इलिजाबेथ प्रथम की विदेश नीति का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं- एलिजाबेथ के स्काटलैण्ड से सम्बन्ध-एलिजाबेथ के शासनकाल में धर्म सुधार आन्दोलन के कारण स्काटलैण्ड वासी कैथोलिक से प्रोटेस्टेन्ट बन गये थे। इन्होंने यहाँ अनेक धार्मिक सुधर किये। इन साधारवादियों का दल प्युरिटल दल कहा जाता था। प्यूरिटल दल वाले यही सुधार इंग्लैण्ड में भी चाहते थे, फिर उन्हें एलिजाबेथ के विरोध के कारण सफलता नहीं मिली। स्काटलैण्ड वालों को अपनी रानी मैरी की जरा भी डर नहीं था। यद्यपि मैरी कट्टर कैथोलिक थी तथा उसका पति फ्रांसीसी द्वितीय उसका साथ देने को तैयार था तथा उनका उत्साह इतना बढ़ा हुआ था कि वे मैरी और फ्रांसीसी दोनों के विरुद्ध प्रोटेस्टेन्ट से मित्रता करने को तैयार हो गये।
स्पेन तथा इंग्लैण्ड में सम्बन्ध
मैरी को राज्य दिलाने के लिये कैथोलिक लोगों ने जो यन्त्र रचे उनसे फिलिप द्वितीय को पूरी सहानुभूति थी, किन्तु वह अपनी शत्रुता रखना चाहता था और दिखाने के लिये मैरी की मृत्यु के समय तक इंग्लैण्ड का मित्र भी बना रहा। उसे भय था कि यदि इंग्लैण्ड में युद्ध शुरू हो गया तो सम्भव है कि फ्रांस भी उसके खिलाफ हो जाये। यही भाव एलिजावेथ का भी था। वह भी खुले रूप से लड़ना नहीं चाहती थी, पर गुप्त रूप से फिलिप के शत्रुओं की सहायता करने को तैयार थी और जब से नीदरलैण्ड का राजद्रोह आरम्भ हुआ था, उस समय से इस बात का और भी अच्छा अवसर उसको प्राप्त हो गया था। नीदरलैण्ड फिलिप के राज्य में शामिल था। सन् 1572 ई. में इंग्लैण्ड इत्यादि कई प्रोटेस्टेन्ट रियासतों ने उसके धार्मिक अत्याचार से तंग आकर विद्रोह शुरू कर दिया विद्रोहियों का नेता विलियम आफ आरेंज (Willam of Orange) था। जिसका प्रपौत्र बाद को विलियम तृतीय के नाम से इंग्लैण्ड का राजा हुआ।
जब तक विलियम जीवित रहा, विद्रोही बराबर सफल होते रहे और फिलिप के लिये कुछ न हो सका। पर 1584 ई. में फिलिप के इशारे से उसकी हत्या कर डाली गई। इससे इंग्लैण्ड में सफलता की आशा होने लगी। एजिलाबेव यह कदापि नहीं चाहती था। अतः सन् 1586 ई. में उसने आर्ल ऑक्लॅस्टर को कुछ सेना देकर डच जाति की सहायता के लिये भेज दिया। परन्तु उसको युद्ध का कुछ भी अनुभव नहीं था। इस पर भी उसने डल लोगों को थोड़ी बहुत सहायता अवश्य दी और स्पेन के विरुद्ध कई लड़ाइयों में भी भाग लिया। इन्हीं में से एक में उसका भतीजा प्रसिद्ध लेखक और राजनीतिज्ञ सर फिलिप सिडनी मारा भी गया।
समुद्री युद्ध
