कौटिल्य और मेगास्थनीज
कौटिल्य और मेगास्थनीज- कौटिल्य अथवा चाणक्य तक्षशिला विश्वविद्यालय का आचार्य था उसका वास्तविक नाम विष्णुगुप्त था। चाणक्य का जन्म पाटलीपुत्र में हुआ था। चाणक्य कुरूप तथा उम्र प्रवृत्ति का था। वह राजनीति का प्रकांड पण्डित था। उस समय मगध पर नन्दों का शासन था। शुद्र वंशीय नन्द अपने अत्याचार और अशिष्ट व्यवहार के लिए जाने जाते थे। तत्कालीन मगध सम्राट धननन्द ब्राह्मणों से चिढता था। कहा जाता है कि उत्तरी पश्चिमी भारत की दुर्बलता तथा बाहय आक्रमण के कारण आतंकित रहता था। इसलिए उन्हें एकता के सूत्र में पिरोने तथा बाह्य आक्रमणों को विफल बनाने के लिए वह मगध के नन्दराज धननंद से सहायता मांगने पहुँचा परन्तु सहायता के बदले उसको अपमानित किया गया। चाणक्य अपने इस अपमान को सहन नहीं कर सका। उसने अपनी सर की चोटी खोल दी थी और यह संकल्प लिया कि जब तक वह नन्दों का पूर्ण विनाश कर अपना प्रतिशोध नहीं ले लेगा तब तक वह अपनी शिखा नहीं बांधेगा।
अपने प्रतिशोध को पूरा करने के लिए उसे ऐसे युवक की आवश्यकता थी जो वीर एवं साहसी होने के साथ-साथ विद्धान एवं योग्य हो। तक्षशिला वापस जाते हुए रास्ते में उसने एक युवक को देखा जो अद्वितीय प्रतिभा से सम्पन्न था, लेकिन अशिक्षित था। चाणक्य उसे वह अपने साथ ले गया और अपनी उद्देश्य की पूर्ति के लिए तक्षशिला विश्वविद्यालय में उसकी शिक्षा की व्यवस्था की यही बालक आगे चलकर मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ । चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य के संकल्प को पूरा किया और नन्दों का पूर्ण रूप से उन्मूलन किया। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के राजा बनने के बाद महामंत्री के रूप में काम किया।
कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र भारतीय राजनीतिशास्त्र का एक प्रमुख ग्रन्य माना जाता है। यह अन्य 1909 ई. में प्राप्त हुआ था जिसका अनुवाद डॉ. श्याम शास्त्री ने किया था। अर्थशास्त्र पन्द्रह भागों और एक सौ अस्सी उपभागों में विभाजित है और इसमें छः हजार के लगभग श्लोक है। इस पुस्तक की रचना के समय के सम्बन्ध में इतिहासकारों के बीच मतभेद है। अर्थशास्त्र एक ऐसी विस्तृत रचना है जिसमें केवल राजनैतिक सिद्धान्तों का ही उल्लेख नहीं किया गया है बल्कि प्रशासन के संगठन तथा राज्य और समाज की बहुत सी समस्याओं का भी इसमें उल्लेख किया गया है। चाणक्य की विलक्षण बुद्धि और राजनैतिक चतुरता का प्रमाण हमें उसके इसी प्रसिद्ध ग्रन्थ में मिलता है।
राजनैतिक सिद्धान्तों पर भारत की यह सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण पुस्तक है। इसमें उसने राज्य प्रबन्ध के विभिन्न विषयों की विवेचना की है, जैसे राजकुमारों की शिक्षा, शासक के दैनिक कर्तव्य, मंत्रियों का चुनाव तया उनकी वफादारी या ईमानदारी की परीक्षा, सरकार के विभिन्न विभागों का संगठन, न्याय, कर राजस्व के सिद्धान्त, शासक की विदेश नीति इत्यादि । कौटिल्य द्वारा रचित इस अर्थशास्त्र में न केवल उपयुक्त राजनैतिक सिद्धान्तों की विवेचना की गई है बल्कि उस समय की ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन भी मिलता है। इसी विशेषता के कारण अर्थशास्त्र का प्राचीन भारत के साहित्य में राजनीतिशास्त्र तथा इतिहास पर अपने ढंग की लिखी जाने वाली एक अद्वितीय पुस्तक कहा जा सकता है।
मेगस्थनीज:
मेगस्थनीज सिकन्दर के पूर्वी साम्राज्यों के उत्तराधिकारी सेल्यूकस का राजदूत था जो सेल्यूकस और चन्द्रगुप्त मौर्य के बीच हुए समझौते के बाद 304 ई.पू. में भारत आया और 299 ई.पू. तक भारत के विभिन्न भागों का भ्रमण करता रहा। इस यूनानी राजदूत ने अपना अधिकांश समय मध्य भारत और चन्द्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में व्यतीत किया एवं पाटलिपुत्र में बहुत दिनों तक निवास किया। उसने अपनी पुस्तक इंडिका में इन तथ्यों का उल्लेख किया है। उसने चन्द्रगुप्त मौर्य कालीन राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति का भी वर्णन इंडिका में किया है। मेगस्थनीज के विवरण से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में शान्ति और समृद्धि व्याप्त श्री लोग नैतिक दृष्टि से उत्कृष्ट थे तथा भारतीय साहसी, वीर और सत्यवादी हुआ करते थे।
मिहिरभोज प्रतिहार वंश का महानतम् शासक था।” इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
मेगस्थनीज के विवरण के अनुसार भारतीय समाज में सात वर्ग थे दार्शनिक, कृषक, शिकारी, पशुपालक, व्यापारी एवं शिल्पी योद्धा, निरीक्षक तथा मन्त्री इसने ब्राह्मण साधुओं की प्रशंसा की है। इसके अनुसार पाटलिपुत्र नगर का प्रबन्ध एक नगर परिषद द्वारा होता था। जिसमें पाँच-पाँच सदस्यों की छः उपसमितियाँ थीं और प्रत्येक उपसमिति के लिए अलग-अलग कार्य निर्धारित था। पहली उपसमिति शिल्प सम्बन्धी कार्य, दूसरी विदेशियों के स्वागत की व्यवस्था, तीसरी नगर में जन्म-मरण का लेखा-जोखा, चौथी वाणिज्य और व्यापार की देखभाल, पाँचवीं नगर में निर्मित वस्तुओं की देखभाल और छठी बिक्री वस्तु के मूल्य का दशमश वसूल करती थी। मेगस्थनीज के विवरण से चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रशासन के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। उसकी इण्डिका से तत्कालीन भारत की राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक दशा पर प्रकाश पड़ता है जो भारतीय इतिहास के निर्माण की दृष्टि से उपयोगी है।
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