हॉब्स के मानव स्वभाव सम्बन्धी विचार- हॉब्स मनुष्य के स्वभाव का नकारात्मक चित्रण करता है। उसके अनुसार मानव आत्मकेन्द्रित, स्वार्थी एवं भयग्रस्त प्राणी है। उसमें शक्ति वृद्धि की लिप्सा निरन्तर बनी रहती है और तभी लुप्त होती है जब उसकी मृत्यु हो जाती है।
हॉब्स राज्य की उत्पत्ति के पूर्व की स्थिति को प्राकृतिक अवस्था कहता है। उसकी प्राकृतिक अवस्था मानव स्वभाव की तार्किक परिणित है। चूंकि मानव स्वभाव ईष्यालु, झगड़ालू एवं स्वार्थी है। अतः हॉब्स की प्राकृतिक अवस्था अराजकता का दूसरा नाम है जबकि जहाँ उसका सबसे निरन्तर संघर्ष या युद्ध चलता रहता है। इस अवस्था में मनुष्य का जीवन दुःखमय होना अवश्यम्भावी है और यहाँ किसी प्रकार की प्रगति की कल्पना नहीं की जा सकती।
बोदां के सम्प्रभुता की सीमाएँ बताइए।
हॉब्स के अनुसार, “ऐसी दशा में उद्योग, संस्कृति, जल परिवहन, भवन निर्माण, यातायात के साधनों, ज्ञान व समाज आदि का कोई स्थान नहीं था तथा मनुष्य का जीवन दीन, हीन, एकाकी, अपवित्र पाश्विक तथा क्षणिक था। वास्तव में हॉब्स में यह चित्रण एकांगी, काल्पनिक एवं अनैतिहासिक है।