कर्म सिद्धान्त का महत्व एवं दोष बताइए।

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कर्म सिद्धान्त का महत्व निम्न है

(क) भौतिक महत्व

मनुष्य को संसार में जो कुछ प्राप्त है वह उसके कर्मों से जोड़ देने से कर्मों के भौतिक परिणामों पर विश्वास स्थापित होता है। इससे व्यक्ति दुर्भाग्य को भोगते हुए भी ऐसे कर्म करने का प्रयास करता है जिससे भविष्य में सौभाग्य प्राप्त हो। भारतीय दर्शन में केवल मनुष्य और जीव प्राणी ही नहीं बल्कि देवता तथा सूर्य, चन्द्र प्राकृतिक तत्व भी कर्म के बन्धन में बन्धे माने गए हैं। इस प्रकार का सिद्धान्त केवल मानव जीवन में ही नहीं बल्कि भौतिक जीवन में भी विद्यमान है।

भारतीय जीवन क्रम में कर्म सिद्धान्त के महत्व को रेखांकित कीजिए।

(ख) नैतिक महत्व

कर्म का सिद्धान्त भारतीय नीति शास्त्र का आधार है। इस सिद्धान्त के अनुसार स्वधर्म पालन ही एकमात्र सही कर्म है, किसी भी स्थिति में दूसरे के धर्म का अनुकरण करना उचित नहीं है। इससे व्यक्ति मानसिक संघर्ष से बच जाता है और उसे सही निर्णय लेने में कोई कठिनाई नहीं होती पाप कर्म के बुरे परिणाम को जान कर यह उनसे दूर रहता है।

(ग) सामाजिक महत्व

किन्तु कर्म के सिद्धान्त का महत्व नैतिक से भी अधिक सामाजिक है। कर्म का सिद्धान्त भारतीय समाजदर्शन का आधार है। इससे निम्नलिखित सामाजिक लाभ प्राप्त होते हैं।

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