एक शासक के रूप में अशोक का मूल्यांकन कीजिए।

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प्राचीन भारतीय इतिहास में ही नहीं बल्कि विश्व इतिहास में अशोक एकमात्र ऐसा व्यक्तित्व दिखायी पड़ता है जिसमें एक शासक के समस्त गुण विद्यमान थे। सम्राट अशोक का मूल्यांकन का वर्णन हम निम्नलिखित शीर्षक के अन्तर्गत कर सकते हैं

(1) योग्य सेनानायक

प्रारम्भ से ही अशोक में योग्य सेनानायक के सभी गुण विद्यमान थे कुशल सैनिक होने के नाते वह युद्ध की भीषणता से नहीं पबड़ाता था। तक्षशिला में विद्रोह का दमन कर और कश्मीर तथा कलिंग पर विजय प्राप्त कर उसने अपनी सैनिक कुशलता का परिचय दिया। उसके अपने शासनकाल में भी जब तक्षशिला में विद्रोह हुआ, तब उसने उसे उसी सख्ती से दबाया। उसके दृढसंकल्प होने का प्रमाण इसी से मिलता है कि कलिंग विजय के बाद उसने बुद्ध को सदा के लिए त्याग दिया। अब वह प्रजा के कल्याण में संलग्न हो गया। प्रजा के साथ उसका पिता और पुत्र जैसा व्यवहार था। उसकी धार्मिक नीति बड़ी उदार, सहिष्णु और व्यापक थी। वह समस्त धर्मो को आदर की दृष्टि से देखता था और समय-समय पर उनकी सहायता भी करता था। उसने आचरण की शुद्धि को विशेष महत्व दिया।

(2) महान शासक

अशोक एक उच्चकोटि का शासक था और जनता के साथ सद्व्यवहार रखता था। राजकर्मचारियों को आदेश था कि वे अपने-आपको प्रजा का सेवक मानकर कर्तव्यों का उचित रूप से पालन करें। उसने स्वयं भी जनहित के कार्यों की ओर विशेष ध्यान दिया। मनुष्य और पशु के दुःखनिवारण और कल्याणकार्य के प्रति अशोक दत्तचित्त हुआ। साधुओं, दरिद्रों और पीड़ितों के लिए दान की व्यवस्था की गई। यात्रियों की सुविधा के लिए मार्ग के हर आधे कोस पर कूप और विश्रामगृह बनवाए गए। उसने सारे जीवित प्राणिजगत के सुख और कल्याण के अर्थ में अथक उद्योग किया, क्योंकि उसके प्रेम, उदारता और सहानुभूति की कोई सीमा अथवा इनमें कोई अवरोध नहीं था। वह प्राणियों के प्रति अपने ऋण से मुक्त होना चाहता था।

(3) प्रजावत्सल सम्राट

अशोक एक प्रजावत्सल सम्राट था। वह सदैव प्रजा के कल्याण के लिए तत्पर था और उसका स्नेह प्राणिमात्र के लिए था। उसने अपने धम्म के माध्यम से जन कल्याण को व्यवहारिक रूप प्रदान किया। उसने अपने धम्म के प्रचार के लिए कुछ उठा नहीं रखा। उस राज-उपदेशक ने अवश्य ही यह समझा होगा कि अपने पूर्ण उत्साह के बावजूद अकेले उसके लिए धर्म के सन्देश को सुदूर के घर-घर पहुंचाना सम्भव नहीं। इसलिए उसने राजुको प्रादेशिकों और युक्तों को इस काम में लगाया और उन्हें पाँच-पाँच वर्ष धूम-घूमकर धर्म की शिक्षा देने की आज्ञा दी। इस विशेष कार्य के लिए धर्ममहामात्र तो थे ही काम करने का अशोक में अदम्य उत्साह या और वह निरन्तर परिश्रम करता रहता था। वह एक ही साथ कुशल राजनैतिक, कूटनीतिज्ञ, महान उपदेशक और धर्मप्रचारक भी था। क्षमा और सज्जनता की नीति का अनुसरण कर उसने अपनी धर्मविजय के द्वारा एक स्थानीय धर्म (बौद्ध धर्म) को विश्वधर्म में बदल दिया।

(4) अद्वितीय प्रशासक

अशोक की गणना विश्व इतिहास के अद्वितीय शासकों में की जाती है। उसकी महानता एवं कौशलता का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि उसने 40 वर्षों तक अपने विशाल साम्राज्य पर न केवल शासन किया अपितु साम्राज्य के सभी भागों में उस दीर्घावधि में पूर्णतया शान्ति बनी रही। आज भी उसका नाम आदर और श्रद्धा से लिया जाता है। उसकी तुलना मारकस आरोलियास, सन्त पॉल और कांस्टेटाइन से की जाती है, परन्तु वस्तुतः किसी भी ईसाई सम्राट ने उसके समान दिए गए उपदेशों को अपने विशाल साम्राज्य के शासन का आधार नहीं बनाया। विश्व के इतिहास पर सम्राट अशोक के उपदेशों ने मानव को सभ्य बनाने में सबसे अधिक प्रभाव डाला था। उसने उस युग में धार्मिक सहिष्णुता तथा मेलजोल के सद्गुणों का उपदेश दिय था, जब धार्मिक कट्टरता का बोलबाला था और बौद्ध तथा जैन सम्प्रदायों में आपसी फूट पैदा करने वाली प्रवृत्तियाँ कार्य कर रही थीं।

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(5) आदर्श धर्मराज्य स्थापक

स्थापित धर्म के उच्चतम आदर्शों के अनुसार धर्म का राज्य स्थापित करने के कारण उसकी तुलना इजरायल के डेविड (दाऊद तथा सोलोमन (सुलेमान) से की गई है। बौद्धधर्म का आश्रयदाता होने के कारण उसकी तुलना कांस्टेटाइन से की गई है। अपने साम्राज्य विस्तार में और कुछ अंशों में अपनी शासन पद्धति में भी वह शालीमाँ के समान था। उसके शिलालेख (सभी दुर्गुणों के बावजूद) पढ़ने और शिष्टाचार में ऑलिवर क्रामवेल के भाषणों की भाँति लगते है। अशोक की तुलना खलीफा उमर और अकबर से भी की जाती है। इन सभी तुलनाओं के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इतिहास में उसका स्थान बहुत उच्च है। और उसकी गणना महापुरुषों में अद्वितीय है। कुछ लोगों का मत है कि जिन महान सम्राटों से अशोक की तुलना की जाती है, यह उन सब में अद्वितीय है क्योंकि वे किसी भी क्षेत्र में उसकी समता करने की क्षमता नहीं रखते। पारस्परिक सहयोग के आधार पर उसने भारत में एक नवीन युग का प्रादुर्भाव किया और राजनीति में कट्टरता का अन्त कर प्रेम एवं सहानुभूति को स्थान दिया।

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