कर्म के सिद्धान्त का महत्व बताइए।

कर्म के सिद्धान्त का महत्व – भारतीय जीवन पद्धति में कर्म का सिद्धान्त प्रत्येक युग में प्रेरणा का प्रधान स्रोत रहा है। भारतीय समाज जब सम्पन्नता के शिखर पर था तब इस सिद्धान्त से पुरुषार्थ की प्रेरणा देकर व्यक्ति को विकास के अवसर प्रदान किये और बाद में हमारा समाज जब विदेशी शक्तियों से अक्रान्त हो गया तब कर्म के भाग्यवादी पहलू ने जन-सामान्य के जीवन को संगठित रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस सिद्धान्त के महत्व की व्यापकता को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि बौद्ध प्रतिशत भाग अभावग्रस्त जीवन व्यतीत कर रहा था, वहां अब 90 प्रतिशत भाग सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं से सम्पन्न है।

भारतीय संविधान कठोर एवं लचीले संविधान का समन्वय है।” स्पष्ट कीजिए।

तो क्या वर्तमान पीढ़ी में जन्म लेने वाले वहां के सभी व्यक्तियों का ‘प्रारब्ध’ अच्छा हो गया और भारत की 90 प्रतिशत जनसंख्या का ‘प्रारब्ध’ दोषपूर्ण रहा? वास्तव में ऐसा नहीं है ‘प्रारब्ध’ तो केवल एक काल्पनिक धारणा है, मनुष्य का वास्तविक ‘कर्म‘ वर्तमान जीवन के दायित्वों को पूरा करने से ही सम्बन्धित है। पारस्परिक दायित्व निर्वाह, श्रम और उद्योग करना सबसे बड़ा पुण्य कर्म है और इसी की सहायता से व्यक्ति सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त कर सकता है।

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