“गुप्तकाल भारत का स्वर्णकाल कहा जाता है।” विवेचना कीजिए।

गुप्तकाल भारत का स्वर्णकाल – गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग कहा जाता है। इसके निम्न कारण है-

( 1 ) राजनैतिक उपलब्धियाँ

गुप्तकाल में भारत में निम्नलिखित राजनैतिक उपलब्धियाँ अर्जित की

(i) विदेशी राज्य का अन्त तथा राजनीतिक एकता की स्थापना

गुप्त नरेशों ने बड़ी वीरता के साथ भारत के विभिन्न भागों को जीतकर उनको एक शासन के इन्डे के नीचे लाकर राजनीतिक एकता स्थापित की, जो सम्राट अशोक के पश्चात् लगभग समाप्त भी हो चुकी थी। कुछ सीमा तक अशोक के पश्चात् शुंग राजा दुष्यमित्र ने विदेशी हमलों को रोकने के लिए सफल प्रयत्न किये थे। परन्तु उसके पश्चात् तो विदेशी आक्रमणकारियों ने कश्मीर, सिन्ध, पंजाब, मथुरा, मालवा तथा गुजरात में अपनी शक्ति का सिक्का चलाया। गुप्त सम्राटों ने इन विदेशी राज्यों को एक-एक कर के समाप्त कर दिया बल्कि हूण जाति से भारत की रक्षा की इस महान कार्य को कुमारगुप्त तद स्कन्दगुप्त ने बड़ी सफलता के साथ किया। एक विद्वान के शब्दों में “विदेशियों के विरुद्ध भारत क स्वतंत्रता की रक्षा की जो महान कार्य गुप्त राजाओं ने किया उससे भारत में राष्ट्रीय जागृति उत्पन्न हुई। राजनैतिक क्षेत्र में गुप्त राजाओं की यह उपलब्धि भी महत्वपूर्ण दृष्टि से देखी जाती है।”

(ii) श्रेष्ठ शासन की स्थापना

गुप्त सम्राटों ने केन्द्रीय तथा प्रान्तीय शासन को शक्तिशाली बनाया जिसके कारण यह राज्य लगभग 250 वर्षो तक टिका रहा। फाह्यान के लेखों में भी पता चलता है कि गुप्त साम्राज्य का शामन बहुत उच्च कोटि का था। चारों ओर सुरक्षाको व्यवस्था थी और दण्ड बहुत हल्के थे। चोर डाकुओं को गुप्त सम्राट का इतना भय था कि ये मार्ग में यात्रियों को लूटने से डरा करते थे। सरकारी अधिकारी भी साधारण जनता को तंग नहीं करते थे।

(2) धार्मिक क्षेत्र की उपलब्धियाँ-

इसके अन्तर्गत गुप्त साम्राज्य में निम्नलिखित धार्मिक उपलब्धियाँ प्राप्त हुई जिनके कारण यह काल भारतीय इतिहास में स्वर्ण युग कहलाता है।

(i) हिन्दू धर्म का पुनरूत्थान

शुंग राजाओं के शासन काल में ब्राह्मण (हिन्दू) धर्म की उन्नाति प्रारम्भ हो गई थी। सातवाहन वंश के राजाओं के काल में यह उन्नति बराबर होती ही रही, परन्तु गुप्त काल में हिन्दू धर्म की बड़ी उन्नाति हुई क्योंकि गुप्त सम्राट विष्णु के उपासक थे। और अपने आप को भागवत कहते थे। इन वंश के सम्राटों ने ब्राह्मणों को आदर्श की दृष्टि से देखा जाता था, यज्ञ तथा हवन किए जाते थे, जाति प्रथा गीता तथा बेटों पर विश्वास प्रकट किया। इससे ब्राह्मण धर्म की बड़ी उ

(ii) धार्मिक सहिष्णुता

गुप्त वंश के सम्राट हिन्दू धर्म (ब्राह्मणधर्म) को मानते थे। उनमें साम्प्रदायिक भावना का अभाव था। इसी कारण इस वंश के शासन में धार्मिक सहिष्णुता बनी रही जिसका अच्छा परिणाम निकला।