समुद्र पर भी स्पेन से छेड़छाड़ शुरू हो चुकी थी। कोलम्बस ने स्पेन की सहायता से 1492 ई. में अमेरिका का पता लगाया था। इसके पश्चात् स्पेन वालों ने वहाँ जाकर बहुत से देश अपने अधिकार में कर लिये। अभी तक अंग्रजों को ऐसी बातों की और अधिक रूचि नहीं थी। सामुद्रिक व्यापार की ओर से इतने उदासीन थे कि ट्यूडर काल से पूर्व इंग्लैण्ड का अधिकांश विदेशी व्यापार नीदरलैण्ड, इटली तथा जर्मनी वालों के हाथ में ही था। परन्तु इस समय तक इंग्लैण्ड में जहाज भी बहुत कम थे। परन्तु रिफार्मेशन के समय से बड़ा भारी परिवर्तन दिखाई पड़ने लगा। यों तो हैनरी सप्तम ने भी कोलम्बस की यात्रा का वृत्तांत सुनकर जान कैवट इत्यादि को अपनी ओर से नये देशों का पता लगाने के लिए भेजा था। पर हेनरी अष्टम के समय में विशेषकर जल सेना की दशा बहुत कुछ सुधर गई थी और जनता में एक नवीन उत्साह दिखाई पड़ने लगा।
एजिलाबेथ के समय में स्पेन की शत्रुता के कारण यह उत्साह और भी बढ़ा और प्रत्येक जल सैनिक स्पेन को नीचा दिखना अपना कर्तव्य समझने लगा। अंग्रेजी जहाज दूर-दूर के समुद्रों में दिखाई पड़ने लगे। फिलिप की आज्ञा थी कि स्पेन के जहाजों के सिवाय और किसी देश के जहाज अमेरिकन उपनिवेशों से व्यापार न करने पाएँ। पर अंग्रेज मल्लांहों को इस निषेध आज्ञा की जरा भी चिन्ता न थी। अंग्रेजी मल्लाहों की इस घृष्टता से फिलिप बहुत रूष्ट हुआ। परन्तु अंग्रेजों को अब अपने ऊपर भरोसा हो चुका था। जब उन्हें रोकने का अधिक प्रयत्न किया गया तो उन्होंने स्पेन के उपनिवेशों में जाकर लूटमार शुरू कर दी। इसके अतिरिक्त जो जहाज सोना, चाँटी भरकर स्पेन को लाते थे, उन पर भी उन्होंने छापा मारना शुरू कर दिया। इससे कभी- कभी लाखों का माल उनके हाथ लग जाता था। ये लोग इसको चोरी या डकैती नहीं समझते
ड्रेक तथा रैले
फ्रांसीसी ड्रेक ने अपने सम्बन्धी हाकिन्स से भी अधिक प्रसिद्धि प्राप्त की। उसने हाकिन्स के साथ कई बार समुद्री यात्रा की थी और स्पेनी जहाजों को भी लूटा था। एक बार उसने पनामा में पहुँचकर एक पहाड़ी पर से पहली बार पैसिफिक महासागर को देखा प्रतिज्ञा की कि कभी न कभी अवश्य इस समुद्र की यात्रा करूंगा। सन् 1577 ई. में उसकी यह इच्छा पूर्ण हुई। वह पाँच जहाजों का एक छोटो सा बेड़ा लेकर प्लामथ से दक्षिणी अमेरिका की तरफ रवाना हुआ। परन्तु पैसिफिक महासागर तक स्वयं उसका पेलिकन नामक एक जहाज पहुँच सका ड्रेक ने अकस्मात पहुँच कर कई स्पेनी नगर लूटे और अपने जहाज को चाँदी सोने से खूब भर लिया। इसके पश्चात् वह पृथ्वी की प्रदक्षिणा करता हुआ सन् 1580 ई. में इंग्लैण्ड वापस आ गया। इससे पहिले किसी अंग्रेज न पृथ्वी की प्रदक्षिणा नहीं की थी। इंग्लैण्ड में बड़ी धूमधाम से ड्रेक का स्वागम हुआ और एलिजाबेथ ने स्वयं उसके जहाज में आकर उसे सर की उपाधि प्रदान की।
आर्मेडा की तैयारी
