कृषि अर्थव्यवस्था का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

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कृषि अर्थव्यवस्था – आर्थिक विकास की प्रक्रिया में कृषि अर्थव्यवस्था को दूसरे चरण के रूप में देखा जाता है। विभिन्न मानव समूहों ने जब एक स्थान पर स्थायी रूप से रहकर कृषि को ही अपनी आजीविका और आर्थिक क्रियाओं का मुख्य साधन बना लिया, तब कृषि अर्थव्यवस्था का आरम्भ हुआ। इस अर्थव्यवस्था में भूमि, पशु तथा खेती के काम आने वाले उपकरण मनुष्य की प्रमुख सम्पत्ति बन गये। आरम्भ में भूमि पर व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों तरह के स्वामित्व का प्रचलन रहा लेकिन जब कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों ने कृषि भूमि के महत्व को समझना शुरू किया तो उन्होंने भूमि के बड़े-बड़े भागों पर अपना अधिकार करना आरम्भ कर दिया। भूमि के यह बड़े-बड़े मालिक ही ‘सामन्त’ कहलाने लगे।

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अपनी आर्थिक और राजनैतिक शक्ति के प्रभाव से यह उन व्यक्तियों से अनाज रुपया और उपहार प्राप्त करने लगे जो उनकी भूमि पर किसान के रूप में कार्य करते थे। इसके बाद भी कृषि अर्थव्यवस्था में कृषि उत्पादन का महत्व बढ़ जाने के कारण बहुत-से व्यक्ति इतना उत्पादन करने लगे जो उनके उपभोग की आवश्यकता से कहीं अधिक था।

इसके फलस्वरूप अतिरिक्त फसल को बाजार में बेंचकर उससे लाभ प्राप्त करने की प्रवृत्ति बढ़ने लगी। इसी दशा ने स्थायी बाजारों के निर्माण को प्रोत्साहन दिया जहां से व्यक्ति अपनी आवश्यकता की अन्य वस्तुएं प्राप्त कर सकता था।

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