हॉब्स के सम्प्रभुता के सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

हॉब्स के सम्प्रभुता के सिद्धान्त– हॉब्स द्वद्वारा प्रतिपादित सम्प्रभुता का सिद्धान्त उसके सामाजिक समझौते के सिद्धान्त से प्रभावित है। समझौते से स्थापित सम्प्रमु सर्वोच्चता सम्पन और निरंकुश है। उसका प्रत्येक आदेश कानून और उसका प्रत्येक कार्य न्यायपूर्ण है। उसे जनता के जीवन को नियंत्रित करने का असीमित अधिकार प्राप्त है तथा जनता को किसी भी प्रकार से उसे चुनौती देने का या उसका विरोध करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। हॉब्स कहता है- “जनता का एकमात्र कार्य सम्प्रभु के आदेशों का पालन करना है चाहे वे आदेश ईश्वरीय और प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध ही क्यों न हों। जनता के लिए उनका पालन करना ही न्यायपूर्ण और वैध है। सम्प्रभु को जनता की सम्पत्ति और प्राण उसकी सत्ता से ही सुरक्षित हैं।”

भारतीय लोकसभा के गठन की विवेचना कीजिए।

हॉक्स समस्त ऐसी संस्थाओं का विरोधी है जो सम्प्रभु की शक्ति को सीमित करने का प्रयास करती है। वह शक्ति के पृथक्करण एवं मिश्रित शासन व्यवस्था का भी विरोध करता है। वह कहता है कि ऐसी व्यवस्थायें अराजकता उत्पन्न करने वाली होती हैं। उसके अनुसार इंग्लैण्ड में उसके समय में होने वाले गृहयुद्ध का यही कारण था जिसकी वजह से लोग यह सोचते थे कि सर्वोच्च सत्ता राजा और संसद में विभाजित है अतः हॉब्स सम्प्रभुता को सम्पूर्ण अविभाज्य और असीम मानता है।

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