कनिष्क की धार्मिक नीति का वर्णन कीजिए।

कनिष्क की धार्मिक नीति – कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी या जिसका उल्लेख बौद्ध साहित्यों में प्राप्त होता है। बौद्ध साहित्यों में कनिष्क को भी प्रारम्भ में अशोक की भाँति क्रूर एवं अत्याचारी बताया गया है, परन्तु पाटलिपुत्र विजय के पश्चात् यह अश्वघोष एवं मातृचेट जैसे विद्वानों के सम्पर्क में आकर बौद्ध बन गया। कनिष्क ने भी अशोक की भांति बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार हेतु प्रयत्न किए। सी-यु-की नामक चीनी ग्रन्थ से पता लगता है कि कनिष्क ने कश्मीर में (कुछ विद्वानों के अनुसार जालंधर में बौद्धों की एक सभा बुलायी (चौथी बौद्ध संगीति)। यह सभा पार्श्व की सलाह पर बुलायी गई। इसका उद्देश्य विभिन्न बौद्ध विद्वानों में प्रचलित मतभेद दूर करना था। इसके अध्यक्ष वसुमित्र एवं उपाध्यक्ष अश्वघोष जैसे बौद्ध विद्वान थे। इसमें लगभग 500 विद्वानों ने हिस्सा लिया। सभा की कार्यवाही 6 महीने तक चलती रही। बौद्ध धर्म-ग्रन्थों पर विस्तृत टीकाएँ लिखी गई तथा महाविभाषा नामक बौद्ध ज्ञान कोष तैयार किया गया। इस परिषद का मुख्य कार्य बौद्धधर्म की महायान शाखा को मान्यता देना था। सभा की सारी कार्यवाही संस्कृत में हुई थी जिससे संस्कृत के विकास में मदद मिली। इस समय से महायान ही प्रमुख बौद्ध सम्प्रदाय बन गया। इसके अतिरिक्त कनिष्क ने भी मौर्य शासक अशोक की भाँति महायान सम्प्रदाय को प्रोत्साहन दिया।

उत्तरी एशिया में महायान बौद्धधर्म का प्रचार उसी के समय में हुआ। बौद्धधर्म के प्रचार के लिए विदेशों में धर्म प्रचारक भी भेजे गए। उसके प्रयत्नों के फलस्वरूप ही बौद्धधर्म का प्रचार इस समय चीन एवं मध्य एशिया में हो सका। कनिष्क ने अनेक बौद्ध विहारों, चैत्यों एवं स्तूपों का भी निर्माण करवाया। उसके समय का सबसे प्रसिद्ध स्तूप पुरुषपुर (पेशावर) में बना। कनिंघम के अनुसार यह शाहजी की ढेड़ी पर स्थित था। कनिष्क के समय में बुद्ध की सुन्दर प्रतिमाएँ भी बनीं। इनका परिणाम यह हुआ कि अशोक की मृत्यु के बाद जो बौद्धधर्म पतन की तरफ अग्रसर हो रहा था, वह फिर से भारत का प्रधान धर्म वन गया।

यद्यपि कनिष्क बौद्धधर्म को प्रश्रय देता था, तथापि वह धार्मिक दृष्टिकोण से एक उदार शासक था। उसके साम्राज्य में विभिन्न धर्मों के अनुयायी निवास करते थे। इन सबके साथ उसने धार्मिक निष्पक्षता तथा सहिष्णुता का व्यवहार किया। इसका प्रमाण हमें उसके सिक्कों से मिलता है। उसके सिक्कों पर बुद्ध के अतिरिक्त यूनानी, ईरानी एवं हिन्दू देवताओं के चित्र भी मिलते हैं। इन देवताओं में हेराक्लीज, सूर्य, शिव, अग्नि इत्यादि प्रमुख है। कुछ ताम्र सिक्कों में उसे वेदी पर बलि चढ़ते हुए भी दिखाया गया है। इससे स्पष्ट है कि कनिष्क एक धर्मसहिष्णु शासक था।

