कालविन बाद – प्रोटेस्टेण्ट धर्म की स्थापना में लूथर के बाद कालविन का ही नाम आता है। अगर धर्मसुधार आन्दोलन शुरू करने का श्रेय लूथर को है तो कालविन पहला सुधारक था, जो अटूट विश्वास के साथ एक ऐसा पवित्र सम्प्रदाय स्थापित करना चाहता था जिसको अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता और ख्याति प्राप्त हो। उसका जन्म 1509 ई. में फ्रांस में हुआ। उसका पिता एक वकील और नोयों के विशप का सचिव था। उसने पेरिस विश्वविद्यालय में धर्म और साहित्य का गहरा अध्ययन किया। धर्म में उसकी रूचि देखते हुए उसके पिता ने उसे वकील बनने की सलाह दी और कालविन कानून के अध्ययन में रत हो गया। लूथर के विचारों को पढ़कर चौबीस साल की उम्र में उसने प्रोटेस्टेण्ट धर्म को अपना लिया। उसने चर्च से सम्बन्ध तोड़ लिया। फ्रांस छोड़कर स्विटजरलैण्ड चला गया। वहीं उसने ‘ईसाई धर्म की स्थापनाएँ’ नामक पुस्तक की रचना की।
यह धार्मिक पुस्तक बाद में प्रोस्टेस्टेण्टवाद के इतिहास में सबसे प्रभावशाली ग्रन्थ साबित हुआ। फ्रांसीसी भाषा के लिए इस पुस्तक का वही। स्थान है जो स्थान जर्मन भाषा में लूथर द्वारा बाइबिल के अनुवादों को है। फ्रांसीसी भाषा का यह पहली पुस्तक मानी जाती है जिसकी रचना एक सुनिश्चित और सुडौल योजना के अनुसार हुई थी। इसकी शैली विश्वास और तर्क से परिपूर्ण है। अपने तर्कपूर्ण और विद्वतापूर्ण सिद्धान्तों के कारण यह पुस्तक तेजी से लोकप्रिय हुई और ऐसा लगने लगा कि शायद सारे चर्च-विरोधी इस पुस्तक के आधार पर संगठित हो सकेंगे। इसी पुस्तक के कारण वह टीकाकारों में सबसे अधिक बुद्धिमान टीकाकार, बाइबिल का सबसे अधिक कुशल भाष्यकार और सबसे समझदार तथा नैन्यायिक आलोचक माना जाता है।
कालविन यह जानता था कि युग के आधार पर कैसे मनुष्य को समझना चाहिए और मनुष्य के आधार पर, कैसे युग को समझा जाना चाहिए। बाइबिल का अर्थ लगाने में उसने लूथर से अधिक आधुनिक मनोवृत्ति और इतिहास के प्रति अपनी ईमानदारी दिखाई। उसका विचार था कि ईसाई धर्म को समझने के लिए ईसा के विचार को समझना आवश्यक है। चूंकि ये विचार प्राचीन धर्मग्रंथों में प्रकट किए गए हैं, इसलिए उन्हें जनप्रिय बनाना जरूरी है। उसका कहना था कि बाइबिल का ठीक अर्थ लगाना चाहिए और आचार विचार का पालन कड़ाई से होना चाहिए। उसके विचार बड़े उग्र थे। उसकी मांग थी कि त्योहार नहीं मनाएँ जाएँ, आमोद-प्रमोद की मंडलियाँ न बैठें और थियेटरों को उठा दिया जाए। वह चाहता था कि यौन-व्याभिचार के अपराध में मृत्युदंड दिया जाए। उसमें उदारता का नितांत अभाव था और वह अपने विचारों में किसी से समझौता करने को तैयार नहीं था। वह इतना असहिष्णु था कि बहुत से लोगों को उसने सिर्फ इसलिए जलवा दिया था कि वे उससे सहमत नहीं थे।
