इंग्लैण्ड की गौरवपूर्ण क्रान्ति के कारणों एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।

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इंग्लैण्ड की गौरवपूर्ण क्रान्ति- 1688 का वर्ष इंग्लैण्ड के इतिहास में विशेष रूप से राजनीतिक और वैधानिक महत्व का वर्ष माना जाता है। इस वर्ष स्टुअर्टवंश के शासक जेम्स द्वितीय के विरुद्ध इंग्लैण्ड की जनता ने एक शक्तिशाली क्रांति करके ब्रिटिश संसद और स्टुअर्ट वंश के शासकों के मध्य विगत दशकों से चले आ रहे वैधानिक संघर्ष को समाप्त कर दिया। इस क्रांति की प्रमुख विशेषता यह थी कि यह पूर्णतः रक्तहीन क्रांति श्री सभी परिवर्तन क्रांतिकारी होते हुए भी शांतिपूर्वक सम्पन्न हो गए थे इसलिए इस क्रांति को गौरवूपर्ण क्रांति व रक्तहीन क्रांति शानदार गौरवशाली आदि नामों से जाना जाता है।

गौरवपूर्ण क्रान्ति के कारण

(1) जन्म द्वितीय की निरंकुशता

जेम्स द्वितीय एक निरंकुश शासक था। वह

राजा के देवी अधिकार के सिद्धान्त में विश्वास करता था वह अपने कार्यों व नीतियों के लिए किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं था। वह स्वयं को न्यायपालिका के ऊपर समझता था। जनता को केवल आज्ञा पालन की सर्वोच्चता थी, जिससे ‘देवी अधिकारवादी व निरंकुश’ सम्राट जेम्स द्वितीय के विरुद्ध हो गई। सम्राट जेम्स द्वितीय के असंवैधानिक प्रयासों व स्वेच्छापूर्ण कार्यों का परिणाम और गौरवपूर्ण क्रांति के रूप में सामने आया।

(2) टेस्ट एक्ट की अवहेलना

इंग्लैण्ड की संसद ने चार्ल्स द्वितीय के शासनकाल में टेस्ट एण्ड कारपोरेशन एक्ट पारित किया था। इस अधिनियम के अनुसार सरकारी पदों पर केवल ऐंग्लीकन चर्च के अनुयायी ही नियुक्त किए जा सकते थे। इसके अतिरिक्त ऐसे व्यक्ति भी सरकारी बन सकते थे, जो ऍग्लीकन चर्च के प्रति स्वामिभक्त रहने की शपथ लेते थे। इस अधिनियम के द्वारा रोमन कैथोलिकों की सरकारी पदों पर नियुक्ति पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। परन्तु जेम्स द्वितीय रोमन कैथोलिक धर्म का कट्टर अनुयायी था। वह इंग्लैण्ड को एक कैथोलिक देश बनाना चाहता था। अतः उसने टेस्ट एण्ड कारपोरेशन एक्ट की खुली अवहेलना की। उसने शासन के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कैथोलिकों को नियुक्त कर दिया। इस प्रकार टेस्ट नियम की खुली अवहेलना करके तथा प्रशासन शिक्षा व न्याय व्यवस्था के क्षेत्र में अपनी इच्छानुसार अनुचित रूप से कैथोलिको को नियुक्त करके जेम्स द्वितीय ने इंग्लैण्ड की प्रोटेस्टेन्ट जनता को क्रुद्ध कर दिया।

(3) फ्रांस से मित्रता

जेम्स द्वितीय फ्रांस से सैनिक व आर्थिक सहयोग प्राप्त करके इंग्लैण्ड में निरंकुश राजसत्ता की स्थापना करना चाहता था। उस समय फ्रांस का शासक लुई चौदहवाँ था जो कट्टर कैथोलिक था, अतः सम्राटों में मधुर सम्बन्ध स्थापित हो गए, परन्तु इंग्लैण्ड की प्रोटेस्टेन्ट जनता इस मंत्री के विरुद्ध थी। इससे जनता जेम्स द्वितीय के विरुद्ध हो गयी।

(4) केन्टरबरी के सात पादरियों को बन्दी बनाना

केन्टरबरी के आर्कबिशप सेनक्रोफ्ट के नेतृत्व में सात पादरियों ने लिखित रूप से जेम्स द्वितीय की कैथोलिकों की धार्मिक सुविधाओं वाली घोषणाओं को अस्वीकृत कर दिया तथा उसे चर्च में पढ़ने से इंकार कर दिया। जेम्स द्वितीय के इसे राजद्रोह मानकर उन्हें बन्दी बना लिया। इन पादरियों पर राजद्रोह का अभियोग चलाया गया, परन्तु न्यायाधीशों ने पादरियों को निर्दोष घोषित कर दिया। इस घटना की दो ढंग से प्रतिक्रिया हुई प्रथम पादरियों के निर्दोष घोषित होने पर प्रोटेस्टेन्ट जनता में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई तथा द्वितीय इस घटना ने जेम्स द्वितीय के राजनीतिक अस्तित्व पर गहरा आघात किया। देश की जनता का आक्रोश भयंकर रूप लिए हुए विस्फोट के क्षण की प्रतीक्षा करने लगा।

