दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों का वर्णन कीजिए।

दिल्ली सल्तनत के पतन – दिल्ली सल्तनत (1206 ई. से 1526 ई.) लगभग 320 वर्षो तक स्थापित रही। इस काल में दिल्ली के सिंहासन पर कई राजवंशों ने शासन किया। इनमें गुलाम वंश, खिलजीवंश, तुगलक वंश, सैय्यद वंश व लोदी वंश सम्मिलित हैं। जबकि मुगल वंश की सत्ता 1526 ई. से 1857 तक कायम रही। दिल्ली सल्तनत में शीघ्र राजवंशीय परिवर्तन होते रहे, जो इसके पतन के लिए उत्तरदायी था सल्तनत काल में राजवंशीय परिवर्तन/ पतन के प्रमुख कारण निम्न थे-

(1) उत्तराधिकार का निश्चित नियम न होना

दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर जो जल्दी-जल्दी विभिन्न वंश के राज्य स्थापित हुये और जो एक इतिहास के एक लम्बे नाटक का दिग्दर्शन कराते हैं उसका मुख्य कारण यह था कि इनमें उत्तराधिकारी का कोई निश्चित नियम नही था। सुल्तान का जब देहांत हो जाता था तो उत्तराधिकारी का प्रश्न बड़ी गम्भीर परिस्थिति में पहुँच जाता था और अधिकतर तो युद्ध का रूप धारण कर लेता था। इससे राज्य की शक्ति का पतन होता था तथा बहुत दिनों तक देश उन्नति के मार्ग पर अग्रसर नही हो पाता था।

(2) उत्तराधिकारी के लिए प्रशिक्षण का अभाव

दिल्ली सल्तनत के युग में उत्तराधिकारी के लिए कोई प्रशिक्षण संस्था नहीं था। यदि राजकुमारों की शिक्षा के लिए कोई प्रशिक्षण संस्था होती तो उत्तराधिकारियों को शासन सम्बंधी शिक्षा देकर उनको शासन करने की विधि से परिचित करा दिया जाता और जब वह सुल्तान बनता तो अच्छे ढंग से राज्य करता। पूर्व मध्यकाल युग में यही बड़ी कमी रही तथा किसी न इस ओर ध्यान नहीं दिया जिसके कारण दिल्ली साम्राज्य के सिंहासन पर विभिन्न वंशों के सुल्तान बैठे और बहुत ही कम समय में उनके वंश का राज्य समाप्त हो गया और दूसरे वंश के राज्य की स्थापना हुई।

( 3 ) राज्य का सैनिक स्वरूप

सलानत युग का राज्य सैनिक शक्ति पर आधारित था यदि इस राज्य को सैनिक राज्य कहा जाय तो अनुचित न होगा। इस समय उसी सुल्तान के सफलता मिल सकती थी, जिसके पास विशाल सेना हो तथा वह स्वयं भी अच्छा तथा कुशल सेनापति हो। दिल्ली के अधिकांश सुल्तान कमजोर निकले जिनमें वीरता की कमी रही तथा वे अच्छे और कुशल सेनापति भी न थे, जिसके कारण वे गद्दी पर अधिक दिन स्थिर न रह सके। वीर पुरुषों ने उसको तुरंत मौत की गोद में सुलाकर अपने वंश के राज्य की स्थापना की। इसी कारण दिल्ली सल्तनत युग में पाँच वंशों के शासक गद्दी पर बैठे जिनका औसत शासनकाल 70 वर्षों से अधिक नहीं रहा।

(4) निरंकुश सुल्तान

कुछ दिल्ली के सुल्तानों ने निरंकुश होने की कोशिश भी की। ये अपनी नीति से अमीरों तथा सरदारों को नाराज कर बैठे जिनके कारण अमीरों तथा सरदारों ने उस शासक के विरुद्ध षडयंत्र रचने शुरू किए जिसके कारण शासन सम्बंधी बातों पर वह सुल्तान विशेष रूप से ध्यान न दे सका व सैनिक संगठन उचित ढंग से न कर सका, जिसके कारण राज्य का पतन हुआ। इस सिद्धांत के कारण भी दिल्ली सल्तनत काल में जल्दी-जल्दी शासक गद्दी पर बैठे, और उनका कार्य एक अभिनेता के समान हो गया, वह मंच पर आया अपना अभिनय करके चला गया और उसके बाद दूसरे ने उसका स्थान ले लिया।

