हड़प्पा की लिपि का ज्ञान मुख्यतः मुहरों पर मिलता है। इसके अतिरिक्त मृद्भाण्डों, कुल्हाड़ियों एवं ताम्र मुद्रिकाओं पर भी लिपियों के प्रमाण है। सैन्धव लिपि का सबसे पुराना नमूना 1853 ई. में मिला। 1923 ई. तक यह लिपि पूर्णतया प्रकाश में आ गई। इस लिपि में कुल 400 से 500 तक शिक्षर (पिक्टोग्राफ) है और चित्र के रूप में लिखा प्रत्येक अक्षर किसी ध्वनि, भाव, या वस्तु का सूचक है। सैन्धव लिपि में सबसे ज्यादा अंग्रेजी के यू अक्षर का चित्र प्राप्त हुआ है। इसी प्रकार लिपि के रूप में प्रयुक्त जीवों के चित्रों में सबसे अधिक मछली के चित्र का प्रयोग मिलता है। यह लिपि दायीं से बायीं ओर लिखी जाती थी।
जब अभिलेख एक से अधिक पंक्तियों का होता है तो पहली पंक्ति दावी से बायीं तथा दूसरी पंक्ति गायों से दावी लिखी जाती थी इसकी स्ट्रोफेदन (गोमूत्रिका) पद्धति कहा गया है। यह अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है। इसके पढ़े न जाने का कारण किसी भी द्विभाषिया लेख का न मिलना है। यद्यपि इसको पढ़ने का प्रयास कई लोगों ने किया जिनमें के. एन. वर्मा, एस. आर. सब, आई. महादेवन तथा रेवरण्ड हेरस आदि प्रमुख है।
विग्रहराज चतुर्थ के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
रेवरण्ड हेरस ने हड़प्पा की लिपि को बाएं से दाएं पढ़ने और उसे तमिल भाषा में परिवर्तित करने का दावा किया है। कुछ लोग इसे आद्य द्रविड़ एवं आद्य संस्कृत का प्रारम्भिक रूप मानते हैं। मेसोपोटामिया और मिस्र की लिपियों से इसका कोई सम्बन्ध दिखाई नहीं देता।