(5) मन्मथ के डयूक्त का विद्रोह

मन्मथ का ड्यूक चार्ल्स द्वितीय का अवैध पुत्र था। इंग्लैण्ड के हिंग दल के नेता मन्मथ के डयूक को चार्ल्स द्वितीय का उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे, किन्तु चार्ल्स द्वितीय ने इसे अस्वीकृत कर दिया। चार्ल्स द्वितीय की मृत्यु और जेम्स द्वितीय के सिंहासनारोहण के बाद हिंग दल के प्रोत्साहन पर मन्मथ के ड्यूक ने विद्रोह कर दिया। दोनों पक्षों की सेनाओं में सेजपुर नामक स्थान पर युद्ध हुआ, जिसमें जेम्स द्वितीय की सेना की विजय हुई और मन्मथ के डयूक को बन्दी बनाकर मृत्युदंड दे दिया गया। इतना ही नहीं, जेम्स द्वितीय ने अपने विरोधियों व मन्मय के डयूक के समर्थकों का दमन करने के लिए ‘खूनी न्यायालय की स्थापना की तथा तीन सौ व्यक्तियों को मृत्युदण्ड देकर उनके शवों को पेड़ों से लटका दिया आठ सौ व्यक्तियों को निर्वासित कर दिया। जेम्स द्वितीय के इस अत्याचार व आतंकपूर्ण कार्य से जनता उससे घृणा करने लगी और देश में उसके विरुद्ध असंतोष शनैः-शनैः बढ़ने लगा।

(6) जेम्स द्वितीय की धार्मिक नीति

द्वितीय रोमन कैथोलिक धर्म का अनुयायी था, जबकि इंग्लैण्ड की जनता प्रोटेस्टेन्ट थी उसने जनमत की अवहेलना करके इंग्लैण्ड में रोमन कैथोलिक धर्म को सुदृढ़ बनाने का प्रयत्न किया, अतः देश का बहुमत उसके विरुद्ध हो गया। उसने सेना में केवल कैथोलिक की भर्ती प्रारम्भ की, अतः इंग्लैण्ड की जनता जेम्स द्वितीय के विरुद्ध हो गयी। जेम्स द्वितीय के विरुद्ध जनता में आक्रोश बढ़ने लगा।

(7) जेम्स द्वितीय के पुत्र का जन्म

10 जून, 1688 को जेम्स द्वितीय की दूसरी पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया। इस घटना को सुनकर इंग्लैण्ड की जनता स्तम्भित रह गई। जनता को यह भय था कि जेम्स के पुत्र को कैथोलिक स्कूल में शिक्षा प्रदान की जायेगी, यदि वह राजा बना तो अपने पिता की भाँति प्रोटेस्टेन्ट धर्म को समाप्त करने का प्रयत्न करेगा। इस भावी संकट से भयभीत होकर इंग्लैण्ड की जनता क्रांति की ओर मुखरित हुई।

इस प्रकार जेम्स द्वितीय अपनी चारित्रिक व प्रशासनिक कमियों के कारण देश की जनता का समर्थन प्राप्त करने में असफल रहा। पादरियों की गिरफ्तारी व अभियोग तथा जेम्स द्वितीय के यहाँ पुत्र जन्म की घटनाएँ जून, 1688 हुई थीं। इनके फलस्वरूप जनता ने एकमत होकर जेम्स द्वितीय के दामाद विलियम ऑफ आरेन्ज को इंग्लैण्ड की गद्दी संभालने के लिए आमंत्रित किया। उसने इंग्लैण्ड की जनता के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया और लगभग 15 हजार सैनिकों के साथ वह नवम्बर, 1688 में इंग्लैण्ड के बन्दरगाह टोरने पर उतरा। विलियम के आने की सूचना देश में आग की तरह फैल गई।

जेम्स द्वितीय के सभी विश्वासपात्र कर्मचारी अधिकारी सेना तथा उसकी पुत्री ऐन सब विलियम के पक्ष में हो गए। निराश होकर जेम्स द्वितीय अपने बच्चे व पत्नी सहित फ्रांस भाग गया। राज्य की मोहर को उसने टेम्स नदी में फेंक दिया। इस प्रकार रक्त की एक बूंद बहाये बिना इंग्लैंड में क्रांति संपन्न हो गई। इतिहास में इस प्रकार की क्रांति का कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। जेम्स द्वितीय ने भाग जाने के तुरन्त पश्चात् संसद ने एक प्रस्ताव पारित करके अधिकारों का घोषणा-पत्र तैयार किया (22 जनवरी, 1689 ई.) इसके आधार पर मेरी तथा विलियम को संयुक्त रूप से इंग्लैण्ड के सिंहासन पर आसीन कराया गया।

