खिलजी के शासनकाल में विद्रोह क्यों हुए और अलाउद्दीन ने उसके निराकरण के लिए क्या उपाये किये।

खिलजी के शासनकाल में विद्रोह – सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल के आरम्भ में अनेक विद्रोह हुए उनमें से एक दो विद्रोह ऐसे भी हुए जिन्होंने अलाउद्दीन खिलजी के जीवन को संकट में डाल दिया तथा जिनके द्वारा सुल्तान में परिवर्तन करने का प्रयत्न किया गया। 1266 ई. में गुजरात पर आक्रमण किया। उसकी सफलता के पश्चात जब नसरत खां वापस आ रहा था तो लूट के धन के वितरण पर नवीन मुसलमान (मंगोल जो इस्लाम धर्म में परिवर्तित हो गये थे) असंतुष्ट हो गये और उन्होंने अचानक विद्रोह करके अलाउद्दीन के एक भतीजे और नसरत खाँ के भाई का वध कर दिया। नसरत खां ने विद्रोह को दबा दिया। बहुत से विद्रोही मारे गये परन्तु कुछ भागकर हम्मीरदेव अथवा कुछ रायकरन की शरण में चले गये। अलाउद्दीन और नसरत खां ने विद्रोहियों के बच्चों और उनकी पत्नियों को (जो दिल्ली में थे) अपमानित किया और उनका वध कर दिया।

दूसरा विद्रोह अलाउद्दीन के मृतक भाई मुहम्मद के पुत्र और राज्य के वकीलदार अवत खां ने किया। जब अलाउद्दीन खिलजी रणथम्भौर के अभियान के लिए जा रहा था। तब वह मार्ग में शिकार के लिए रुका। जब वह अपने कुछ ही सैनिकों के साथ था। तब अकत खां ने अचानक अपने मंगोल मुसलमानों को लेकर उस पर तीर बरसाने आरम्भ कर दिये सुल्तान में अपनी कुर्सी को ढाल बनाकर अपनी रक्षा की परन्तु शीघ्र ही मुर्छित होकर गिर गया। उसके पैदल सैनिक उसके चारों तरफ घेरा बनाकर खड़े हो गये और उन्होंने कह दिया कि सुल्तान मर गया है। अकत खां ने सुल्तान को मृतक समझकर देर करना ठीक नहीं समझा और खेमें में पहुंचकर अपने को सुल्तान घोषित कर दिया। कुछ सरदारों ने उसे सुल्तान मान भी लिया।

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परन्तु जब उसने सुल्तान के ‘हरम’ (जनानखाने) में प्रवेश करने का प्रयत्न किया तो हरम के रक्षक मलिक दीनार और उसके सैनिकों ने उसे रोक दिया। इतने समय में अलाउद्दीन होश में आ गया तथा अपने सैनिकों को लेकर खेमे में पहुंच गया। सुल्तान को जीवित देखकर अकत खां भाग खड़ा हुआ। उसका पीछा किया गया तथा उसका सिर काटकर सुल्तान के सम्मुख प्रस्तुत किया गया। सुल्तान ने उसके छोटे भाई तथा अन्य समर्थकों का भी वध कर दिया। तीसरा विद्रोह अलाउद्दीन की एक बहन के पुत्रों ने किया। उनमें से एक मलिक उमर बदायूँ का और दूसरा मंगू खां अवध का सूबेदार था। जब अलाउद्दीन खिलजी रणथम्भौर के घेरे में व्यस्त था तब उन्होंने विद्रोह किया

परन्तु वे सफल न हुए और सुल्तान के प्रति वफादार सरदारों ने उन्हें परास्त कर कैद कर लिया। उनको सुल्तान के सामने लाया गया और उसके आदेश से उनका वध कर दिया गया। चौथा विद्रोह दिल्ली में हाजी मोला ने किया हाजी मौला पुराने कोतवाल फखरूदीन का सेवक र था। उस समय तक अलाउद्दीन के पहले कोतवाल अला-उल-मुल्क की मृत्यु हो चुकी थी और उसने याद तिर्मिजी और सिरी में अयाज को कोतवाल नियुक्त किया था। जब अलाउदीन रणथम्भौर के किले के घेरे में व्यस्त था तब हाजी मौला ने कोतवाली निर्मिजी को धोखे से वध कर दिया और कोतवाल अयाज का वध करने का असफल प्रयत्न किया। उसने सुल्तान महल पर अधिकार कर लिया और इल्तुमिश की पुत्री के एक वंशज शहंशाह को सुल्तान घोषित कर दिया। परन्तु अलाउद्दीन का एक वफादार सरदार हमीदुद्दीन इस विद्रोह को समाप्त करने में सफल रहा था। हाजी मौला, शाहंशाह और उनके समर्थकों को मार डाला। के लाल