कनिष्क का शासन काल 78 ई. से 1.01 ई. माना जाता है। उसने अपने शासन काल में विविध प्रकार के सिक्के जारी किए। कनिष्क के बहुसंख्यक स्वर्ण एवं ताम सिक्के पश्चिमोत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार बंगाल तथा उड़ीसा के विभिन्न स्थानों से प्राप्त किए गए हैं। स्वर्ण सिक्के तौल में रोमन सिक्कों के बराबर है।

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स्वर्ण के सिक्के

स्वर्ण सिक्कों का विवरण इस प्रकार है

मुख भाग – खड़ी मुद्रा में राजा की आकृति है। वह लम्बी कोट, पायजामा, नुकीली टोपी पहने हुए है। उसके बाएँ हाथ में माता है तथा दाए हाथ में वह हवन कुण्ड में आहुति दे रहा है। ईरानी, उपाधि के साथ यूनानी लिपि में शाओ नानो शाओ कनिष्की कोशानो मुद्रालेख अंकित है।

‘शाओ नानो शाओ’ से तात्पर्य ‘शाहशाह’ से हैं। समुद्रगुप्त के प्रयाग स्तम्भ लेख से पता चलता है कि कुषाण शासक ‘देवपुत्राहिपाहानुषाहि’ की उपाधि ग्रहण करते थे।

पृष्ठ भाग – विभिन्न देवी-देवताओं की आकृतियाँ उत्कीर्ण मिलती है। वे यूनानी, भारतीय तथाईरानी देव समूह से लिए गए हैं। प्रत्येक सिक्के पर एक ही देवता तथा नीचे उसका नाम उत्कीर्ण है। नाम यूनानी भाषा में है, जैसा मिइरो (सूर्य), मेओ (चन्द्र), आरलेग्नो, नाना, आरदोक्षो (देवी) आदि।

कुछ सिक्कों के पृष्ठ भाग पर चतुर्भुजी शिव की आकृति तथा यूनानी भाषा में ‘आइसो’ (शिव) अंकित है। हाथ में त्रिशूल, बकरा, डमरू तथा अंकुश है। किसी-किसी सिक्के पर प्रभामण्डलयुक्त खड़ी मुद्रा में बुद्ध की प्रतिमा तथा उसके नीचे यूनानी लीपि में ‘थोडो’ (बुद्ध) ख़ुदा हुआ है।

ताम्र सिक्के –

ये गोलाकार है। इनका विवरण इस प्रकार है

मुख भाग – कनिष्क की आकृति तथा मुद्रालेख ‘बेसिलियस बेसिलियन’ उत्कीर्ण है। यह यूनानी उपाधि है जिससे तात्पर्य ‘राजाओं का राजा से हैं।

पृष्ठ भाग- यूनानी, ईरानी अथवा भारतीय देवी-देवता की आकृति तथा यूनानी भाषा में उसका नाम उत्कीर्ण है।

कुछ ऐसे ताम्र मिले हैं जिनके ऊपर बैठी हुई मुद्रा में राजा की आकृति बनी हुई है। इन पर राजा का नाम नष्ट हो गया है। इसमें से चार सिक्कों का वजन 68 ग्रेन है। हाइटहेड ने आकार तथा शैली के आधार पर इन्हें कनिष्क का बताया है। गार्डनर ने कनिष्क के कुछ कास्य सिक्कों का उल्लेख किया है। इनके मुख भाग पर राजा की खड़ी आकृति तथा यूनानी उपाधि अंकित है। पृष्ठ भाग पर यूनानी देवी-देवताओं की आकृतियाँ है।

कनिष्क के सिक्कों का प्रसार जहाँ एक ओर उसके साम्राज्य विस्तार को सूचित करता है वहीं दूसरी ओर उन पर उत्कीर्ण विविध देवी-देवताओं की आकृतियों से उसकी धार्मिक सहिष्णुता सूचित होती है। लगता है कि कनिष्क के विशाल साम्राज्य में विभिन्न जातियाँ निवास करती थीं। यही कारण था कि उसने सभी वर्ग के देवी-देवताओं की आकृतियों को ग्रहण कर उनकी धार्मिक भावनाओं का सम्मान किया था। इस प्रकार कनिष्क ने सभी वर्गों के लोगों की सहानुभूति तथा समर्थन प्राप्त कर लिया होगा।

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