इतिहास की भौतिकवादी – मार्क्स का कथन है कि समाज के भौतिक जीवन की अवस्थाएँ अन्तिम रूप से समाज की संरचना विचार, राजनीतिक संस्थाओं आदि का निर्धारण करती है। मार्क्स इस विचार से सहमत नहीं है कि भौगोलिक पर्यावरण या जनसंख्या आदि का कोई निर्णायक प्रभाव हो सकता है। यह सत्य है कि भौगोलिक पर्यावरण का सामाजिक जीवन और उसके विकास पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। फिर भी ऐतिहासिक भौतिकवाद इस तथ्य को स्वीकार नहीं करता है कि भौगोलिक पर्यावरण का यह प्रभाव “सब कुछ” अथवा इसके द्वारा सी समाज की संरचना, सामाजिक व्यवस्था की प्रकृति, एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था में परिवर्तन निर्धारित होती है। अर्थात् भौगोलिक पर्यावरण का सामाजिक जीवन पर निर्णायक प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि इतिहास इस बात का गवाह है कि भौगोलिक पर्यावरण के परिवर्तन एवं विकास की उपेक्षा कही अधिक तीव्र गति से सामाजिक परिवर्तन एवं विकास घटित होते हैं।
जैसे यूरोप का भौगोलिक पर्यावरण सदियों से परिवर्तन से अछूता रहा है जबकि पिछले तीन हजार वर्षों में उसी यूरोप में एक के बाद दूसरी सामाजिक आर्थिक व्यवस्थाओं के प्रादुर्भाव विकास और पतन हो चुका है। जिसमें आदिम साम्यवादी व्यवस्था, दास व्यवस्था, साम्यवादी व्यवस्था, पूँजीवादी व्यवस्था और रूस में समाजवादी व्यवस्था आदि। इसका अर्थ यह है कि भौगोलिक पर्यावरण सामाजिक विकास का प्रमुख या निर्णायक कारक नहीं है क्योंकि बहुत पहले से प्रायः अपरिवर्तित रहने वाला कारण अर्थात् भौगोलिक पर्यावरण एक दो सदी में ही क्रान्तिकारी रूप से परिवर्तित होने की प्रवृत्ति रखने वाला आर्थिक सामाजिक जीवन के विकास का कारण नहीं हो सकता।
सामाजिक प्रक्रिया की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
यह भी सत्य है कि समाज के भौतिक जीवन की अवस्थाओं की धारणा के अन्तर्गत जनसंख्या की वृद्धि भी आती है क्योंकि जनसंख्या और मानव समाज के मौलिक जीवन की अवस्था का एक आवश्यक तत्त्व है। एक न्यूनतम जनसंख्या के आभाव में समाज का भौतिक जीवन संभव नहीं है तो प्रश्न उठता है कि क्या मानव की सामजिक व्यवस्था के निर्धारण में जनसंख्या वृद्धि ही प्रमुख शक्ति है? इस सम्बन्ध में ऐतिहासिक भौतिकवाद का उत्तर है ही नहीं। विकास पर जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव नही हो सकता क्योंकि यह कारक नहीं बता सकता कि एक सामाजिक व्यवस्था का स्थान अमुक सामाजिक व्यवस्था ही ने क्यों ले लिया अन्य किसी व्यवस्था ने क्यों नहीं। यदि जनसंख्या वृद्धि सामाजिक विकास का निर्णायक कारक होता तो चीन की जनसंख्या अमेरिका से चार गुना अधिक है किन्तु अमेरिका का विकास चीन से अधिक हुआ है।
वास्तव में यह शक्ति ऐतिहासिक भौतिकवाद के अनुसार मानव अस्तित्त्व के लिए आवश्यक जीवन के साधनों को प्राप्त करने की प्रणाली में निहित है। यह उत्पादन प्रणाली का ही प्रभाव है कि जो इतिहास की घटनाओं को प्रमुख रूप से निर्धारित करती है। इस कारण इसे मार्क्स की इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या कहा जाता है।