गांगेयदेव कलचुरि की उपलब्धियाँ – सन् 1019 ई. में गांगेय देव कलचुरि अपने पिता कोकल्ल द्वितीय के बाद त्रिपुरी राजवंश की गद्दी पर बैठा। उसके राज्यारोहण के समय कलचुरि राज्य की स्थिति अत्यन्त निर्बल थी। परन्तु अपनी योग्यता व शक्ति से अपने राज्य को प्रबल बनाया। परमार भोज तथा चन्देल विद्याधर उसके प्रबल प्रतिद्वन्द्वी थे। विद्याधर की मृत्यु के बाद उसने अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दी तथा इस अवधि में उत्तरी भारत का सार्वभौम शासक बनने के लिए उसने अनेक विजय की प्रयाग और वाराणसी से और आगे यह पूर्व में बढ़ा। अपनी सेना लेकर वह सरलतापूर्वक पूर्वी समुद्र तट तक पहुँच गया तथा उड़ीसा को विजित किया। अपनी इन उपलब्धियों के कारण उसने ‘विक्रमादित्य’ का विरूद् धारण किया। उसने सालों की शक्ति की उपेक्षा करते हुए अंग पर आक्रमण किया। उसने कुछ समय तक मिथिला (उत्तरी बिहार) पर भी अधिकार जमाये रखा। उसने कीर प्रदेश तक धावा बोलकर मुसलमानों की शक्ति से लोहा लिया, क्योंकि कीर प्रदेश उस समय मुसलमानों के अधीनस्थ पंजाब का एक भाग था। सम्पूर्ण कलचूरि वंश में सिक्के प्रवर्तित करने वाला गांगेयदेव पहला और शायद अन्तिम राजा था। सिक्कों पर उसके साथ-साथ लक्ष्मी की आकृति भी उत्कीर्ण थी। सन् 1041 ई. में गांगेयदेव की मृत्यु हो गयी। इस प्रकार गांगेयदेव का एक विस्तृत भू-क्षेत्र पर अधिकार था।
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