(5) राष्ट्रीयता की भावना का अभाव

पूर्व मध्य युग की शासन व्यवस्था में राष्ट्रीयता की भावना की कमी रहीं क्योंकि जनता को किसी प्रकार से राज्य में भाग लेने का अवसर प्राप्त न हो सका और राजा ही सब कुछ बना रहा जिसके कारण दिल्ली सल्तनत काल एक नाटक के समान कहा जाता है जिसके स्टेज पर विभिन्न राज्य वंशों के शासकों ने राज्य किया।

(6) हिन्दुओं के विद्रोह

हिन्दुओं ने दिल्ली सल्तनत के युग में अवसर पाते ही स्वतंत्र राज्यों की स्थापना करने की चेष्टा भी की। कभी वे सफल भी हुए और कभी असफल दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर जब निर्बल तथा कमजोर शासक बैठा वे स्वतंत्र हो गए, परंतु जैसे ही शक्तिशाली सुल्तान गद्दी का स्वामी बना वे परतंत्र हो गये। हिन्दुओं के स्वतंत्र होने के प्रयास ने भी दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर जल्दी-जल्दी विभिन्न वंशों के सुल्तानों को बैठने का अवसर प्रदान किया।

(7) मंगोलों के आक्रमण

मंगोल दिल्ली सल्तनत के लिए नासूर के समान थे। जब इन पर ध्यान नहीं दिया गया इन्होंने उससे लाभ उठाया और राज्य पर आक्रमण कर राज्य की शक्ति का दमन कर दिया। इनके आक्रमणों के कारण दिल्ली राज्य की गद्दी पर विभिन्न विभिन्न वंशों के शासकों ने राज्य किया और एक वंश के पतन के पश्चात् दूसरे वंश का राज्य स्थापित हुआ। यदि मंगोल दिल्ली राज्य के लिए नासूर न बनते तो हो सकता था कि दिल्ली के तख्त पर इतनी जल्दी विभिन्न वंशों का राज्य न होता।

(8) उलेमाओं तथा सरदारों का प्रभाव

उलेमाओं ने धर्म के साथ-साथ राजनीति में भी भाग लेना शुरू किया। धर्म गुरू होने के नाते राजनीति में इनको अधिक सफलता प्राप्त हुई। सेना इनके हाथों में रही गुलाम वंश के शासन काल में बलबन के शासनकाल को छोड़कर ये लोग राजनीति पर छाए रहे। खिलजी वंश में अलाउद्दीन खिलजी और तुगलक वंश में मुहम्मद तुगलक के शासन काल में इनका पतन हुआ परंतु फिर भी इनका धार्मिक महत्व बना रहा। शेष दिल्ली के सुल्तानों के शासन काल में इनका प्रभाव इतना बढ़ गया कि सुल्तान इनके हाथों की कठपुतली के समान बना रहा। जब किसी सुल्तान ने इनके प्रभाव से मुक्त होना चाहा तो उसको अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा। इनके प्रभाव के कारण भी दिल्ली सल्तनत का युग एक लम्बे नाटक के समान रहा और शीघ्रता से राजवंशों का परिवर्तन होता रहा।

(9) अमीरों की शक्ति

दिल्ली के सुल्तानों के लिए अमीरों की शक्ति भी एक गम्भीर समस्या बनी रही। शक्तिशाली शासकों के शासन काल में ये दबे रहे, परंतु जैसे ही कमजोर शासक नदी पर बैठा इन्होंने विद्रोह करने शुरू कर दिये। मुहम्मद तुगलक का अन्तिम विद्रोह का युग कहलाता है। कुछ सुल्तानों ने इनकी शक्ति से मुक्त होना चाहा परंतु वे मार डाले गए। अमीरों की शक्ति के कारण ही दिल्ली सल्तनत युग के भिन्न-भिन्न राज्य वंशों का शासन जल्दी-जल्दी स्थापित हुआ।

