एकीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।

एकीकरण की अवधारणा

एकीकरण सामाजिक प्रक्रियाओं के अध्ययन में एकीकरण तथा सात्मीकरण की अवधारणा का प्रयोग सामान्यता समान अर्थों में ही कर लिया जाता है, लेकिन यह सदैव ध्यान रखना आवश्यक है कि एकीकरण और सात्मीकरण के बीच कुछ आधारभूत भिन्नताएँ हैं। प्रस्तुत विवेचन में हम एकीकरण की प्रक्रिया के अर्थ और विशेषताओं को स्पष्ट करके सात्मीकरण की प्रक्रिया से इसकी प्रमुख मित्रताओं को स्पष्ट करने का प्रयत्न करेंगे।

एकीकरण वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत एक समाज के विभिन्न समूहों के बीच भावनाओं, मनोवृत्तियाँ और व्यवहारों के क्षेत्र में सामंजस्य की स्थिति उत्पन्न हो जाए। उदाहरण के लिए, हमारे समाज में यदि हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, पारसी, ईसाई आदि सभी समूहों के बीच कुछ व्यापक लक्ष्यों के प्रति समान भावनाएं, समान मनोवृत्तियाँ और समान प्रेरणाएँ उत्पन्न हो। जाएँ, तब इस प्रक्रिया को हम एकीकरण की प्रक्रिया कहेंगे। एकीकरण के इस अर्थ से कभी कभी यह भ्रम उत्पन्न होता है कि यदि समान भावनाओं, मनोवृत्तियों और व्यवहारों की स्थिति है। एकीकरण है, तब तो विश्व के किसी भी समाज में यह प्रक्रिया नहीं पायी जाएगी, क्योंकि किसी भी समाज के विभिन्न समूहों की मनोवृत्तियाँ, भावनाएँ और व्यवहार पूर्णतया समान नहीं हो सकते।

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इस भ्रम को दूर करते हुए गिलिन और गिलिन ने कहा है कि “एकीकरण समरूपता” न होकर संगठन है। इसका तात्पर्य है कि एकीकरण के लिए किसी समाज के सभी समूहों के मूल्यों और विचारों का बिल्कुल समान हो जाना आवश्यक है, बल्कि लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उनकी भावनाओं, मनोवृत्तियों और व्यवहारों में संगठन होना आवश्यक है। किसी समाज में एकीकरण की प्रक्रिया उतनी ही अधिक होगी जितनी अधिक मात्रा में व्यक्ति समूह समाज के उद्देश्यों को ही अपना उद्देश्य समझेंगे। इस प्रकार विभिन्न समूहों के बीच के भेद समाप्त हो जाने की स्थिति का नाम ही एकीकरण है। यह स्थिति संगठन की ओर संकेत करती है, समरूपता की ओर नहीं। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि “एकीकरण का तात्पर्य उन सम्बन्धों और व्यवहार के तरीकों से है जो समूहों और व्यक्तियों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं।”

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