गौरवपूर्ण क्रांति के परिणाम

(1) निरंकुशता का अन्त

जेम्स द्वितीय द्वारा राजसिंहासन छोड़ने तथा इंग्लैण्ड से राजपरिवार सहित पलायन करने के साथ ही वहाँ पर निरंकुश राजसत्ता के सिद्धान्त का अन्त हो गया। गौरवपूर्ण क्रान्ति के परिणामस्वरूप सीमित तथा वैधानिक राजतंत्र का शुभारम्भ हुआ। इस क्रांति के पश्चात् इंग्लैण्ड की कार्यपालिका व न्यायपालिका पृथक-पृथक कर दी गई इतिहासकार रैम्जे म्यूर ने लिखा-इस स्मरणीय तथा नवीन युग-निर्मात्री घटना के फलस्वरूप इंग्लैण्ड में लोकप्रिय सरकार के युग का शुभारम्भ हुआ तथा सत्ता निरंकुश राजाओं के हाथ से निकलकर ससंद के हाथ में आ गयी।

(2) संसद की सर्वोच्चता को मान्यता

इस क्रांति ने संसद की सर्वोच्चता को स्थापित कर दिया। शासन की संपूर्ण शक्ति संसद के हाथों में केन्द्रित हो गई तथा कार्यपालिका की शक्ति भी शनैः-शनैः राजा के हाथों से निकलकर लोकप्रिय मंत्रियों के हाथों में आ गई, जो संसद के प्रति उत्तरदायी होते थे। अधिकारों के घोषणा-पत्र द्वारा संसद की सर्वोच्चता को मान्यता दी गई तथा राजा की शक्तियों पर विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध लगा दिये गए।

(3) चर्च से राजा के नियंत्रण की समाप्त

गौरवपूर्ण क्रांति का इंग्लैण्ड के धार्मिक जीवन पर भी अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा दीर्घकालीन प्रभाव पड़ा था। चर्च से राजा का नियंत्रण समाप्त करके संसद को चर्च का उत्तरदायित्व सौंपा गया, 1689 के बिल ऑफ राइट्स में यह नियम बना दिया गया कि रोमन कैथोलिक धर्म का कोई अनुयायी अथवा रोमन कैथोलिक स्वी का पति इंग्लैण्ड का राजा नहीं हो सकता था।

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(4) अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव

इस घटना में इंग्लैण्ड, फ्रांस व हालैंड की त्रिकोणीय राजनीति पर अपना निर्णायक प्रभाव छोड़ा था। 1688 की इस घटना के फलस्वरूप यूरोप महाद्वीप के इस राजनीतिक समीकरण का अन्त हो गया तथा एक नये समीकरण का सूत्रपात हुआ। इंग्लैण्ड व हालैण्ड का एक ही शासक हो जाने से इन देशों की कटुता का अन्त हो गया और उनमें स्थायी मित्रता स्थापित हुई। दूसरा महत्वपूर्ण परिवर्तन इंग्लैण्ड व फ्रांस के राजनीतिक सम्बन्धों के क्षेत्र में हुआ। अब दोनों देशों की मित्रता समाप्त हो गई। इसी प्रकार हालैण्ड व फ्रांस के मध्य पहले से ही सम्बन्धों में कटुता चली आ रही थी। इंग्लैण्ड व हालैंड की संयुक्त शक्ति अत्यन्त प्रबल होने के कारण वैदेशिक क्षेत्र में इंग्लैण्ड को अपना खोया हुआ सम्मान पुनः प्राप्त हो गया।

इंग्लैण्ड की गौरवपूर्ण क्रांति का महत्व

इस क्रांति ने बिना कोई रक्त-पात के ही इंग्लैण्ड के इतिहास को एक नयी दिशा प्रदान की, जिससे संवैधानिक विकास का मार्ग- प्रशस्त हुआ। इस क्रांति के द्वारा बाह्य परिवर्तन न के बराबर हुए और कानूनी दृष्टि से किसी नयी प्रणाली की स्थापना भी नहीं की गयी। इस क्रांति के कारण राज्य चर्च के सम्बन्ध में सहिष्णु व सामान्य हो गए तथा प्रोटेस्टेन्ट अपने नियमानुसार पूजा-पाठ करने के लिए स्वतंत्र हो गए। इस क्रांति ने सदैव के लिए संसद व राजतंत्र के मध्य सम्प्रभुता की समस्या को हल कर दिया अर्थात् इसके बाद से राजा पूर्णतः संवैधानिक और संसद के अधीन हो गया। इस क्रांति के बाद ही इंग्लैण्ड में प्रजातंत्र का विकास सम्भव हो सका। इस प्रकार इंग्लैण्ड के इतिहास में 1688 की रक्तहीन क्रांति मील का पत्थर साबित हुई।

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