कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र – कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र भारतीय राजनीतिशास्त्र का एक प्रमुख ग्रन्थ माना जाता है। यह ग्रन्थ 1909 ई. में प्राप्त हुआ था जिसका अनुवाद डॉ. श्याम शास्त्री ने किया था। अर्थशास्त्र पन्द्रह भागों और एक सौ अस्सी उपभागों में विभाजित है और इसमें छः हजार के लगभग श्लोक है। इस पुस्तक की रचना के समय के सम्बन्ध में इतिहासकारों के बीच मतभेद है। अर्थशास्त्र एक ऐसी विस्तृत रचना है जिसमें केवल राजनैतिक सिद्धान्तों का ही उल्लेख नहीं किया गया है। बल्कि प्रशासन के संगठन तथा राज्य और समाज की बहुत सी समस्याओं का भी इसमें उल्लेख किया गया है।
स्कन्द गुप्त का जीवन एवं उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
चाणक्य की विलक्षण बुद्धि और राजनैतिक चतुरता का प्रमाण हमें उसके इसी प्रसिद्ध ग्रन्थ में मिलता है। राजनैतिक सिद्धान्तों पर भारत की यह सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण पुस्तक है। इसमें उसने राज्य प्रबन्ध के विभिन्न विषयों की विवेचना की है, जैसे राजकुमारों की शिक्षा, शासक के दैनिक कर्तव्य, मंत्रियों का चुनाव तथा उनकी वफादारी या ईमानदारी की परीक्षा, सरकार के विभिन्न विभागों का संगठन, न्याय कर राजस्व के सिद्धान्त, शासक की विदेश नीति इत्यादि ।
कौटिल्य द्वारा रचित इस अर्थशास्त्र में न केवल उपयुक्त राजनैतिक सिद्धान्तों की विवेचना की गई है बल्कि उस समय की ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन भी मिलता है। इसी विशेषता के कारण अर्थशास्त्र को प्राचीन भारत के साहित्य में राजनीतिशास्त्र तथा इतिहास पर अपने ढंग की लिखी जाने वाली एक अद्वितीय पुस्तक कहा जा सकता है।