फिलिप की सहन शक्ति का अब अन्त हो चुका था। उसे अब यह कभी आशा नहीं रहीं कि कैथोलिक षड्यन्त्रों एजिलाबेथ का वध करके मैरी को बना देंगे क्योंकि मैरी का स्वयं सिरच्छेद हो चुका था इसलिये उसने इंग्लैण्ड से खुले आम युद्ध करने की तैयारी शुरू कर दी और उसी उद्देश्य से जहाजों का एक बड़ा भारी बेड़ा तैयार करना शुरू किया, परन्तु ड्रेक इस बेड़े की ताक में था। सन् 1587 ई. में उसने आकस्मात कडिज के बन्दरगाह पर हमला किया और बहुत से स्पेनी जहाजों को आग लगा दी। अंग्रेजी नाविकों को अपनी शक्ति पर पूरा विश्वास था। वे जानते थे कि स्पेनी जहाज केवल देखने ही में विकट मालूम होते हैं। वास्तव में अंग्रेजी जहाजों से कहीं अच्छे हैं। इसके अतिरिक्त अंग्रेज मुल्लाहों को जल युद्ध का अच्छा अभ्यास था, पर स्पेनी बेड़े में अधिकतर संख्या ऐसे सैनिकों की थी जो केवल जमीन पर लड़ना जानते थे, क्योंकि फिलिप का विचार था कि मार्ग में स्पेनी बेड़ों को कोई न रोक सकेगा और स्पेनी सेना इंग्लैण्ड पहुँच कर थलयुद्ध में शीघ्र ही अंग्रेजों को हरा देगी एलिजाबेथ के पास उस समय स्थायी सेना नहीं थी और स्पेनी सैनिकों की वीरता की दुनिया भर में धाक बैठी हुई थी।
अंग्रेजी विजय का परिणाम
अब एलिजाबेथ अपने शत्रुओं की ओर से निश्चिन हो गई। प्रोटेस्टेन्ट पक्ष को भी अब कैथोलिक से किसी प्रकार का भय न रहा। यूरोप में फिलिप ही कैथोलिक धर्म का सबसे बड़ा सहायक और संरक्षण था और जब उसी के लिए कुछ न हो सका तो और किसका भय रह गया? साथ ही अंग्रेजों की वीरता और पराक्रम की चर्चा समस्त यूरोप के देशों में फैल गयी, परन्तु इस पर भी युद्ध का अन्त नहीं हुआ। इसके पश्चात् भी 15 वर्षों तक स्पेन और इंग्लैण्ड में छेड़छाड़ जारी रही। अंग्रेज मल्लाह स्पेनी समुद्र तट पर बराबर लूटमार करते रहे और धीरे-धीरे स्पेन वाले भी उनका मुकाबला करना सीख गए।
फिलिप द्वितीय का चरित्र वर्णन कीजिए।
एलिजाबेथ और आयरलैण्ड
स्पेन से छुटकारा पाने के पश्चात् एलिजाबेथ ने आयरलैण्ड की तरफ ध्यान दिया। एलिजाबेथ ने अधिकतम अपने पिता की नीति का पलान किया। उसने वैरनों की शक्ति का कठोर विधि से दमन किया तथा बहुत से अंग्रेजों को आयरलैण्ड में बसने को भी भेज दिया। यहाँ के लोग बड़े कट्टर कैथोलिक थे। अंग्रेजों के यहाँ बसने के पश्चात् उनका कट्टरपन और भी बढ़ गया जिसका परिणाम यह हुआ कि सन् 1598 ई. में यहाँ धार्मिक तथा राजनीतिक अशान्ति के कारण एक विद्रोह शुरू हो गया जिसको दबने के लिये अर्ज ऑफ ऐक्स को भेजा, जो इस कार्य के लिए बिल्कुलआयोग्य था तथा वह वहाँ से बिना किसी आज्ञा के वापस आ गया। सन् 1601 में उसका सिर काट दिया गया और उसके स्थान पर लाई माऊंट जाय को आयरलैण्ड भेजा गया। इसने बड़ी योग्यता से काम करके यहाँ शान्ति स्थापित की, परन्तु आयरलैण्ड के निवासियों के दिलों से नफरत की भावनाएँ वह मिटा नहीं सका।
अतः एलिजावेथ अपनी विदेश नीति में सफल रही जिसका परिणाम यह हुआ कि इंग्लैण्ड की समुद्री शक्ति प्रथम नम्बर पर पहुँच गई और यह यूरोप का एक शक्तिशाली देश समझा जाने लगा।