हेनरी चतुर्थ की विदेश नीत- तीस वर्षीय युद्ध में फ्रांसीसी प्रतिष्ठा को बहुत धक्का लगा था। अतः शासक बनने के बाद हेनरी चतुर्थ की विदेशी नीति के दो लक्ष्य थे प्रथम तो वह यूरोप में फ्रांस को एक सम्मानित और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में स्थापित करना चाहता था, दूसरे वह स्पेन और आस्ट्रिया की शक्ति और सम्मान को समाप्त करना चाहता था। ये दोनों उद्देश्य ही उसकी विदेश नीति का प्रमुख आधार स्तम्भ थे। फ्रांस की राष्ट्रीयता की सुरक्षा के लिए उसने अपना धर्म परिवर्तन भी किया।
धर्म-परिवर्तन करने से पेरिस की कैथोलिक जनता उसकी पक्षपाती हो गयी। अतः अब स्पेन को अपनी सेनाएँ पेरिस से हटानी पड़ी। फ्रांस के गृह-युद्ध की समाप्ति होते ही उसने सन् 1595 ई. में स्पेन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। सन् 1598 ई. तक चलने वाले इस फ्रेंको-स्पेनिश युद्ध का अन्त वरविन्स की संधि के रूप में हुआ। इस संधि के अनुसार स्पेन ने हेनरी चतुर्थ के राज्यारोहण को मान्यता प्रदान कर दी। इस प्रकार फ्रांस के घरेलू मामलों में स्पेनिश हस्तक्षेप का अन्त करने में हेनरी चतुर्थ को सफलता मिली।
उपराष्ट्रपति की वास्तविक स्थिति ।
अब हेनरी को फ्रांस की सीमाओं की रक्षा करनी थी। अतः अब हेनरी चतुर्थ ने स्पेन के साथी इटली से सम्बंध बनाने के लिए सन् 1600 ई. में टस्केनी की राजकुमारी डी-मेडी सी से विवाह कर लिया और शीघ्र ही सम्पूर्ण इटली पर फ्रांस का अधिकार हो गया। उसने जर्मनी के मामलों में भी हस्तक्षेप किया और इस प्रकार वह फ्रांस का गौरव बढ़ाने और स्पेन और आस्ट्रिया का यूरोप में प्रभुत्व सीमित करने में सफल रहा।