प्रस्तावना – 26 जनवरी अथवा गणतन्त्र दिवस हमारे राष्ट्र का गौरवमयी पर्व है। 15 अगस्त, सन् 1947 को हमारा भारतवर्ष अंग्रेजों की दासता से मुक्त तो हुआ था परन्तु 26 जनवरी, 1950 को इसे सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न गणतन्त्र घोषित किया गया था। देश का शासन पूर्णरुपेण भारतीयों के हाथ में आ गया था तथा प्रत्येक भारतीय देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व का अनुभव करने लगा था। हमारे देश के इतिहास में यह दिन बहुत महत्त्वपूर्ण है।
गणतन्त्र दिवस
महान राष्ट्रीय पर्व 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों से मुक्त होकर हमने चैन की साँस ली थी, परन्तु अभी हमारी स्वतन्त्रता अधूरी थी। अभी भी हमारे भारतीय नेता पूर्ण स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे। 26 जनवरी, 1950 को हमारा यह सपना पूरा हुआ तथा जनता द्वारा बनाया गया संविधान लागू किया गया। भारत उस दिन एक ‘सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य’ घोषित हुआ। वह दिन देश के इतिहास में राष्ट्रीय गौरव का दिवस था। डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा तैयार संविधान को लागू करने की तिथि को लेकर काफी विचार विमर्श किया गया। 26 जनवरी, 1950 को इसे लागू किया गया। देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए गए। डॉ. अम्बेडकर द्वारा निर्मित भारतीय संविधान में 22 भाग, 9 अनुसूचियाँ तथा 395 अनुच्छेद हैं। इसी दिन सूर्योदय के समय भारत की राजधानी दिल्ली में भारतीय गणतन्त्र राज्य के रूप में नवीन युग का उदय हुआ था। इस दिन से ब्रिटिश शासक की सर्वोपरि सत्ता समाप्त हो गई तथा भारतीय गवर्नर जनरल राजगोपालाचार्य ने डॉ. राजेन्द्रप्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति का पद सौंपा था।
लोकतन्त्रात्मक गणराज्य में प्रत्येक वयस्क को अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है तथा जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि ही संसद के सदस्य होते हैं। संसद ही देश के लिए कानून बनाती है तथा संसद के हाथ में सरकार की वास्तविक सत्ता होती है। जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि ही राष्ट्रपति को चुनते हैं। सरकार की कार्यपालिका इन्हीं जन-प्रतिनिधियों के प्रति उत्तरदायी होती है। अतः 26 जनवरी, 1950 ही वह दिन है जब भारत वास्तविक जनतन्त्र बना।
26 जनवरी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
26 जनवरी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि अत्यन्त गौरवशाली है। 26 जनवरी, 1929 ई. को अखिल भारतीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में ‘रावी’ नदी के तट पर पं. जवाहरलाल नेहरू ने सिंह समान गर्जना करते हुए स्वतन्त्रता की माँग की थी। उन्होंने यह प्रण लिया था कि भारतीय स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए अपने प्राणों की भी आहुति दे देंगे तथा अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश कर देंगे। इस पूर्ण स्वतन्त्रता के समर्थन में 26 जनवरी, 1930 को ‘स्वराज्य दिवस’ मनाया गया। पूरे देश में राष्ट्रीय ध्वज के नेतृत्व में जुलूस निकाले गए, सभाएँ आयोजित की गई तथा प्रतिज्ञा पत्र पढ़े गए। इस दिन के लिए कितने ही लोगों ने कारावास की यातनाएँ सही तथा कितनो ने ही अपने प्राणों की आहुति दे दी। अतः लम्बे इन्तजार के बाद 15 अगस्त, 1947 को देश स्वतन्त्र हो गया। 26 जनवरी के ऐतिहासिक महत्त्व को बनाए रखने के लिए इसी दिन सन् 1950 को देश का नवीन संविधान लागू किया गया। हमारा संविधान यूँ तो दिसम्बर 1949 में ही बनकर तैयार हो गया था, परन्तु 26 जनवरी, 1950 को इसे कार्यान्वित किया गया।
