गुप्त इतिहास में रामगुप्त की समस्या पर टिप्पणी लिखिए।

गुप्त इतिहास में रामगुप्त की समस्या – गुप्त अभिलेखों के आधार पर पहले विद्वानों का मानना था कि समुद्रगुप्त के पश्चात् उसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य सिंहासन पर बैठा। लेकिन बाद के समय में मिलने वाले निरंतर पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर कुछ विद्वानों ने इस मत को प्रतिपादित किया कि समुद्रगुप्त के बाद रामगुप्त नाम का एक व्यक्ति कुछ समय के लिए गुप्त वंश का शासक हुआ था। ऐतिहासिक अन्वेषणों के आधार पर विद्वानों ने इन दोनों के मध्य एक रामगुप्त नाम के राजा के अस्तित्व का पता लगाया है।

रामगुप्त की ऐतिहासिकता के सन्दर्भ में निम्नलिखित सूचनाएँ प्राप्त होती है। समुद्रगुप्त के पुत्र थे। अभिलेखों में भी उसके बहुत से पुत्र और पौत्रों का उल्लेख हुआ है। रामगुप्त अनेक समुद्रगुप्त का सबसे बड़ा पुत्र था। यह चन्द्रगुप्त द्वितीय का बड़ा भाई था। अतः रामगुप्त बड़ा भाई। होने के कारण समुद्रगुण के बाद गद्दी पर बैठा। यह स्वभाव से कायर, अयोग्य और निर्बल शासक था। उसके समय में शक नरेश ने उसके राज्य के ऊपर आक्रमण कर दिया। उसने एक अपमान जनक सन्धि शकों के साथ की। संधि के अनुसार उसे अपनी पत्नी ध्रुवस्वामिनी को शक शासक को भेंट में देना था। रामगुप्त को शक शासक से बचने का कोई उपाय नहीं सूझा और वह संधि की श के अन्तर्गत अपनी पत्नी ध्रुव स्वामिनी को शक नरेश को सौंपने के लिए तैयार हो गया। स्वभाव से स्वाभिमानी और वीर उसके छोटे भाई चन्द्रगुप्त द्वितीय को यह बात पसन्द नहीं आयी। वह ध्रुवदेवी। के वेश में शक नरेश के खेमे में चला गया और उसने शक नरेश की हत्या कर दी। इसके पश्चात् उसने अपने कायर भाई रामगुप्त की भी हत्या कर दी और उसकी विधवा पत्नी के साथ अपना । • विवाह कर लिया। इस घटना की पुष्टि के लिए निम्नलिखित साक्ष्य प्रस्तुत किए जा सकते हैं–

इस घटना का सर्वप्रथम उल्लेख विशाखदत्त द्वारा लिखित देवी चन्द्रगुप्तम् नाटक में हुआ है। 400-600 ई. के मध्य विशाखदत्त ने ‘देवीचन्द्रगुप्तम्’ नामक एक नाटक की रचना की। आजकल यह अन्य उपलब्ध नहीं है। केवल इसके कुछ उदाहरण ‘साहित्य दर्पण’ नामक पुस्तक में मिलते हैं। उससे रामगुप्त एवं ध्रुवदेवी के कथानक का कुछ आभास होता है। संजन काम्बे तथा शंगफली के अभिलेखों में परोक्ष रूप से देवी चन्द्रगुप्तम् नामक नाटक का वर्णन है।

इसी प्रकार बाणभट्ट के हर्षचरित में भी प्रसंगतयः इस घटना का उल्लेख किया गया है। बाण के ‘हर्षचरितम्’ में कहा गया है- दूसरे की पत्नी के लिए कामुक शकपति स्वी वेशधारी चन्द्रगुप्त ‘द्वारा मारा गया।’ ‘हर्षचरितम्’ के टीकाकार शंकराचार्य ने भी घटना का उल्लेख किया है। पूर्व मध्यकाल के शासक भोज ने भी अपने ग्रंथ श्रृंगार प्रकाश में इस घटना का उल्लेख किया है। 1000 ई. के आस-पास राजशेखर ने काव्य मीमांसा नामक ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में उसने लिया है भारत वर्ष के एक राजा शर्मगुप्त ने खस जाति के राजा को अपनी स्वी देकर सन्धि करनी चाह।। यह युद्ध हिमाचल प्रदेश में हुआ था।

