गहड़वाल नरेश विजयचन्द्र की उपलब्धियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

गहड़वाल नरेश विजयचन्द्र की उपलब्धियों – गोविन्दचन्द्र के पश्चात् उसका पुत्र विजयचन्द्र (1155-1169ई.) शासक हुआ। उसके दो अन्य नाम मल्लदेव तथा विजयपाल भी मिलते हैं। गोविन्दचन्द्र के दो अन्य पुत्रों, अस्फोटचन्द्र तथा राज्यपालदेव, के नाम भी लेखों में मिलते हैं किन्तु वे शासक नहीं बन पाये। या तो उनकी मृत्यु पिता के समय में ही हो गयी अथवा विजयचन्द्र ने उन्हें उत्तराधिकार युद्ध में पराजित कर मार डाला। उसने लाहौर के मुसलमान शासक को परास्त किया था। उसके पुत्र जयचन्द्र के कमीली (बनारस) लेख में इसका विवरण मिलता है जिसमें कहा गया है कि उसने ‘पृथ्वी को विजित करते हुए हम्मीर की स्त्रियों के आँखों के आसुओं से, जो बदलों से गिरते हुए जल के समान थे, पृथ्वी के ताप का हरण किया। यह हम्मीर लाहौर के तुर्क शासक खुशये शाह अथवा खुशरोमलिक का कोई अधिकारी या जिसने पूर्व की ओर अपना राज्य विस्तृत करने का प्रयास किया होगा तथा इसी क्रम में गहड़वाल नरेश ने उसे पराजित कर दिया होगा। हम्मीर से तात्पर्य अमीर अथवा तुर्क शासक से ही है।

उत्तर में विजयचन्द्र के फंसे रहने के कारण पूर्व से सेना को उसके राज्य पर आक्रमण करने का अच्छा मौका मिल गया। इसका लाभ उठाते हुए बंगाल के सेनवंशी शासक लक्ष्मणसेन ने आक्रमण कर दिया। माधाई नगर लेख में कहा गया है कि उसने काशी नरेश को पराजित किया था। (येनाड सौ काशीराज समरभुवि विजिता)। लेकिन लक्ष्मण सेन को गहड़वाल साम्राज्य के किसी भी भाग पर अधिकार करने में सफलता नहीं मिल सकी। कमौली लेख से पता चलता है कि काशी के ऊपर विजयचन्द्र का अधिकार पूर्ववत् बना हुआ था। बिहार में सहसाराम क्षेत्र तक उसका अधिकार कम से कम 1168-69 ई. तक बना रहा जैसा कि वहाँ से प्राप्त ताराचण्डी प्रतिमालेख से विदित होता है। किन्तु पश्चिम की ओर विजयचन्द्र को मात खानी पड़ी। दिल्ली में इस समय तोमरवंश का शासन था।

हिन्दू धर्म में लैंगिक विषमता का विवरण दीजिये।

वे पहले गहड़वालों के सामन्त के रूप में शासन करते थे, किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि अब उन्होंने गहड़वाल सत्ता का जुआ उतार फेका तथा उसके स्थान पर चाहमानों को अपना संप्रभु स्वीकार कर लिया। शाकम्भरी के चाहमान शासक वीसलदेव (1153-1163 ई.) ने दिल्ली तथा हाँसी को जीतकर अपने अधिकार में ले लिया। ये प्रदेश पहले गहड़वालों की अधीनता में थे। इस प्रकार विजयचन्द्र के समय में गहड़वाल साम्राज्य की सीमायें संकुचित हो गयी।

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