कालविन के सिद्धान्तों का आधार ईश्वर की इच्छा की सर्वोच्चता है। ईश्वर की इच्छा से ही सब कुछ होता है, इसलिए मनुष्य की मुक्ति न कर्म से हो सकती है न आस्था से । वह तो बस ईश्वर के अनुग्रह से हो सकती है। मनुष्य पैदा होते ही यह तय हो जाता है कि उसका उद्धार होगा या नहीं। इसे ही ‘पूर्व नियति का सिद्धान्त’ कहते हैं। वैसे देखने पर इससे घोर भाग्यवादिता बढ़नी चाहिए थी, किन्तु कालविनवाद ने ठीक इसके विपरीत अपने अनुयायियों में एक नवीन उत्साह और दैविक प्रेरणा का संचार किया। विशेशकर व्यापारियों के दिल में एक नया आत्मविश्वास जगा। वे अपने को ईश्वर का प्रिय पात्र समझने लगे। उन्हें यह विश्वास था कि वे जो कुछ भी करते हैं, वह ईश्वरीय योजना के अनुसार है इसमें सामन्ती व्यवस्था कोई भी बाधा नहीं डाल सकती। इसलिए जिन-जिन लोगों स्कॉट, डच, फ्रांसीसी हुजनो और अंग्रेज, प्युरिटन ने कालविन के धर्म को अपनाया, वे सभी अपने दृढ़ आत्मविश्वास उद्यम और चरित्र बल के लिए प्रसिद्ध थे। वे प्रायः व्यापारी और शिल्पी थे। अतएव यह स्पष्ट है कि कालविन के धर्म को व्यापारियों का समर्थन इसलिए मिला कि उसके सिद्धान्तों से उनके व्यापार को बड़ा लाभ हुआ। वास्तव में “19वीं शताब्दी के सर्वहारा के लिए जो मार्क्स ने किया, वही 16वीं शताब्दी के मध्यम वर्ग के लिए कालविन ने।”
यद्यपि कालविन फ्रांसीसी था, उसने जिनेवा को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। 1536 ई. से मृत्यु के समय 1564 ई. तक वह वहीं रहा। इस काल में उसने नगर की धार्मिक अपनी संस्थाओं का ही नहीं, बल्कि उसकी शिक्षा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था तथा व्यापार का भी संचालन किया। वह शहर का वास्तविक शासक बन गया। वहाँ उसने अपने उग्र विचारों को कार्यरूप में परिणत करने की ा की कालविनवाद का प्रचार स्विट्जरलैण्ड, च नीदरलैण्ड, स्कॉटलैंड और जर्मन पैलेटिनेट में हुआ। इंग्लैण्ड और फ्रांस में भी कालविन के अनुयायी थे। संयुक्त राज्य अमेरिका की स्थापना में कालविन के अनुयायियों का बड़ा हाथ था। आधुनिक अमेरिका में पाये जानेवाले कांग्रेसनलिस्ट प्रेस्बिटेरियन, और बैपटिस्ट कालविन के ही अनुयायी हैं। प्रमुख प्रारंभिक प्रोटेस्टेंट ग्रुपों में कालविनवादी सबसे अधिक उत्साही और सुसमाचारी थे जहाँ कहीं भी कालविनवाद का प्रचार हुआ, वहाँ उसने मध्यम वर्ग, जनतंत्र और सार्वजनिक शिक्षा के विकास में भी योगदान दिया।
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यद्यपि कालविन लूथर की तुलना में अधिक कट्टर था, उसके उपदेश और विधि-विधान लूथर से अधिक सरल थे सुधर ने तीन संस्कारों को माना और वह चमत्कारों को प्रतीक के रूप में स्वीकार करने को तैयार था। कालविन ने दो संस्कार माने और चमत्कारों को बिल्कुल नकार दिया। दोनों ने आडंबर का विरोध किया, लेकिन उनके सुधार के तरीके सर्वथा भिन्न थे। अपने-अपने तरीके से दोनों ने धार्मिक कुरीतियों को दूर करने में सफलता प्राप्त की।