हर्ष-पुलकेशिन द्वितीय के सम्बन्ध पर प्रकाश डालिए।

हर्ष-पुलकेशिन द्वितीय के सम्बन्ध – दक्षिण के चालुक्य वंश का राजा पुलकेशिन द्वितीय हर्ष का समकालीन शासक था। पुलकेशिन द्वितीय क्षत्रिय शासक था। चीनी यात्री युनव्यांग (स्वेनसांग) 641 ई. में उसके दरबार में पहुँचा था। उसके अनुसार वह एक प्रतापी शासक था, परन्तु पड़ोसी राज्यों को तिरस्कार से देखता था। उसकी प्रभुता दूर-दूर तक फैली थी, उसके सामन्त उसके सेवक थे। इसी समय महाराज हर्ष की विजय पताका दूर-दूर तक फैल रही थी किन्तु चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय ने हर्ष की अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। अतः इसमें सन्देह नहीं था कि हर्ष ने चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय पर आक्रमण किया, परन्तु इसमें हर्ष पराजित हुआ। डॉ. स्मिथ का कथन है कि 630 ई. के लगभग पुलकेशिन द्वितीय नर्मदा नदी के दक्षिण में सबसे प्रतापी शासक था।

अर्थपचारिक शिक्षा की परिभाषा देते हुए उसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।

हैदराबाद ताम्रपत्र एवं एहोल अभिलेख से विदित होता है कि उसने अनेक राजाओं को पराजित किया तथा उसके साम्राज्य में कलिंग, कोशल, लाट, मालवा आदि प्रदेश सम्मिलित थे। अभिलेख से यह भी विदित होता है कि पुलकेशिन द्वितीय ने ‘सकलोत्तरापवेश्वर’ की तथा हर्षवर्धन को पराजित करने के बाद ‘परमेश्वर’ की उपाधि धारण की थी।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top