हर्षवर्धन वंश के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिये।

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हर्षवर्धन वंश का पतन

हर्षवर्धन ने अपने शासनकाल में राजनैतिक एकता स्थापित की थी और सम्पूर्ण उत्तर भारत को एकसूत्र में बाँध दिया था। लेकिन हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात शीघ्र हो इस वंश का पतन हो गया। यद्यपि हर्षवर्द्धन का प्रशासन ‘उदार सिद्धांतों पर आधारित था, तथापि इसमें अनेक कमजोरियाँ थीं। पूरी व्यवस्था सामंती पद्धति पर आधारित थी। स्थानीय अधिकारियों के हाथों में शक्ति संचित हो गई। भूमि अनुदान की व्यवस्था ने अधिकारियों और प्रांतीय शासकों तथा स्थानीय तत्वों को अधिक प्रभावशाली बना दिया। कृषि पर अधिक बल देने से उद्योग-धंधों, व्यापार-वाणिज्य, मुद्रा व्यवस्था और नगरों के प्रचलन को धक्का पहुंचा, जिसने राज्य की आर्थिक स्थिति कमजोर कर दी। दान-दक्षिण में अधिक व्यय होने से भी आर्थिक व्यवस्था लड़खड़ा गई। प्रशासन पर कड़ा नियंत्रण नहीं रहने से अधिकारियों के अत्याचार बढ़ गए तथा अव्यवस्था एवं असुरक्षा बढ़ गई।

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चीनी यात्री स्वेनसांग स्वयं स्वीकार करता है कि उसे अनेक बार चोरों डाकुओं का जमना करना पड़ा और सम्राट की हत्या का भी प्रयास कत्रीज सम्मेलन के अवसर पर किया गया। इस प्रकार हर्षवर्धन की प्रशासनिक व्यवस्था बहुत कमजोर हो चुकी थी और राज्य के विघटनकारी तत्व शक्तिशाली हो गये थे अतः हर्ष की मृत्यु के तत्काल बाद ही उसका साम्राज्य नष्ट हो गया।

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