कानून सम्बन्धी अरस्तू के विचार – अरस्तू ने कानून की सर्वोच्चता को श्रेष्ठ शासन का प्रतीक माना है। अरस्तू के कानून सम्बन्धी विचारों का अध्ययन हम निम्नलिखित वर्णन से कर सकते हैं
(1) अरस्तू के अनुसार कानून की परिभाषा
अरस्तू कानून को सब प्रकार की वासनाओं से रहित विवेक मानता है। अरस्तू कानून को न्याय का आधार, विवेक का पर्याय और नैतिकता का राजनीतिक प्रतिरूप मानता है। अरस्तू ने कानून को निम्नवत् परिभाषित किया- “कानून समस्त बन्धनों का सामूहिक नाम है, जिसके अनुसार व्यक्ति के कार्यों का नियमन होता है।”
(2) कानून के स्रोत
अरस्तू के अनुसार कानून के दो स्रोत होते हैं
- वैयक्तिक
- अवैयक्तिक
अरस्तू के अनुसार प्रथम स्रोत विधि या विधायक का निर्माता होता है। दूसरे स्रोत में अरस्तू ने सामाजिक रीति-रिवाज और प्रथाओं को रखा है।
(3) कानून के प्रकार
अरस्तू ने कानून को दो भागों में विभक्त किया है
- विशेष कानून।
- प्राकृतिक (सार्वभौम) कानून
अरस्तू ने विशेष कानून का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है कि “प्रत्येक राज्य में एक से ही कानून प्रभावशाली नहीं होते। अतः प्रत्येक राज्य को अपने-अपने कानून बनाने पड़ते हैं, इनका निर्माण संविधान के अनुसार प्रतिभाशाली विधि निर्माता के द्वारा किया जाता है। प्राकृतिक कानून (नियमों) से अरस्तू का तात्पर्य उन नियमों से होता है जो प्रत्येक राज्य में प्रभावकारी होते हैं। इनका प्रभाव प्रत्येक स्थान पर सदैव समान होता है, ये प्रत्येक केहित में हुआ करते हैं।
(4) अरस्तू के अनुसार कानून की आवश्यकता
अरस्तू ने प्रत्येक राज्य के लिये कानून की आवश्यकता को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया है उसके अनुसार समाज में निष्कृष्ट प्रकृति के लोग अधिक और अच्छी प्रकृति के लोग कम होते हैं अच्छी प्रकृति के लोगों को, निष्कृष्ट प्रकृति के लोगों से रक्षा हेतु कानून की आवश्यकता है। राज्य में सुरक्षा, शान्ति व सुव्यवस्था बनाये रखने हेतु भी कानून की आवश्यकता है। कानून के अभाव में अराजकता, अव्यवस्था, अशान्ति व विघटनकारी शक्तियाँ बढ़ जायेंगी, तथा अरस्तू के अनुसार राज्य का अस्तित्त्व ही खतरे में पड़ सकता है।
(5) अरस्तू के अनुसार कानून की सर्वोच्चता
अरस्तू के कानून को राजा प्रजा दोनों से ही उच्च पद प्रदान किया है। उसने कानून को सरकार से ऊपर इसलिये माना है कि जिससे | कानून सरकार के भी अनुचित कार्यों पर प्रतिबन्ध लगा सके। कानून का शासन निष्पक्ष होता है। इसलिये राज्य में व्यक्ति की अपेक्षा कानून की सर्वोच्चता श्रेष्ठ है।
इटली में पुनर्जागरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अरस्तू अन्ततः कानूनों को ‘वासना से रहित विवेक’ मानता है वह कानून को सर्वोच्च शक्ति के रूप में मान्यता प्रदान करता है। उसने सरकार, राजा व प्रजा से उच्च पद पर कानून को आसीन कर, सरकार की अनुचित कार्य प्रणाली को भी नियंत्रित अथवा समाप्त करने का अधिकार प्रदान किया है। अरस्तू के अनुसार कानून उस प्रकार का विवेक है, जो प्रत्येक सामाजिक प्रथाओं में भी शामिल हो जाता है।