जिगूरत- सुमेर की स्थापत्यकला के विस्मयकारी उदाहरण-जिगरत देवमन्दिरों के भव्य स्मारक तथा बौद्धिक एवं आध्यात्मिक विकास के श्रेष्ठ भौतिक प्रतिमान माने जाते हैं। ये सुमेरियन स्थापत्य कला के गढ़-मन्दिर वास्तव में नगर-राज्यों के जीवन के महत्वपूर्ण केन्द्र थे। जिगरत का अर्थ है ‘स्वर्ग की पहाड़ी’। इनका निर्माण ‘पवित्रक्षेत्र’ में कृत्रिम पहाड़ी पर (चबूतरों) किया गया था। कुछ विद्वानों की धारणा है कि इनमें प्राचीन सुमेरियनों के किसी पहाड़ी स्थित मूल स्थान की स्मृति सुरक्षित हैं जिगूरत इतने उळेंचे थे कि उन्हें मीलों दूर से देखा जा सकता था।
“गुप्तकाल भारत का स्वर्णकाल कहा जाता है।” विवेचना कीजिए।
जिगूरत की स्थापत्य कला का चरमोत्कर्ष उर के तृतीय राजवंश के समय हुआ था। ये विशाल बहुसोपान युक्त, पिरामिहनुमा गढ़-मन्दिर मेसोपोटामिया के प्रायः सभी नगरों के महत्वपूर्ण धार्मिक लक्षण थे। 2300 ई.पू. के लगभग निर्मित उर के प्रसिद्ध जिगर की माप 200x150x70 फीट थी। नगर के प्रधान देवता के मन्दिर और वेदी को समुन्नत करने के लिए इनका निर्माण किया गया था। यह तीन मंजिला था लेकिन कुछ जिंगुरत सप्तमंजिलों से युक्त भी निर्मित किये गये थे। सुमेर के वास्तुशिल्पियों ने जिरतों के निर्माण में आज से साढ़े चार हजार वर्ष पहले ‘उत्तलता के सिद्धान्त’ को खोज लिया था ताकि जिगुरत ठोस और चिल्लाकर्षक प्रतीत हो। जिरत में दस्तावेज संग्रह, अन्नभंडारण और उद्योग-धंधों की प्रशासनिक व्यवस्था का भी इन्तजाम था। बेबीलोन और असीरिया की सभ्यताओं में भी जिगूरतों का निर्माण हुआ था।