान्तों का वह प्रतिनिधि शासक द्वारा शासन करता था। ताँबे के वे सिक्के जो साधारणतः ‘नामरहित’ राजा के बताए जाते हैं और जो उत्तर भारत के अनेक भागों में आमतौर से पाए जाते हैं, इसी शासक के चलाए कहे जाते हैं।

उसने चीनी साम्राज्य पर भी आक्रमण किया, परन्तु पराजित होकर उसे कर देना पड़ा। दक्षिण में उसके राज्य की सीमा सातवाहन साम्राज्य से और पश्चिम में रोम साम्राज्य से मिलती थी। वह शैव था। उसके सिक्कों पर शैव चिन्ह है और महाराज माहेश्वर अर्थात् राजाओं के राजा आदि की पदवी है। कैडफिसेज द्वितीय एवं उसके कुल दोनों की धर्म में निष्ठा थी। वह बौद्ध धर्म के प्रति उदार थे। उसके समय काश्यप और धर्मरत्न दो बौद्ध भिक्षु धर्म के प्रचार के लिए चीन गए। उसके राज्य निर्माण के फलस्वरूप चीन और रोम में व्यापार के लिए उत्तर पश्चिम के मार्ग खुल गए।

मौखर कौन थे? संक्षेप में बताइए

यह एक शक्तिशाली सम्राट था। इसके सिक्के पंजाब, मथुरा, गान्धार, लद्दाख आदि से प्राप्त हुए हैं। इससे विदित होता है कि इसका राज्य बहुत दूर तक विस्तृत था। डॉ. राय चौधरी के अनुसार- “कैडफिसेस राजाओं की विजय ने चीन और रोमन साम्राज्य तथा भारत के मध्य व्यापार के मार्ग को खोल दिया। रोम का सोना इस देश में प्रमृत परिमाण में आने लगा जो सिल्क, मसाले तया रत्नों के मूल्य में था।”

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