विद्रोह के कारण

यद्यपि उक्त विद्रोह असफल रहे परन्तु इतने जल्दी-जल्दी विद्रोहों के होने के कारण अलाउद्दीन ने उनके मूल कारणों को खोजने का प्रयत्न किया। रणथम्भौर के घेरे के समय उसने अपने विश्वास पात्र सरदारों से उनके बारे में सलाह ली और अंत में इस निर्णय पर पहुंचा कि विद्रोहों के मुख्यता चार कारण हैं

  1. सुल्तान अपनी प्रजा और राज्याधिकारियों के अच्छे अथवा बुरे कार्यों से अनभिज्ञ रहता है।
  2. शराब पीना और शराब की दावतें करना, जिसके कारण विभिन्न व्यक्ति एक-दूसरे के निकट आते हैं तथा उन्हें षडयंत्र अथवा विद्रोह के लिए प्रेरणा मिलती है।
  3. सरदारों के पारस्परिक, सामाजिक और वैवाहिक सम्बन्ध जिसके कारण वे एकदूसरे के निकट हो जाते हैं और उन्हें संगठित होने का अवसर मिलता है।
  4. व्यक्तियों के पास सम्पत्ति का संचित होना, जिसके कारण उन्हें विद्रोह और षडयंत्र करने के लिए शक्ति तथा समय मिल जाता है।

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समाधान (निराकरण)

विद्रोहों के कारणों को समझकर अलाउद्दीन ने दिल्ली आकर उनको समाप्त करने के लिए निम्नलिखित चार अध्यादेश जारी किये।

(i) एक अध्यादेश द्वारा दान की गयी भूमि, उपहार, पेंशन आदि व्यक्ति से छीन ली गयी और सरकारी अधिकारियों की सभी व्यक्तियों से अधिकाधिक कर और धन लेने के आदेश दिये गये। इस आदेश से यह लाभ हुआ की व्यक्तियों के पास धन नहीं रह गया और उनका ध्यान व समय मुख्यता जीविका कमाने में लग गया। बरनी ने लिखा है कि दिल्ली में केवल मलिक, अमीर, राज्य कर्मचारी, हिन्दू मुलानी व्यापारी और सेठों के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के पास सोना न रहा।

(ii) दूसरे अध्यादेश के द्वारा अलाउद्दीन ने एक अच्छे गुप्तचर विभाग का संगठन किया। ‘बरीद’ (गुप्तचर अफसर) और ‘मुनहिस’ (गुप्तचर) अमीरों के घरों, दफ्तरों, प्रान्तीय राजधानियों और बाजारों में नियुक्त किये गये, जो सुल्तान को प्रत्येक बात की घटना की सूचना देते थे। अलाउद्दीन का गुप्तचर विभाग इतना सफल हुआ कि बड़े से बड़े सरदार भी उससे आतंकित हो गये और परस्पर बातचीत करने में भी डरने लगे।

(iii) तीसरे अध्यादेश के द्वारा अलाउद्दीन ने शराब और माँस जैसे मादक द्रव्यों का प्रयोग तथा जुआ खेलना बंद करा दिया। दिल्ली में शराब पीना बिल्कुल समाप्त कर दिया गया और सुल्तान स्वयं शराब पीना छोड़कर अपनी शराब और शराब के पात्रों को जनता के सामने फिकवा दिया। इस कानून को तोड़ने वाले को कठोर दण्ड दिया जाता था। जिसके कारण शराब पीने वाले दिल्ली के 20 या 25 मील दूर जाकर ही शराब पी सकते थे। परन्तु बाद में इस कार्य को असम्भव समझकर अलाउद्दीन ने इस नियम में कुछ परिवर्तन कर दिया। व्यक्तियों को अपने घरों में शराब पीने और बनाने की आज्ञा दे दी गयी परन्तु वे सार्वजनिक रूप से न शराब बना सकते थे, न उसे पी सकते थे और न शराब की दावतें कर सकते थे। अलाउद्दीन से लक्ष्य की पूर्ति के लिए यह पर्याप्त था।

(iv) चौथे अध्यादेश के द्वारा अलाउद्दीन ने अमीरों एवं सरदारों की दावतों, पारस्परिक मेल-जोल और विवाह सम्बन्धों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। सुल्तान की आज्ञा के बिना वे आपस में विवाह संबंध नहीं कर सकते थे, आपस में मिलजुल नहीं सकते थे, न एक-दूसरे की दावत कर सकते थे और न जनता के निकट सम्पर्क में आ सकते थे। अलाउद्दीन ने पुराने सरदारों को समाप्त कर दिया था और अपने नवीन सरदारों को इतना भयभीत कर दिया था कि वे सुल्तान ही नहीं

अपितु सुल्तान के अधिकारी के आदेश का पालन भी तत्परता से करते थे। सुल्तान के उपर्युक्त अध्यादेश अपने उद्देश्य की पूर्ति में पूर्ण सफल हुए। जब तक अलाउद्दीन खिलजी शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से दुर्बल नहीं हुआ तब तक उसके राज्य में विद्रोह नहीं हुए और शासन में सरदारों का प्रभाव का भी अंत हो गया।

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