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कानून के शासन का क्या अर्थ है? इसकी क्या सीमाएँ हैं?

कानून के शासन का अर्थ एवं परिभाषा ब्रिटेन में कानून के शासन से तात्पर्य यह है कि वहाँ कानून ही देश का शासनकर्ता है न कि किसी व्यक्ति विशेष की इच्छा अर्थात् देश में कानून सर्वोच्च है जिसके अधिकार क्षेत्र से कोई बच नहीं सकता। कानून के शासन का डायसी ने अपनी पुस्तक दि लॉ ऑफ कॉन्स्टीट्यूशन में विशद् विवेचन किया है। उन्होंने बतलाया कि कानून की सर्वोच्चता की यह मान्यता किस तरह ब्रिटिश प्रशासन और सार्वजनिक जीवन को प्रभावित करती है।

डायसी के अनुसार कानून के शासन की तीन प्रमुख अवधारणाएँ (संप्रत्यय) है

(1) कानून की सर्वोपरिता

ब्रिटेन में कानून सर्वोपरि है। ब्रिटेन के शासक वर्ग को नागरिकों के साथ मनमानी करने का कोई अधिकार नहीं है। कोई भी व्यक्ति केवल तभी दण्डित किया जा सकता है जब देश के किसी साधारण न्यायालय में उसका अपराध सिद्ध हो जाये इस प्रकार देश का कोई भी व्यक्ति अवैध रूप से अपने जीवन या अपनी सम्पत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है। डायसी ने कानून के शासन के इस आशय को इन शब्दों में प्रकट किया है- ” जब तक कोई व्यक्ति स्पष्टः कानून के विरुद्ध आचरण न करे और कानून के विरुद्ध किया गया वह आचरण देश के सामान्य न्यायालय में सिद्ध न हो जाये, तब तक न तो किसी को दण्ड दिया जा सकता है और न ही किसी को शारीरिक कष्ट अथवा हानि पहुँचाई जा सकती है।

(2) कानून की समानता

प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी भी स्थिति पद पर हो, – कानून का उल्लंघन करने पर उसका परिणाम भुगतने के लिये बाध्य हैं। डायसी के अनुसार “कोई व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं हैं, वरन प्रत्येक व्यक्ति चाहे उसका पद और स्थिति कुछ भी हो, देश के सामान्य कानून से शासित होता है तथा सामान्य ट्रिब्यूनलों के क्षेत्राधिकार में आता है। ब्रिटेन में कानून के अन्तर्गत लाभ हानि सभी को समान रूप से प्राप्त है। कानून के अन्तर्गत मिलने वाले लाभ से कोई वंचित नहीं किया जा सकता और उसके अन्तर्गत दिये जाने वाले दण्ड से कोई बच नहीं सकता। इसी प्रकार जो साधारण न्यायालय साधारण व्यक्तियों के अपराधों के मुकदमों का निपटारा करते हैं, वे ही सरकारी कर्मचारियों के सरकारी हैसियत में किये गये अपराधों के मुकदमों का निपटारा भी करते हैं।

(3) संवैधानिक सिद्धान्तों का न्यायिक निर्णयों की उपज होना अथवा व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा

डायसी के अनुसार कानून के शासन की तीसरी अवधारणा यह है कि संविधान के सामान्य सिद्धान्त उन म्यायिक निर्णयों के परिणाम है जिनमें न्यायालयों ने विशेष अभियोगों में साधारण नागरिकों के अधिकारों को निशित किया है। इसका तात्पर्य यह है कि बहुत से मामलों में जो विधान में स्पष्ट नहीं है न्यायालयों के निर्णय ही अन्तिम माने गये। इसीलिये विधान में व्यक्ति गत स्वतन्त्रता सम्बन्धी कानून (जिनका संविधान में उल्लेख नहीं है) न्यायालयों के निर्णयों के परिणाम है।

कानून के शासन का व्यावहारिक पक्ष या सीमाएँ

कानून के शासन के बारे में डायसी की उपर्युक्त तीनों सैद्धान्तिक अवधारणाएँ अतिशयोक्तिपूर्ण जैसा कि निम्नांकित विवेचन से प्रकट हो सकेगा

(1) डायसी की प्रथम व्याख्या की अव्यावहारिकता

डायसी द्वारा कानून की अपनी पहली व्याख्या में दो बातों पर बल दिया गया है- (क) कानून का शासन इस बात को स्वीकार नहीं करता कि अधिकारियों को व्यापक स्वेच्छाचारी और स्वविवेक पर आधारित शक्ति के प्रयोग का अधिकार हो, एवं (ख) प्रशासन का प्रत्येक कार्य सामान्य कानून या संसदीय कानून द्वारा अधिकृत हो डायसी की ये दोनों ही बातें अव्यावहारिक है क्योंकि

1.डायसी निरंकुश या स्वेच्छाचारपूर्ण शक्ति और विवेक के विभेद को स्पष्ट नहीं कर सका है। उसने इन दोनों शब्दों को उलझा दिया है। स्वेच्छाचारी शक्ति का अर्थ अनुत्तरदायी तथा अनियन्त्रित शक्ति है जो कानून के शासन की सहगामिनी नहीं हो सकती है।