(iii) धार्मिक स्वतंत्रता

गुप्त वंश के शासन काल में देश में धार्मिक स्वतंत्रता बनी रही। सभी धर्मों का समान रूप से विकास हुआ। एक परिवार के सदस्य अलग-अलग धर्म के अनुयायी थे। जैसे सम्राट कुमार गुप्त शैव, उनके पुत्र पुरुगुप्त बौद्ध तथा दूसरा पुत्र स्कन्द गुप्त वैष्णव था। इससे पता चलता है कि गुप्त काल के शासन काल में धार्मिक स्वतंत्रता थी।

(iv) धर्म परायणता

गुप्त वंश के राजा तथा उसकी जनता पूर्णरूप से धर्म परायण थे। इस काल में धार्मिक विश्वासों को सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त था तथा साधारण जनता का जीवन धर्ममय था। दान देना, दैनिक उपासना करना, व्रत रखना, स्नान करना, धार्मिक उत्सवों का आयोजन जीवन के आवश्यक कृत्य समझे जाते थे।

(v) भक्तिवाद की प्रधानता

गुप्त वंश के राज्य में भक्तिवाद की प्रधानता सबसे बड़ी उपलब्धि कही जाती थी। इसके कारण प्रजा का नैतिक स्तर बहुत ऊँचा उठ गया था। सार्वजनिक हित, अहिंसा, कल्याण तथा परोपकारी कार्यों से भक्तिवाद की प्रधान बढ़ गई थी। गुप्तकाल में अनेक धर्म, सम्प्रदाय तथा विश्वास प्रचलित थे परन्तु उनमें अद्भुत सहिष्णुता थीं। इस काल में मुख शान्ति, समृद्धि, सुरक्षा तथा सहिष्णुता का लाभ उठाकर सभी धर्मों ने अपने चरम उद्देश्य की प्रति के लिए कदम उठाये।

(3) सांस्कृतिक क्षेत्र की उपलब्धियां

गुप्त वंश के शासन काल में सांस्कृतिक क्षेत्र में निम्नलिखित उपलब्धियां प्राप्त की जिसके कारण इस युग को स्वर्ण युग कहा गया।

संस्कृति साहित्य की उन्नति

इस काल में संस्कृत साहित्य की बड़ी तेजी से उन्नाति हुई। इस काल में हरिषेण तथा वीरसेन जैसे महान कवि हुए। कालिदास इस काल के सबसे महान कवि थे। उनकी तुलना शेक्सपीयर से की जाती है। इस महान कवि तथा महान नाटककार ने मालविकाग्नि मित्र, अभिज्ञान शाकुन्तलम, कुमार संभव मेघदूत, ऋतु संहार और विक्रमवंशीय जैसे ग्रन्थों की रचन की। इनकी सबसे प्रसिद्ध रचना अभिज्ञान शाकुन्तलम है। इस कवि के अतिरिक्त इस काल में महाकवि हरिषेण था जिसने इलाहाबाद की प्रशस्ति को लिखा। इसी काल में वीरसेन, विशाखपर भारवि भी थे। इस काल में पुराणों का पठन-पाठन बहुत अधिक था कुछ पुराण इसी काल में लिये। गये और कुछ को आधुनिक रूप दिया गया। तीसरी शतब्दी में संस्कृत नाटक के नियमों और प्रसिद्ध अन्य नाट्य शास्त्र की भी रचना हुई जिसको भरत मुनि ने लिखा था। इसी काल में पंचतंत्र की भी रचना हुई। जिसका रचनाकार विष्णुशर्मा था। इस पुस्तक का संसार की प्रमुख चालीस भाषाओं में अनुवाद हुआ है। इसी के द्वारा भारतीय जन्तु कथाएं पश्चिमी देशों में फैली इसी काल में गुणाढ्य ने अपने पुस्तक वृहत्कथा भी लिखी। महाकवि अमर सिंह ने संस्कृत शब्दों का कोष भी तैयार किया जिसका नाम अमरकोष रखा गया। इस समय चन्द्र तथा जैनेन्द्र जैसे प्रसिद्ध व्याकरण लेखक भी हुये।

(4) शिल्प क्षेत्र में उपलब्धियाँ

इस काल में शिल्प विद्या की बड़ी उन्नति हुई। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में गुप्तकाल में बड़ी उन्नति हुई। सुदर्शन झील जो कि चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल में बनी थी, उसका बांध टूट गया। गुप्तकाल के इंजीनियरों ने इस पर दूसरा बांध बनाया। इस काल में जो मन्दिर बने उनमें ईंट पत्थरों का प्रयोग हुआ। इस काल में बड़ी सुन्दर मूर्तियाँ भी बनाई गई। इस काल में कला के क्षेत्र पर जो विदेशी प्रभाव था, वह भी मिट गया।

