कृषक समाज से आप क्या समझते हैं?

कृषक समाज की परिभाषा – ‘कृषक समाज’ को ही ‘ग्रामीण समाज’ कहा जाता है। विभिन्न विद्वानों ने कृषक समाज की विभिन्न परिभाषायें दी हैं, जो इस प्रकार हैं- रेमण्डफर्थ के अनुसार, “लघु उत्पादों का समाज जो कि अपने निर्वाह के लिए कृषि करता है, उसे कृषक समाज कहा जा सकता है।”

रेडफील्ड के अनुसार, “कृषक समाज में उन लोगों को शामिल किया जाना चाहिए, जिनमें दो लक्षण विद्यमान होते है पहला यह कि कृषि उनकी आजीविका का एकमात्र साधन एवं जीवन विधि हो और दूसरा यह कि लाभ के लिए व्यापार उनकी वृत्ति न हो।”

रेडफील्ड का मानना है कि ऐसे कृषक जो भूमि को पूंजी समझते हैं और व्यापार के लिए खेती करते हैं, वे कृषक नहीं अपितु भूतिपति कहलाते हैं। यहां रेडफील्ड ने कृषक की कल्पना ऐसे व्यक्ति के रूप में की है जो भूमि में एक भाग का स्वामी है और जो उस भूमि के साथ परम्परा और भावना के आधार पर घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है। वह अपनी उपज को नगर के बाजारों में सीधा बेचता है। यहां यह आवश्यक नहीं है कि कृषक उस भूमि का मालिक ही हो, वह आसामी के रूप में भी कृषक हो सकता है, यदि उस भूमि पर वह अपनी पम्परागत जीवन विधि से रह सके, किन्तु यह ध्यान रखना चाहिए कि भूमि उसके व्यापार का साधन न हो।

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हेरेल्ड एम. ई. पीके के अनुसार, “ग्रामीण समाज, परस्पर सम्बन्धित व्यक्तियों का वह समूह है, जो एक कंटुम्ब से अधिक विस्तृत है और जो कभी नियमित कभी अनियमित रूप से निकटवर्ती परों या गली में रहते हैं। ये व्यक्ति कृषि योग्य भूमि को आपस में बांटकर बंजर भूमि को चराने में प्रयोग करते हैं तथा निकटवर्ती सीमाओं तक अपने समुदाय के अधिकार का दावा करते हैं।”

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