चन्द्रगुप्त ने खस राजा की हत्या कर दी। खियाँ आज भी उ.प्र. में चन्द्रगुप्त की प्रशंसा में गीत गाती हैं। डॉ. भण्डारकर ने शर्मगुप्त का समीकरण रामगुप्त के साथ तथा खस राजा का समीकरण शक राजा के साथ किया। राजा भोज कृत ‘श्रृंगार प्रकाश’ से पता चलता है कि स्त्री वेशधारी चन्द्रगुप्त ने शक राजा को मार डाला था। दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष प्रथम की संजन प्लेट तथा इसी वंश के एक अन्य राजा गोविन्द चतुर्थ के संगली एवं काम्बे के ताम्र पत्रों से भी इस घटना का आभास होता है। एक अरबी ग्रन्थ ‘नुजूल- लुत-तवारीख? में भी इस घटना का उल्लेख है। इस ग्रन्थ में रामगुप्त को ‘रध्यात तथा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य को ‘वरकमारीस’ कहा गया है। काव्य मीमांसा एवं नुजुल लुत तवारीख नामक दोनों ग्रन्थों से • चिदित होता है कि युद्ध हिमालय पर्वत के पहाड़ी प्रदेश में हुआ तथा इसमें शक नरेश मारा गया।

कुछ विद्वान रामगुप्त की स्थिति के विषय में संदेह करते हैं, क्योंकि न उसका कोई सिक्का मिला न गुप्त वंशावली में उसका नाम है। भाई की विधवा स्त्री से विवाह करना प्राचीन भारत की मर्यादा के विरूद्ध था। गुप्त अभिलेखों में चन्द्रगुप्त द्वितीय को समुद्रगुप्त का पारिग्रहित पुत्र कहा गया है। इससे विद्वानों ने अनुमान लगाया है कि चन्द्रगुप्त द्वितीय समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी था। इससे इन दोनों के मध्य किसी अन्य सम्राट की होने की सम्भावना नहीं की जा सकती। परन्तु ये सब तर्क निर्बल है। रामगुप्त ने अल्पकाल के लिए राज्य किया था तथा वह काल अशान्ति का काल था। अतः ऐसे आपत्तिपूर्ण काल में वह अपनी मुद्राओं का निर्माण न करा सका होगा। यदि उसने कुछ मुद्राओं का निर्माण भी कराया होगा तो वह अल्प मात्रा में रही होंगी तथा कालान्तर में नष्ट अथवा विलुप्त हो गई होंगी।

कनिष्क की धार्मिक नीति का वर्णन कीजिए।

गुप्त वंशावली में पिता-पुत्र के नाम आते हैं। भाई के लिए उसमें कोई स्थान न था। उदाहरण के लिए ‘स्कन्दगुप्त’ एवं ‘पुरुगुप्त’ दोनों भाई थे। दोनों ने राज्य किया था, परन्तु ‘स्कन्दगुप्त’ के अभिलेखों में ‘पुरुगुप्त’ एवं ‘पुरुगुप्त’ के अभिलेखों में स्कन्दगुप्त’ का नाम नहीं मिलता। प्राचीन भारत में भाई की विधवा स्त्री के साथ विवाह करना निन्दनीय नहीं समझा जाता था। नारद स्मृति में कहा गया है कि पति के मर जाने विदेश चले जाने, अत्याचारी होने अथवा नपुंसक होने पर स्त्री को पुनर्विवाह का अधिकार है। नियोग जैसी प्रथा का भारत में वैदिक काल से ही प्रचलन रहा है। इस प्रकार चन्द्रगुप्त द्वितीय तथा ध्रुवदेवी का विवाह शास्त्र सम्मत मानी जा सकता है। अतः यह निश्चित है कि समद्रगुप्त तथा चन्द्रगु

बेशनगर के पास दुर्जनपुर नामक स्थल से प्राप्त तीन जैन मूर्तियों में महाराजाधिराज रामगु नामक शासक का अभिलेख मिला है। इस बात से भी रामगुप्त की ऐतिहासिकता सिद्ध होती है। भिलसा और ऐरण से प्राप्त ताम्र मुद्राएं रामगुप्त को ऐतिहासिक व्यक्ति बताती हैं।

इस प्रकार से साहित्यिक, पुरातात्विक एवं अभिलेखीय तीनों ही तरह के स्रोतों से रामगुप्त को ऐतिहासिक शासक स्वीकार किया जा सकता है।

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