ग्लोबल वार्मिंग पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।

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प्रस्तावना – प्रकृति द्वारा सम्पूर्ण जीवनमण्डल के लिए जल, थल तथा वायु के रूप में एक विशाल आवरण निर्मित किया गया है जिसे हम ‘पर्यावरण’ कहते हैं। यह पर्यावरण सभी के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है इसलिए इसके सन्तुलन के लिए प्रकृति द्वारा कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं, किन्तु हम मनुष्यों द्वारा समय-समय पर इस पर्यावरण सन्तुलन के प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन किया जाता रहा है तथा प्रकृति की महत्ता को भी अनदेखा किया जाता रहा है। इसीलिए आज मनुष्य तथा पशु-पक्षी अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं। जल, वायु, भूमि, ध्वनि प्रदूषण ने हमारे पूरे वातावरण को प्रदूषित कर दिया है जिसके परिणामस्वरूप यह प्रकृति द्वारा प्रदान की गयी जीवनदायिनी वायु, जल तथा भूमि ही हमारे लिए जीवनघातक बन गए हैं।

ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ

ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है ‘विश्वव्यापी तापमान वृद्धि’ । वर्तमान समय में वातावरण के ताप में वृद्धि सम्पूर्ण विश्व के लिए अति चिन्तनीय विषय है क्योंकि जिस गति से इसकी वृद्धि हो रही है वह सम्पूर्ण जीवनमण्डल के लिए अत्यन्त हानिकारक है।

ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा ‘पर्यावरण’

विषय को लेकर एक विश्वस्तरीय महासम्मेलन जापान के ‘क्योटो’ शहर में आयोजित किया गया, जिसका विषय ‘ग्लोबल वार्मिंग’ था। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों से यह पता चला है कि पृथ्वी के तापमान में अति तीव्रगति से वृद्धि हो रही है। इसी वृद्धि के कारण समुद्रों की कार्बन-डाई-ऑक्साइड ग्रहण करने की क्षमता में 50 प्रतिशत से भी ज्यादा की कमी होने की सम्भावना है। इससे ‘ग्रीन हाउस गैसों’ का और अधिक विकास होगा तथा तापमान में और अधिकता आएगी। समुद्र हर साल वायुमण्डल से करीब दो अरब टन कार्बन-डाई-ऑक्साइड को अपने भीतर समेट लेता है तथा ऐसे ग्रीन हाउस प्रभाव को कम भी करता है।

अध्ययनों द्वारा यह बात भी सामने आई है कि जापान तथा अमेरिका सहित यूरोप के 4 देश पूरे विश्व के लगभग बीसवें हिस्से में फैले हैं, परन्तु ये वातावरण में 80 प्रतिशत कार्बन गैस छोड़ते हैं तथा वायुमंडल में छोड़ी जाने वाली ग्रीन हाउस गैसों को करीब 25 से 30 प्रतिशत तो केवल अमेरिका द्वारा ही छोड़ दिया जाता है।

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ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ने से रोकने के उपाय

पर्यावरण रक्षण को समाप्त करने के लिए सर्वप्रथम ‘रियो डि जेनेरो’ ने 1992 में, फिर 1997 में क्योटो में एवं 1998 में ब्यूनस आयर्स में महासम्मेलन आयोजित किए जा चुके हैं। पर इन सम्मेलनों में सर्वसम्मति से कोई भी निर्णय नहीं लिया जा सका है क्योंों अमेरिका तथा जापान जैसे देश तो यह मानते हैं कि तापमान तथा मौसम परिवर्तन के लिए पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण उपस्थित नहीं हैं इसलिए इस विषय पर कानून बनाने की भी कोई आवश्यकता नहीं है। प्रमुख औद्योगिक देश ग्रीन हाउस को और अधिक बढ़ने से रोकने के लिए उसमें कटौती के लिए तैयार हैं। ग्रीन हाउस गैसों का करीब 17 प्रतिशत भाग इन औद्योगिक देशों द्वारा ही उत्सर्जित होता है। ये देश यह बात भूल रहे हैं कि विश्व की सम्पूर्ण जनसंख्या का 17 प्रतिशत हिस्सा भारत में रहता है, जबकि कुल जहरीली गैसों का केवल 4 प्रतिशत ही भारत द्वारा उत्सर्जित होता है।

उपसंहार – लगभग 140 देशों ने ‘क्योटो सम्मेलन’ में ताप वृद्धि को रोकने पर अपनी रजामन्दी व्यक्त की थी। औद्योगिक देशों द्वारा भी उत्सर्जित प्रदूषित गैसों के विस्तार पर अंकुश लगाने की उम्मीद है। जापान, अमेरिका एवं यूरोप के साथ 20 बड़े औद्योगिक देशों के ग्रीन हाउस गैसों के विस्तार पर रोक लगने की उम्मीद जताई जा रही है। इस समझौते के अनुसार यूरोपीय देश 8 प्रतिशत, अमेरिका 7 प्रतिशत तथा जापान ने 8 प्रतिशत की कटौती की स्वीकृति दे दी है। इस प्रकार ‘ग्लोबल वार्मिंग’ की समस्या से मुक्ति पाने की दिशा में ‘क्योटो सम्मेलन’ एक ऐतिहासिक कदम है, किन्तु इसको सफल बनाने के लिए और भी अधिक सार्थक प्रयास करने की आवश्यकता है।

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