गणतन्त्र दिवस मनाने की विधि
गणतन्त्र दिवस भारत के प्रत्येक छोटे-बड़े शहर-गाँव में बड़ी धूमधाम व हर्षोल्लास से मनाया जाता है। 26 जनवरी की पूर्व संध्या में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राष्ट्र के नाम अपने सन्देश में इस दिवस के महत्त्व को याद करते हुए नागरिकों को अपने कर्त्तव्यों के प्रति सचेत रहने की प्रेरणा देते हैं। यह एक सरकारी अवकाश का दिन होता है। नगरों में बड़े-बड़े जुलूस आयोजित किए जाते हैं। राज्यों में राज्यपालों को सलामी दी जाती है। सभी शिक्षण संस्थाओं में भी यह पर्व एक दिन पहले ही मना लिया जाता है। प्रधानाचार्य महोदय झंडा फहराते हैं तथा राष्ट्रगान गाते हैं। वे बच्चों को महापुरुषों के बलिदानों से अवगत कराते हुए देश की रक्षा का वचन लेते हैं। बच्चे सांस्कृतिक कार्यक्रमों, नृत्य, वादन आदि के माध्यम से देशभक्ति की भावना को प्रदर्शित करते हैं। इस दिन सभी राजकीय भवनों पर रोशनी की जाती है। राजधानी दिल्ली में तो इस समारोह की तैयारियाँ कई महीने पहले से ही प्रारम्भ हो जाती है।
दिल्ली में गणतन्त्र परेड का वर्णन
इस दिन दिल्ली में एक भव्य परेड निकलती है, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से असंख्य लोग आते हैं। 26 जनवरी को सूर्योदय से पहले ही बूढ़े बच्चे, स्त्री-पुरुष सुन्दर कपड़ों में सज धजकर इण्डिया गेट पर एकत्रित हो जाते हैं। इस दिन सुबह इंडिया गेट पर स्थित ‘अमर जवान ज्योति’ का अभिवादन प्रधानमन्त्री द्वारा किया जाता है। तत्पश्चात् राष्ट्रपति इस अवसर पर सैनिकों द्वारा निकाली जाने वाली परेड़ की सलामी लेने के लिए इंडिया गेट के पास ही स्थित मंच पर आते हैं। उनका दीनों सेनाओं अर्थात् जल सेना, थल सेना, वायु सेना के सेनाध्यक्षों द्वारा स्वागत किया जाता है। इस अवसर पर राष्ट्रपति द्वारा सैनिकों को उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित भी किया जाता है।
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इसके पश्चात् परेड आरम्भ होती है। इसमें सबसे पहले जल, थल तथा वायु सेना के वे अधिकारी होते हैं, जिन्हें परमवीर चक्र, अशोक चक्र तथा शौर्य चक्र आदि से सम्मानित किया जाता है। उसके पश्चात् सेना के तीनों अंगों की टुकड़ियाँ आती हैं। सीमा सुरक्षा बल, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस, केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल सहित अन्य अर्द्ध सैनिक बलों की टुकड़ियाँ भी परेड में हिस्सा लेते हैं जो राष्ट्रीय धुन बजाते हैं। इसके बाद सरकारी उपक्रमों सहित प्रत्येक राज्य की मनोरम तथा लुभावनी झाँकियाँ प्रस्तुत की जाती है, जो उस राज्य की संस्कृति एवं उपलब्धि को दर्शाती है। परेड के अन्त में स्कूली बच्चे करतब दिखाते हैं।
राजपथ से प्रारम्भ होने वाली यह परेड इंडिया गेट, कनॉट प्लेस होते हुए लालकिला पहुँचती है। परेड के अन्त में वायु सेना के विमान तिरंगी गैस छोड़ते हुए विजय चौक के ऊपर से गुजरते हैं कुछ विमान पुष्पों की वर्षा करते हैं, रंग-बिरंगे गुब्बारे उड़ाए जाते हैं। संध्या के समय सभी सार्वजनिक भवनों पर बिजली की जगमगाहट दर्शनीय होती है। अनेक स्थानों पर कवि सम्मेलनों, हास्य कार्यक्रमों तथा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
उपसंहार – हमारा यह राष्ट्रीय पर्व हमें देश पर बलिदान होने वाले अमर शहीदों की स्मृति दिलाकर हमारी आँखों में आँसू ले आता है साथ ही हमारे मुख पर स्वतन्त्रता की खुशी भी लेकर आता है। यह पर्व हमें संविधान के प्रति कृतज्ञ तथा निष्ठावान रहने की प्रेरणा देता है। हम भारतीयों का यह कर्त्तव्य है कि हम महापुरुषों के बलिदानों को व्यर्थ न जाने दे तथा अपनी भारत माता की तन, मन, धन से सेवा करें तथा बाहरी ताकतों से उसकी रक्षा करें।