इंग्लैण्ड की क्रान्ति को रक्तहीन क्रान्ति क्यों कहते हैं?

इंग्लैण्ड की क्रान्ति – सन् 1688 ई० इंग्लैण्ड में हुई क्रान्ति को वैभवपूर्ण क्रान्ति के नाम से जाना जाता है। इंग्लैण्ड में 1685 में चार्ल्स द्वितीय की मृत्यु के बाद उसका भाई जेम्स द्वितीय राज सिंहासन पर बैठा राज्यारोहण के समय परिस्थितियाँ उसके अनुकूल थी, लेकिन मात्रा 3 वर्षों यानी 1688 में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी कि अन्ततः उसे गद्दी छोड़कर फ्रांस भागना पड़ा। उसने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि उसकी वैधानिक स्थिति राजनैतिक समर्थन पर आधारित थी। उसने अपनी शक्तियों का प्रयोग कैथोलिकों के हित तथा ऍग्लिकनों पर प्रहार किया। स्वेच्छाचारी शासक बनने के अथक प्रयास किए प्रोटेस्टेन्स विरोधी न्यायालय स्थापित किए विश्वविद्यालयों पर आक्रमण किए।

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इससे टोरी दल के सदस्य सतर्क हो गए और हिंग दल का साथ देना शुरू किया। अतः इन परिस्थितियों में उसका पतन निश्चित था। इस क्रान्ति की विशेषता यह थी कि यह एक “रक्तहीन क्रान्ति” थी और इसके द्वारा जो रचनात्मक कार्यक्रम अपनाया गया था, उससे इंग्लैण्ड के संवैधानिक विकास की धारा को एक दिशा प्रदान की। इन सभी परिवर्तन क्रान्तिकारी होते हुए भी बिना रक्त बहाये शान्तिपूर्ण सम्पन्न होने के कारण इसे रक्तहीन क्रान्ति कहा जाता है।

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