किण्डरगार्टन पद्धति
किण्डरगार्टन पद्धति फ्रीडिक विलियम अगस्त फ्रोबेल – 21 अप्रैल, 1782 17 जून, 1852 जर्मनी के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री थे। वे पेस्टालॉजी के शिष्य थे। उन्होंने किंडर गार्टन (बालवाड़ी) की संकल्पना दी। उन्होंने शैक्षणिक खिलौनों का विकास किया जिन्हें फ्रोबेल उपहार के नाम से जाना जाता है।
किण्डरगार्टन का अर्थ :
यह जर्मन भाषा का शब्द है जो दो शब्दों Kinder तथा Garten से मिलकर बना है। जिसका क्रमशः अर्थ है- बालक तथा बागीख। इस प्रकार किण्डरगार्टन का अर्थ है-बच्चों का बागीचा
शिक्षा जगत में फ्रोबेल का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बालक को पौधे से तुलना करके, फ्रोबेल ने बालक के स्वविकास की बात कही वह पहला व्यक्ति था, जिसने प्राथमिक स्कूलों के अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध आवाज उठाई और एक नई शिक्षण विधि का प्रतिपादन किया। उसने आत्मक्रिया स्वतंत्रता, सामाजिकता तथा खेल के माध्यम से स्कूलों की नीरसता को समाप्त किया। संसार में फ्रोबेल ही पहला व्यक्ति था जिसने अल्पायु बालकों की शिक्षा के लिए एक व्यावहारिक योजना प्रस्तुत की। उसने शिक्षकों के लिए कहा कि वे बालक की आन्तरिक शक्तियों के विकास में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करें, बल्कि प्रेम एवं सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करते हुए बालकों को पूरी स्वतंत्रता दें शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार का परिवर्तन लाने के लिए फ्रोबेल को हमेशा याद किया जायेगा।
फ्रोबेल के शैक्षिक विचार :-
छोटे बालकों को शिक्षा देने के लिए नई शिक्षण विधि का प्रतिपादन सर्वप्रथम फ्रोबेल ने किया। फ्रोबेल का मानना था कि बालकों के अंदर विभिन्न सद्गुण होते हैं। हमें उन सद्गुणों का विकास करना चाहिए ताकि वह चरित्रवान बनकर राष्ट्र के • कार्यों में सफलतापूर्वक भाग ले सकें।
फ्रोबेल का विश्वास था कि जैसे एक बीज में सम्पूर्ण वृक्ष छिपा रहता है, उसी प्रकार प्रत्येक बालक में एक पूर्ण व्यक्ति छिपा रहता है अर्थात् बालक में अपने पूर्व विकास की सम्भावनायें निहित होती है। इसलिए शिक्षा का यह दायित्व है कि बालक को ऐसा स्वाभाविक वातावरण प्रदान करे, जिससे बालक अपनी आन्तरिक शक्तियों का पूर्ण विकास स्वयं कर सके। फ्रोबेल का कहना है कि जिस प्रकार उपयुक्त वातावरण मिलने पर एक बीज बढ़कर पेड़ बना जाता है, उसी प्रकार उपयुक्त वातावरण मिलने पर बालक भी पूर्ण व्यक्ति बन जाता है।
फ्रोबेल ने बालक को पौधा, स्कूल को बाग तथा शिक्षक को माली की संज्ञा देते हुए कहा है कि विद्यालय एक बाग है, जिसमें बालक रूपी पौधा शिक्षक माली की देख-रेख में अपने आन्तरिक नियमों के अनुसार स्वाभाविक रूप से विकसित होता रहता है। माली की भाँति शिक्षक का कार्य अनुकूल वातावरण प्रस्तुत करना है, जिससे बालक का स्वाभाविक विकास हो सके।
शिक्षा का उद्देश्य
फ्रोबेल का विचार है कि संसार की समस्त वस्तुओं में विभिन्नता होते हुए भी एकता निहित है। ये सभी वस्तुएँ अपने आन्तरिक नियमों के अनुसार विकसित होती हुई उस एकता (ईश्वर) की ओर जा रही है। अतः शिक्षा द्वारा व्यक्ति को इस योग्य बनाया जाय कि वह इस विभिन्नता में एकता का दर्शन कर सके। फ्रोबेल का यह भी विचार है कि बालक की शिक्षा में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करके उसके स्वाभाविक विकास हेतु पूर्ण अवसर देना चाहिए। ताकि अपने आपको, प्रकृति को तथा ईश्वरीय शक्ति को पहचान सके।
संक्षेप में फ्रोबेल के अनुसार शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य होने चाहिये
- बालक के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करना।
- बालक का वातावरण एवं प्रकृति से एकीकरण स्थापित करना।
- बालक के उत्तम चरित्र का निर्माण करना।
- बालक का अध्यात्मिक विकास करना।
पाठ्यक्रम
फ्रोबेल ने पाठ्यक्रम निर्माण के कुछ सिद्धांत बताये है; जो निम्न प्रकार हैं