(5) विज्ञान के क्षेत्र में उपलब्धियाँ

गुप्तकाल में विज्ञान के क्षेत्र में भी उन्नति हुई इस ात में आर्यभट्ट जैसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक हुए इस विद्वान ने पहली बार यह प्रमाणित किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और सूर्यग्रहण तथा चन्द्रग्रहण राहू और केतु के कारण नहीं बल्कि पृथ्वी पर छाया गिरने से होते हैं। इस विद्वान ने दशमलव पद्धति का भी अविष्कार किया। इसी के द्वारा गणित तथा बीजगणित में कई महत्वपूर्ण सूत्रों का अविष्कार हुआ जिसका विज्ञान की दृष्टिकोण से बड़ा महत्व है।

गुप्तकाल में वराहमिहिर भी उच्चकोटि का ज्योतिषाचार्य था। उसने नक्षत्र विद्या, भूगोल, नक्षतों की गति तथा उनका मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है इस विषय पर विस्तारपूर्वक लिखा। भवननिर्माण कला, मूर्तिकला, तालाब तथा बांध बनाने के तरीके, तथा हीरे जवाहरात तथा विवाह सम्बन्धी नियमों पर उत्कृष्ट पुस्तकें लिखी गई।

( 6 ) औषधि विज्ञान में उन्नति

औषधि विज्ञान के क्षेत्र में भी इस काल में पर्याप्त उन्नति हुई। इस काल में बाणभट्ट जैसे उच्चकोटि के वैद्य हुए जिनकी गणना सूत्रत तथा चरक के पश्चात होती है। इस | युग के हाथी तथा थोड़ों के रोगों तथा चिकित्सा पर भी अच्छी तथा महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी गई।

(7) धातु-कला की उन्नति

गुप्तकाल में धातु-कला की भी बड़ी उन्नाति हुई। इस काल में चमकीले सुन्दर तथा बारीक कटाव वाले सिक्के बनाये गये जिनको बेटी महत्वपूर्ण दृष्टि से देखा जाता है। मेहरौली के चन्द्रगुप्त सम्राट का लौह स्तम्भ और नालन्दा में बुद्ध की तांबे की बनी हुई आठ फुट की मूर्ति भी इस काल में धातु कला उन्नति का परिचय कराती है।

(8) शिक्षा का उन्नति

इस युग में शिक्षा की भी बड़ी उन्नाति हुई, सबसे पहले संस्कृत एक भाषा का पठन पाठन शुरू हुआ, बौद्ध मठों में भी संस्कृत पढ़ाई जाने लगी। इस काल में तक्षशिला नालन्दा, अजन्ता तथा सारनाथ विश्वविद्यालय थे। इनके अतिरिक्त वाराणसी, मथुरा, कांची, पद्यमावती तथा उज्जैयिनी भी शिक्षा के महान केन्द्र थे और इनके द्वारा शिक्षा का तेजी से इस युग में विकास हुआ।

सुमेरियन धर्म पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

( 9 ) व्यापार तथा वाणिज्य की उन्नति

गुप्तकाल में वृहत्तर भारत की भी स्थापना हुई, क्योंकि सम्पूर्ण भारत में शांति समृद्धि रही, राजनीतिक एकता रही टैक्स हल्के थे और व्यापारियों को बड़ी सुविधायें भी प्राप्त थी। अच्छे बन्दरगाह भी गुप्त नरेशों के अधीन आ गये थे जिनके सहारे समुद्री व्यापार की बड़ी तेजी से उजाति हुई।

(10) वृहत्तर भारत की स्थापना

गुप्तकाल में वृहत्तर भारत की भी स्थापना हुई, बाली, जावा, सुमात्रा, मलाया तथा बोर्नियों में हिन्दू गये और उन्होंने यहां पर अपने उपनिवेश स्थापित करके वैदिक धर्म का प्रचार किया। इसी के साथ-साथ भारतीय संस्कृति का भी प्रचार किया। अतः गुप्तकाल में भारत ने सर्वाङ्गीण उन्नति की इसी कारण इस युग को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है।

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