(10) शासकों की धार्मिक नीति

मुसलमानों की धार्मिक नीति के कारण भी दिल्ली सल्तनत युग में जल्दी-जल्दी विभिन्न वंशों के राज्यों की स्थापना हुई। मुसलमानों ने हिन्दुओं से जजिया लेकर उनसे सैनिक सेवा नहीं ली और मुसलमानों से जकात ली। परंतु अजिया की नीति

से हिन्दू शासन से नाराज रहे। दिल्ली सुल्तानों ने शरियत के अनुसार राज्य किया जिसको धर्म का रूप दे दिया गया। सल्तनत काल में इस्लाम धर्म की उन्नति हुई और दिल्ली पर विभिन्न वंशों का राज्य स्थापित हुआ जिन्होंने केवल 70 वर्षों से अधिक राज्य नहीं किया।

(11) दास प्रथा का प्रभाव

दिल्ली राज्य की गद्दी पर जो जल्दी-जल्दी शासक बैठे उसका मुख्य कारण दास प्रथा थी, जिसने ऐसी दशा पैदा कर दी कि जल्दी-जल्दी भिन्न-भिन्नmवंशों के सुल्तानों ने शासन किया। कुछ इनमें सफल हुए और कुछ को मौत के घाट उतार दिया गया।

(12) स्थायी सेना का अभाव

दिल्ली में सुल्तानों के पास स्थायी सेना थी जिसके कारण वे प्रान्तीय सुबेदारों की शक्ति का दमन नहीं कर सके। यदि उन के पास स्थायी सेना होती तो इतनी जल्दी वंशों के राज्य परिवर्तन नहीं होते क्योंकि जब कभी दिल्ली का सुल्तान कमजोर पढ़ा तभी उसका किसी शक्तिशाली व्यक्ति ने वध करके अपने वंश के राज्य की नीव डाली।

(13) पश्चिमोत्तर सीमा की अनदेखी

दिल्ली के सुल्तानों की सीमा नीति की उदासीनता ने ही पाँच वंश के शासकों को दिल्ली के तख्त पर बैठने का अवसर प्रदान किया। सीमा नीति की उदासीनता के कारण ही मंगोलों को दिल्ली राज्य पर आक्रमण करने का अवसर प्राप्त हुआ। उनके आक्रमणों के कारण ही दिल्ली सल्तनत कमजोर पड़ गई और नवीन वंशों के राज्य स्थापित हुए।

(14) प्रजाहित के कार्यों की ओर उदासीनता

दिल्ली के सुल्तानों को गुटबंदी के. कारण इतना समय न मिला कि वे प्रजाहित के कार्यों की ओर अपना ध्यान देते। प्रजा को इनके राज्य में बहुत कम सुख मिला। इसी कारण दिल्ली सुल्तान प्रजा प्रिय न बन सके, जिसके कारण दिल्ली की गद्दी पर पांच वंशों के शासकों ने राज्य किया।

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(15) सामन्तों पर निर्भरता

दिल्ली सुल्तानों के पास स्थायी सेना नहीं थी। उनको सामन्त सेना पर निर्भर रहना पड़ता था। जब सुल्तान को आवश्यकता पड़ती तो वह सामन्त की सेना बुला लेना, जिसके सैनिक अच्छी तरह से शिक्षित नहीं होते थे। इसी कारण दिल्ली की गद्दी पर पाँच वंशों के शासकों ने राज्य किया।

(16) सुल्तानों का विदेशी नस्ल का होना

दिल्ली के सुल्तानों के राज्य को भारत की हिन्दू जनता ने सदा विदेशी समझा और उसकी दिल से सेवा नहीं की, जिसके फलस्वरूप दिल्ली के तख्त पर पाँच वंशों के सुल्तान जल्दी-जल्दी बैठे।

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