2. प्रदत्त विधान की दृष्टि से भी डायसी का निष्कर्ष अव्यावहारिक माना जायेगा। व्यवहार में यह सम्भव नहीं है कि समाज की प्रत्येक आवश्यकता का नियमन संसद के विस्तृत विधान द्वारा ही हो। ब्रिटिश संसद का इतिहास साक्षी है कि लम्बे समय से वह प्रथा चली आ रही है जिसे हम आज प्रदत्त विधान या उपविधान या संसद द्वारा शक्ति का हस्तान्तरण कहते हैं। संसद तो कानूनों की रूपरेखा मात्र निर्धारित करती है।

(2) डायसी की द्वितीय व्याख्या की अव्यावहारिकता

डायसी ने अपनी दूसरी व्याख्या में इस बात पर बल दिया है कि सामान्य जीवन और प्रशासनिक अधिकारी दोनों ही कानून की दृष्टि से समान हैं तथा सामान्य न्यायालय द्वारा दण्डनीय है। डायसी के इस मत का भी अनेक आधारों पर आलोचना की जाती है

1. वर्तमान समय में अन्य देशों की तरह ब्रिटेन में भी शासकों और कूटनीतिक अधिकारियों को न्यायालयों की कार्यप्रणाली और मुकदमों आदि के सम्बन्ध में विमुक्तियाँ या विशेषाधिकार दिये गये हैं। आज ऐसी व्यवस्था नहीं है कि सरकार कर्मचारी और साधारण नागरिक सभी मामलों में देश के साधारण न्यायालयों के न्यायक्षेत्र में आ जायें। ब्रिटेन में ऐसे अनेक प्रशासनिक न्यायालय हैं जिनमें प्रशासनिक अधिकारी ही न्यायाधिकारी है तथा सरकारी कर्मचारियों और साधारण नागरिकों के विवादों का निराकरण करते हैं और उनके ये निर्णय सामान्य कानून के अनुसार नहीं बल्कि उन प्रशासनिक नियमों के अनुसार होते हैं जो विशेष प्रकार के मामलों के लिये बनाये जाते हैं।

2. साधारण नागरिक और सरकारी कर्मचारियों का अपनी त्रुटियों के लिये कानून के सामने समान रूप के उत्तरदायी होने की स्थिति में अब एक अन्य प्रकार से भी अन्तर आ गया। है। जब सरकार द्वारा शान्ति एवं व्यवस्था कायम रखने के लिये या ऐसे ही किसी अन्य कार्य से सम्बन्धित कार्य किये जाते हैं तो 1947 के क्राउन प्रोसीडिंग्स अधिनियम के अनुसार यह माना जाता है कि सरकार अपने ‘सम्प्रभु रूप’ में कार्य कर रही है।

(3) डायसी की तृतीय व्याख्या की अव्यावहारिकता

डायसी ने तीसरे पहलू में इस बात पर बल दिया है कि कानून का शासन ही व्यक्ति के अधिकारों का रक्षक है और देश के न्यायालय सामान्यतः उसके अनुसार ही अपने निर्णयों द्वारा इन अधिकारों की रक्षा करते हैं। ससंदीय कानूनों या संविधियों से प्राप्त अधिकारों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता।

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विधि (कानून) के शासन के अन्य अपवाद

(1) कानून के शासन के अन्य अपवादों में राजा और न्यायाधीश सम्बन्धी कानून प्रमुख हैं। राजा कोई गलती नहीं करता, इस कानूनी सिद्धान्त के अनुसार राजा पर कोई दीवानी या फौजदारी अभियोग नहीं लगाया जा सकता। राजा कोई भी अपराध करे उसे न्यायालय में उपस्थित होने के लिये आदेश नहीं दिया जा सकता। उसे पागल करार देकर चिकित्सा कराई जा सकती है, परन्तु ब्रिटिश कानून के अन्तर्गत किसी भी विधि द्वारा उसी के न्यायालय में उस पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। इसी प्रकार यदि सम्पत्ति सम्बन्धी मामलों में भी प्रजा के किसी व्यक्ति की राजा द्वारा हानि हो जाने पर वह व्यक्ति केवल राजा से प्रार्थना कर सकता है और राजा चाहे तो अपनी कृपादृष्टि से न कि प्रार्थी के अधिकार की रक्षा के लिये उस क्षति को पूरा कर सकता है।

(2) ब्रिटेन में न्यायाधीश भी कानून के शासन के अपवाद हैं। न्यायाधीश को अपने सरकारी काम में किसी व्यक्तिगत राय के लिये दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

(3) कानून का शासन विदेशी शासकों और राजदूतों पर लागू नहीं होता। अतः देश के कानून का उल्लंघन करने पर किसी न्यायालय में उन पर अभियोग नहीं चलाया जा सकता। इसी प्रकार किसी विदेशी जहाज के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती।

(4) यदि गृहमंत्री किसी विदेशी नागरिक को ब्रिटिश प्रजा होने का प्रमाणपत्र दे देता है। या किसी के प्रमाणपत्र को रद्द कर देता है अथवा किसी अवांछित विदेशी को देश त्यागकर चले जाने का आदेश दे देता है तो इस प्रकार के कार्यों के विरुद्ध उस पर कोई अभियोग नहीं चलाया जा सकता है।

(5) सैनिकों पर सैनिक कानूनों का नियन्त्रण है और सैनिक न्यायालयों में ही उनके अभियोगों का निर्णय होता है।

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