जनसंख्या विस्फोट
नव-माल्थसवादी अर्थशास्त्रियों के अनुसार अल्प विकसित देशों में जनसंख्या विस्फोट की समस्या मनुष्य के पुनरूत्पादक आचरण से जुड़ी हुई है। लेकिन जनांकिकी परिवर्तन सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक देश की जनसंख्या को तीन अवस्थाओं से गुजरना होता है और केवल दूसरी अवस्था में जनसंख्या तेजी के साथ बढ़ती है। पहली अवस्था में जन्म और मृत्यु दोनों ही की दरें ऊंची होती हैं, इसलिए जनसंख्या स्थिर रहती है। अल्प विकसित कृषि प्रधान देशों में प्रति व्यक्ति वास्तविक आय थोड़ी हैं और जनसाधारण का जीवन स्तर नीचा है। भोजन असन्तुलित और अपर्याप्त, आवास की व्यवस्था अस्वास्थ्यकर, अशिक्षा, अन्धविश्वास, और चिकित्सा की सुविधाएं न होने के कारण मृत्यु दर ऊंची होती है। अल्पविकसित देशों में सामाजिक और आर्थिक कारणों से जन्म दर ऊंची होती है। कृषि क्षेत्र में जमींदार वर्ग के लिए बड़े परिवार का पालन कोई समस्या नहीं होती। वह बड़े परिवार की इच्छा रखता है किसानों का जीवन स्तर नोचा होता है और उनके परिवारों में मृत्यु दर अधिक होती है। इसलिए वे अधिक बच्चों की इच्छा रखते हैं।
दूसरी अवस्था में मृत्यु दर नीचे आने लगती हैं लेकिन जन्म दर ऊंची बनी रहती हैं इसका कारण यह है कि आर्थिक विकास की प्रक्रिया आरंभ होते ही राष्ट्रीय आय में वृद्धि के साथ साथ प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ती हैं और आम लोगों के जीवन स्तर में सुधार होने लगते हैं। लोगों को भोजन के अभाव से मुक्ति तो नहीं मिलती, परन्तु अकाल कम हो जाते हैं। और भुखमरी दूर होती है। चिकित्सा सुविधाओं में वृद्धि होती हैं और रोगों पर काबू पाने की कोशिशें की जाती है। इन सभी कारणों से मृत्यु दर में कमी होती है।
तीसरी अवस्था में जन्म और मृत्यु दरें नीची हो जाती हैं। जब किसी देश में औद्योगीकरण और शहरीकरण की प्रक्रिया साथ-साथ चलती है तो जन्म दर में कमी होती हैं पश्चिमी देशों में अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में यही हुआ था जहां औद्योगीकरण के साथ-साथ शहरीकरण नहीं होता यहां जन्म दर नीचे आने में समय लगता है औद्योगीकरण और शहरीकरण के साथ शिक्षा बढ़ती हैं, धार्मिक अन्धविश्वास में कमी होती हैं और लोग वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाते हैं। उनमें परिवार नियोजन के बारे में जानकारी बढ़ती है और जन्म दर गिरने लगती है।
भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण-
जनसंख्या वृद्धि के तीन कारण हो सकते हैं:
- (1) दर,
- (2) ऊंची जन्म दर, और
- (3) सामाजिक कारण। नोची मृत्यु
(1) मृत्यु दर मेंगिरावट के कारण
- अकालों में कमी- ब्रिटिशकाल में मृत्यु दर ऊंची रहने का एक मुख्य कारण बार-बार अकालों का पड़ना थ। तब से स्थिति में काफी सुधार हुआ है आजादी के बाद अकाल रोकने की दृष्टि से विभिन्न उपाय किए गए हैं। सुखा और फसल खराब होने की स्थिति में राहत कार्य जिस तेजी के किया जाता है उससे ज्यादा लोगों की जाने नहीं जातीं।
- महामारियों का नियंत्रण- स्वतन्त्रता से पहले इस देश में प्लेग, हैजा, और चेचक का भारी प्रकाप रहता था और इन महामारियों से मरने वालों की संख्या काफी बड़ी होती थी। अब भी ये महामारियों इस देश में पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं लेकिन अब ये काफी नियन्त्रण में हैं।
- मलेरिया और तपेदिक की व्यापकता में कमी आजादी के बाद मलेरिया सम्बन्धी स्थिति में विशेष परिवर्तन हुआ है इस शताब्दी के चौथे दशक में जब मृत्यु दर लगभग 31 प्रति हजार थी उस समय मलेरिया से मरने वालों की संख्या 16 प्रतिशत थी। अब मृत्यु दर 8.9 प्रति हजार है।
(2) ऊंची जन्म दर के कारण
(1) कृषि की व्यापकता – भारत का मुख्य व्यवसाय कृषि है। खेती में लगे हुए लोगों के लिए बालक लम्बे अर्से तक भार नहीं होते। छोटी आयु में ही ये पशुओं को चराने, खेतों की रखवाली करने, निराई करने आदि में पिता का हाथ बंटाने लगते हैं। इसलिए किसान अधिक सन्तान को बुरा नहीं समझते। भारत में जहां खेती के तकनीक पिछड़े हैं और जहां कृषि कार्य में जुताई और फसलों की कटाई, निराई आदि के लिए ज्यादा श्रम की आवश्यकता होती हैं वहां बाल श्रम को उपयोगिता से इनकार नहीं किया जा सकता।
