ईसाई परिवार की प्रकृति एक जैसी नहीं होती। सुविधा के लिए ईसाइयों को चर प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है-
- ईसाइयों की पहली श्रेणी उन व्यक्तियों की है। जो यूरोप से आकर भारत में बसे। इस श्रेणी के ईसाइयों की संख्या सबसे कम है।
- दूसरी श्रेणी उन ईसाई परिवारों की है जो हिन्दु अथवा इस्लाम धर्म को छोड़कर ईसाई बने हैं।
- तीसरी श्रेणी उन ईसाई परिवारों की है जिनके सदस्य पहली और दूसरी श्रेणी के मिश्रण का परिणाम है।
- सबसे निम्न श्रेणी के परिवार वे हैं जिन्होंने निम्न हिन्दू जातियों अथवा जनजातीय धर्म को छोड़कर ईसाई धर्म ग्रहण किया है।
भारत में दूसरी और चौथी श्रेणी के ईसाई परिवारों की संख्या सबसे अधिक है। इसी से यह स्पष्ट हो जाता है कि यूरोप से आकर भारत में रहने वाले ईसाइयों के परिवार पर पश्चिमी तथा आधुनिक संस्कृति का प्रभाव सबसे अधिक है जबकि दूसरी और चौथी श्रेणी के परिवारों में पश्चिमी संस्कृति तथा भारतीय संस्कृति का एक मिला-जुला रूप देखने को मिलता है।
भारतीय समाज के दार्शनिक आधार की विवेचना कीजिए।
इसके बाद भी सभी ईसाई परिवारों में शिक्षा का प्रभाव तुलनात्मक रूप से अधिक होने के साथ ही उनमें वैयक्तिक स्वतन्त्रता को अधिक महत्व दिया जाता है। इस दृष्टिकोण से ईसाई परिवार के उद्देश्यों तथा इसकी प्रमुख विशेषताओं को इस प्रकार समझा जा सकता है।