जनजाति की अवधारणा की विवेचना कीजिए।

जनजाति की अवधारणा व्यक्ति के जीवन को तीन भागों में विभक्त किया गया है- नगरीय समुदाय, ग्रामीण समुदाय तथा आदिम या जनजाति समुदाय से हमारा आशय मानव के ऐसे समूह से होता है जो कि सभ्य कहे जाने वाले क्षेत्रों से दूर जंगलों में, पहाड़ों एवं नदियों के बीच के जंगली क्षेत्रों में निवास करते हैं तथा वे जीवन के लगभग हर क्षेत्र में पिछड़े हुए माने जाते हैं। इनकी अपनी तथा विशिष्ट संस्कृति होती है तथा जो सामाजिक जीवन में कुछ सामान्य निषेधों का पालन करते हैं। डा० मजूमदार ने जनजाति की परिभाषा देते हुए लिखा है, “एक जनजाति परिवारों अथवा परिवारों का संकलन है जो एक सामान्य नाम के द्वारा पहचाना जाता है, जिसके सदस्य एक सामान्य भू-भाग में रहते हैं, सामान्य भाषा बोलते हैं, विवाह, व्यवसाय और आर्थिक कार्यों में कुछ निषेधों का पालन करते हैं तथा सामाजिक दायित्वों के क्षेत्र में पारस्परिक आदान-प्रदान की एक संगठित प्रणाली को विकसित करते हैं।”

गिलिन और गिलिन लिखते हैं, “जनजाति का अर्थ स्थानीय आदिम समूहों के किसी भी ऐसे समूह से है जो एक सामान्य क्षेत्र में रहता है, एक सामान्य भाषा बोलता है तथा एक सामान्य के अन्तर्गत व्यवहार करता है।”

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार घोषणा-पत्र पर टिप्पणी लिखिये।

अपनी भिन्न प्राकृतिक, भौगोलिक तथा सांस्कृतिक विशेषताओं के कारण जनजातियों का जीवन हमारे सभ्य समाज के जीवन से बहुत भिन्न है। ये जनजातियाँ विभिन्न प्रजातीय समूहों की प्रतिकूल स्वरूप है। चूँकि जनजातीय समुदाय के मिश्रण की प्रक्रिया उतनी क्रियाशील नहीं है जितनी कि हमारे समाज में है। इसीलिए उनकी शारीरिक विशेषताओं से हमें कुछ आदिम समाज की झलक देखने को मिलती है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top