(2) ग्रामों की प्रधानता पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में शहरों की संख्या और उनमें रहने वाली जनसंख्या का अनुपात बहुत कम है। भारत में 27 प्रतिशत शहरों जनसंख्या की तुलना में इंग्लैंड और जर्मनी की जनसंख्या का क्रमश: 92 प्रतिशत और 86 प्रतिशत भाग शहरों में निवास करता है। शहरों में आवास की समस्या, बच्चों का महंगा लालन-पालन, संयुक्त परिवार का टूटना आदि वे बहुत सारे कारण है जिनसे जन्म दर में कमी होती है।
(3) गरीबी जनसंख्या का माल्यवादी सिद्धांत यूरोप में काफी समय पहले से ही गलत मानकर त्याग दिया गया था, लेकिन अल्प विकसित देशों में अति जनसंख्या को आधार बना कर गरीबो की व्याख्या करने के लिए उसका इस्तेमाल अब फिर से किया जाने लगा है। भारत के सन्दर्भ में इस दृष्टि से वेरा एस्टे का यह कथन काफी महत्वपूर्ण हैं ये लिखती हैं, ” उत्पादकता में वृद्धि, आर्थिक संगठन में सुधार, लोगों के स्वास्थ्य को प्रोत्साहन और औद्योगीकरण की दिशा में प्रगति चाहे जितनी क्यों न हो, जनसाधारण का जीवन स्तर एक संतोषजनक स्तर पर तब तक न पहुंचेगा और न ही व पहुंचाया जा सकेगा जब तक कि जनसंख्या का आकार आर्थिक संसाधनों के साथ ठीक ढंग से समंजित नहीं होता माल्थसवादी सिद्धांत के आलोचक इस दृष्टिकोण को ठीक नहीं मानते।
(3) सामाजिक कारण
(क) विवाह के समय कम उम्र होना-
भारत में 1981 में स्त्रियों को विवाह के समय औसत आयु 18.33 वर्ष थी। इसके बाद के वर्षों के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है। जनसंख्या विशेषज्ञों की राय में स्त्रियों का कम उम्र में विवाह उनकी ऊंची जननक्षमता का कारण है। एन० सी० दास की जांच से पता चला है कि 20 से 24 वर्ष के बीच विवाह करने वाली स्त्रियों की जनक्षमता 20 वर्ष से कम उम्र में विवाह करने वाली स्त्रियों के बराबर ही होती है। जब विवाह की उम्र 25 यो अधिक होती हैं तभी जननक्षमता कुछ कम होती है। भारत में इस समय भी स्त्रियों की विवाह के समय औसत आयु 20 वर्ष के आस-पास होनी चाहिए, इसलिए यह कारक जननक्षमता को नीचे आने में बराबर बाधक रहेगा।
(ख) धार्मिक और सामाजिक अन्धविश्वास-
साधारण भारतीय की दृष्टि से सन्तान का जन्म ईश्वर की कृपा है। वे इसमें हस्तक्षेप ठीक नहीं समझते। रूढ़िवादिता के कारण भारतीय विवाह होते हो सन्तानोत्पत्ति में लग जाते है। बहुत सारे व्यक्ति तो पुत्र जन्म की इच्छा से उस समय तक सन्तानोत्पत्ति करते रहते हैं जब तक कि उनकी मनोकामना पूरी नहीं हो जाती।
(ग) संयुक्त परिवार प्रथा
भारतीय नगरों में हालांकि संयुक्त परिवार प्रणाली टूटने लगी है फिर भी गाँवों में यह अब भी जीवित है। संयुक्त परिवार में अक्सर माता-पिता पर सन्तान के लालन-पालन का भार और उसकी शिक्षा की जिम्मेदारी अनिवार्य रूप से नहीं होती। यदि परिवार का मुखिया अथवा कोई सदस्य रोजगार में लगा हुआ है जिससे पर्याप्य आय हो रही हैं तो सन्तान पैदा करने से पहले युवा दम्पत्ति कोई जिम्मेदारी अनुभव नहीं करते। वे यह मानकर चलते हैं कि उनकी सन्तान के पालन की जिम्मेदारी भी परिवार के कर्ता अथवा मुखिया पर ही है।
(घ) शिक्षा का अभाव-
भारत में अशिक्षा व्यापक है। 1991 की जनगणना के अनुसार उस वर्ष 52.21 प्रतिशत लोग साक्षर थे। स्त्रियों में साक्षरता और भी कम अर्थात 39.29 प्रतिशत धी जबकि पुरुषों में साक्षरता अनुपात 63-86 प्रतिशत था। स्त्रियों में साक्षरता प्रायः शहरी क्षेत्रों में केन्द्रित हूँ और निरक्षरता सबसे ज्यादा पिछड़े राज्यों में है। अनेक अर्थशास्त्रियों की राय हैं कि केवल शिक्षा से ही परिवार, विवाह और बाल जन्म के विषय में लोगों के विचार बदल सकते है। जब तक बड़ी संख्या में लोग अशिक्षित रहेंगे उनके अन्ध विश्वास नहीं बदलेंगे और चाहे बड़े परिवार से उन्हें गरीबी का फतना ही सामना क्यों न करना पड़े वे इस सम्बन्ध में अपने विचार नहीं बदलेंगे।
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(ङ) संतति निरोधक उपायों का सीमित उपयोग
विश्व बैंक के अनुमान के अनुसा 1989 की पांच वर्षों की अवधि में भारत में संतानोत्पत्ति में सक्षम आयु वर्ग की केवल 43 प्रतिशत स्त्रियाँ संतति निरोधक उपायों का प्रयोग करती थी जबकि चीन में इस आयु वर्ग में आने वाली 83 प्रतिशत स्त्रियों ने संतति निरोध के उपायों का प्रयोग किया। परन्तु एस० चन्द्रशेखर के में अन्य अल्प विकसित देशों की भाँति धार्मिक मान्यताओं के आधार पर कहीं भी परिवार नियोजन की अनुसार भारत विरोध नहीं दिखाई पड़ता।
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