प्रस्तावना- देश का आर्थिक विकास एवं कल्याण निश्चित रूप से जनसंख्या वृद्धि की दर पर निर्भर करता है। जनसंख्या उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत ही नहीं होता, अपितु उत्पादन का उद्देश्य भी इसी पर निर्भर करता है। जनसंख्या वृद्धि की समस्या अनेक अन्य समस्याओं को भी उत्पन्न करती है, यह मानव की न्यूनतम आवश्यकताएँ जैसे रोटी, कपड़ा एवं मकान की कमी उत्पन्न कर जीवन स्तर को गिराती है तथा देश के विकास कार्यों में बाधक बनती हैं।
जनसंख्या वृद्धि का अर्थ
जनसंख्या वृद्धि, जन्मदर एवं मृत्युदर का अन्तर अर्थात् प्रतिवर्ष प्रति हजार के अनुपात में अधिक शिशुओं का जन्म एवं जीवित लोगों का प्रति हजार के अनुपात में कम लोगों की मृत्यु होना है। दूसरे शब्दों में जन्मदर का बढ़ना एवं मृत्युदर का घटना ही जनसंख्या वृद्धि का कारण बनता है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ‘माल्थस’ के अनुसार जनसंख्या गणोत्तर (2, 4, 8, 10 ) के अनुपात में बढ़ती है जबकि खाद्य सामग्री अंकगणितीय ( 1, 2, 3, 4) के अनुपात में बढ़ती है। इस प्रकार जनसंख्या खाद्य सामग्री के अनुपात में तेजी से बढ़ती है।
जनसंख्या वृद्धि आज एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बन चुकी है। सही अर्थों में आज जन वृद्धि ‘जनसंख्या विस्फोट’ के स्तर तक पहुँच चुकी है। ऐसा माना जाता है कि यदि जन-वृद्धि का क्रम इसी प्रकार बढ़ता रहा तो जीवन के लिए उपलब्ध सभी साधन समाप्त हो जाएँगे। मानव घास-फूस के अतिरिक्त एक दूसरे का शिकार करके खाने लगेंगे तथा ‘नरभक्षी’ बन जाएँगे। प्रसिद्ध विद्वान प्रो. कार सान्डर्स का मत है कि संसार की जनसंख्या में 10 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है तथा यदि यह वृद्धि इसी गति से होती रही तो मानव को पृथ्वी पर खड़े रहने तक का स्थान नहीं मिल पाएगा, तब शायद वह पृथ्वी के भीतर बिल में रहा करेगा।
भारत में जनसंख्या की स्थिति
स्वतन्त्र भारत को अपने आर्थिक विकास के लिए जिन प्रमुख समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जनसंख्या वृद्धि उनमें सर्वोपरि है। जनसंख्या के आधार पर हमारा देश चीन के पश्चात् दूसरे स्थान पर है तथा संसार की कुल जनसंख्या का 15 प्रतिशत भाग भारत में रहता है, जबकि क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सातवाँ स्थान है। आज हमारे देश की कुल जनसंख्या एक अरब अर्थात् 100 करोड़ के आँकड़े को भी पार कर चुकी है। 1951 में भारत की जनसंख्या 43 करोड़ थी। भारत की कुल आबादी का 50 प्रतिशत भाग 14 वर्ष से नीचे की आयु का है तथा 8 प्रतिशत 55 वर्ष से ऊपर की आयु का है अर्थात् हमारे देश में काम करने वालों के स्थान पर आश्रितों की संख्या अधिक है। यदि जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश नहीं लगाया गया तो अगले 30-35 वर्षों में भारत की जनसंख्या दोगुनी हो जाएगी तथा विश्व का सर्वाधिक आबादी वाला देश भी भारत ही बन जाएगा। आज भारत में हर सेंकड एक बच्चा पैदा होता है, दूसरी ओर औसत आयु 27 वर्ष से बढ़कर 55 वर्ष हो गई है।
भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण
भारत में जनसंख्या वृद्धि के दो प्रकार के कारण हैं- आन्तरिक कारण एवं वाह्य कारण। आन्तरिक कारणों में है-जन्मदर में वृद्धि तथा मृत्युदर में कमी जन्मदर बढ़ने के कुछ मूलभूत कारण हैं व्यापक बाल-विवाह प्रथा, भाग्यवादी दृष्टिकोण, अन्धविश्वास पूर्ण परम्पराएँ एवं समाज में व्यापक कुरीतियाँ, सन्तान उत्पत्ति को धार्मिक वृत्ति मानना व भगवान की देन मानना, विशेषकर पुत्र-प्राप्ति के लिए लगातार बच्चे पैदा करते रहना, गर्म जलवायु एवं अनिवार्य विवाह-प्रथा, निर्धनता, अशिक्षा, दूरदर्शिता का अभाव आदि । इसके अतिरिक्त चिकित्सा एवं अन्य सुविधाओं के बढ़ जाने के कारण भी मृत्युदर में गिरावट आई है। लोग परिवार नियोजन को न अपनाकर अपनी सुविधानुसार बच्चे पैदा कर रहे हैं। ये सभी जनसंख्या वृद्धि के आन्तरिक कारण हैं।
बाह्यों कारणों में सन् 1947 में भारत-विभाजन के फलस्वरूप एवं सन् 1971 में बांग्लादेश निर्माण के पश्चात् लाखों शरणार्थियों का भारत में आना तथा इसके बाद भी समय-समय पर दूसरे देशों से आकर भारत में बसने वाले अनेक लोगों के कारण जनसंख्या वृद्धि हो रही है।
जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम
आज हम भारतवासी इस समस्या के अनेक दुष्परिणाम झेल रहे हैं। प्रतिव्यक्ति आय कम होना, निर्धनता की रेखा से नीचे जानेवालों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होना, जनसंख्या का भूमि पर अत्यधिक दबाब, जीवन-स्तर में गिरावट, चिकित्सा व शिक्षा सुविधाओं की कमी, बढ़ती बेकारी, आवास की समस्या, पानी-बिजली की समस्या, खाद्य सामग्री की समस्या, महंगाई की समस्या इत्यादि। इन सभी समस्याओं की जड़ बढ़ती जनसंख्या ही है जो अपने साथ और भी कई समस्याएँ लेकर आ रही है। मिक्षावृष्टि, हत्या, लूटपाट, बलात्कार, चोरी-डकैती वगैरह भी बढ़ती जनसंख्या की ही देन है।
बाल-श्रम की समस्या पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
समस्या का समाधान
जनसंख्या नियन्त्रण के लिए उचित सामाजिक वातावरण का निर्माण आज की आवश्यकता है। सामाजिक कुरीतियों जैसे बाल-विवाह तथा शीघ्र विवाह पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। पुत्र की अनिवार्यता का रूढ़िवादी विचार समाप्त करना होगा। स्त्रियों की स्वतन्त्रता में वृद्धि होनी चाहिए तथा उनकी शिक्षा पर भी जोर दिया जाना चाहिए ताकि वे परिवार नियोजन का महत्त्व समझ सकें। इस दिशा में सरकार की ओर से परिवार नियोजन, स्वास्थ्य, चिकित्सा तथा शिक्षा-प्रसार के अनेक प्रयास किए गए हैं। इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत तौर पर भी हमें जागरुक होना होगा, हमें जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणामों के बारे में सोचना होगा क्योंकि प्रत्येक बच्च जनसंख्या वृद्धि के लिए जिम्मेदार है। हमें अपने ऊपर संयम रखना होगा तथा बच्चों को ईश्वर की देन न मानकर केवल एक या दो ही बच्चे पैदा करने होंगे, चाहे ये लड़की हो या लड़का
उपसंहार बढ़ती हुई जनसंख्या को नियन्त्रित करके ही देश का सर्वागीण विकास सम्भव है। तभी हम बेकारी की समस्या दूर कर पाएँगे, देश की आर्थिक व्यवस्था में सुधार ला पाएँगे तथा देश को उन्नति को चरम पर देख पाएँगे।