- पाठ्यक्रम बालक की आवश्यकताओं के अनुसार होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम के विषयों में परस्पर एकता स्थापित होनी चाहिए।
- पाठ्यक्रम क्रिया पर आधारित होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम में प्रकृति को महत्त्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए।
- पाठ्यक्रम में धार्मिक विचारों को भी स्थान मिलना चाहिए।
उपयुक्त सिद्धांतों को ध्यान में रखकर फ्रोबेल ने पाठ्यक्रम में प्रकृति अध्ययन, धार्मिक निर्देशन, हस्त व्यवसाय, गणित, भाषा एवं कला आदि विषयों को प्रमुख रूप से रखा। उसने इस बात पर बल दिया कि पाठ्यक्रम के सभी विषयों में एकता का सम्बन्ध अवश्य होना चाहिए। क्योंकि यदि पाठ्यक्रम के विषयों में एकता का सम्बन्ध नहीं होगा, तो शिक्षा के उद्देश्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। किण्डरगार्टन
शिक्षण विधि
फ्रोबेल ने अपनी शिक्षण विधि को निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित किया है
आत्मक्रिया का सिद्धांत-
फ्रोबेल बालक को व्यक्तिगत का विकास करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने आत्मक्रिया के सिद्धांत पर बल दिया। आत्मक्रिया से फ्रोबेल का तात्पर्य उस क्रिया से था, जिसे बालक अपने आप तथा अपनी रुचि के अनुकूल स्वतंत्र वातावरण में करके सीखता है। फ्रोबेल ने बताया कि आत्मक्रिया द्वारा बालक परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करता है। और वातावरण को अपने अनुकूल बनाता है। इसलिए बालक की शिक्षा आत्म क्रिया द्वारा अर्थात् उसको करके सीखने देना चाहिये।
खेल द्वारा शिक्षा का सिद्धांत-
फ्रोबेल पहला शिक्षाशास्त्री था, जिसने खेल द्वारा शिक्षा देने की बात कही। इसका कारण उसने यह बताया कि बालक खेल में अधिक रुचि लेता है। फ्रोबेल के अनुसार बालक की आत्म-क्रिया खेल द्वारा विकसित होती है। इसलिए बालक को खेल द्वारा सिखाया जाना चाहिए, ताकि बालक के व्यक्तित्व का विकास स्वाभाविक रूप से हो सके।
स्वतंत्रता का सिद्धांत-
फ्रोबेल के अनुसार स्वतंत्र रूप से कार्य करने में बालक का विकास होता है और हस्तक्षेप करने या बाधा डालने से उसका विकास अवरुद्ध हो जाता है। इसलिए उसने इस बात पर बल दिया कि शिक्षक को बालक के सीखने में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, बल्कि वह केवल एक सक्रिय निरीक्षक के रूप में कार्य करे।
सामाजिकता का सिद्धांत-
व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। समाज से अलग व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है। इसलिए फ्रोबेल ने सामूहिक खेलों एवं सामूहिक कार्यों पर बल दिया, जिससे बालकों में खेलते-खेलते परस्पर प्रेम, सहानुभूति, सामूहिक सहयोग आदि सामाजिक गुणों का विकास सरलतापूर्वक हो सके।
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अनुशासन-
फ्रोबेल ने दमनात्मक अनुशासन का विरोध किया और कहा कि आत्मानुशासन या स्वानुशासन ही सबसे अच्छा अनुशासन होता है। इसलिए बालकों को आत्म-क्रिया करने की पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। जिससे बालक में स्वयं में ही अनुशासन में रहने की आदत पड़ जाय। फ्रोबेल के अनुसार बालक के साथ प्रेम व सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए तथा उन्हें आत्म- क्रिया करने का पूर्ण अवसर प्रदान करना चाहिये।
शिक्षक-
फ्रोबेल के अनुसार शिक्षक को एक निर्देशक, मित्र एवं पथ-प्रदर्शक होना चाहिए। उसने शिक्षक की तुलना उस माली से की है, जो उद्यान के पौधों के विकास में मदद करता है। जिस तरह शिक्षक के निर्देशन में बालक का विकास होता है। फ्रोबेल का विचार है कि शिक्षक को बालक के कार्यों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। बल्कि उसका कार्य सिर्फ बालक के कार्यों का निरीक्षण करना है और उसके विकास हेतु उपर्युक्त वातावरण प्रदान करना है।
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