धर्मपाल की सांस्कृतिक उपलब्धिया
धर्मपाल प्रारम्भिक पालवंश का एक शक्तिशाली और योग्य शासक था। उसने पश्चिम में पंजाब से पूर्व में बंगाल तक उत्तर में हिमालय से दक्षिण में बरार तक अपनी सत्ता स्थापित की तथा महाराजाधिराज, परमेश्वर और परमभट्टारक जैसी उपाधियों धारण की। धर्मपाल बौद्ध धर्मानुयायी था। बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर उसने परमसौगत की उपाधि भी धारण की। वह एक योग्य प्रशासक भी था। नारायणपाल के भागलपुर अभिलेख में उसे उचित कर लगाने वाला अथवा सबके साथ समान व्यवहार करने वाला ‘समकर’ बताया गया है। यद्यपि वह बौद्धधर्म से विशेष रूप से प्रभावित था तथापि वह सभी धर्मों का आदर करता था। खलीमपुर अभिलेख में उसे सभी धर्मों का आदर करने वाला बताया गया उसका मन्त्री ब्राह्मण गर्न था।
उसने बौद्ध विद्वान हरिभद्र को भी संरक्षण दिया। उसने विक्रमशिला और है। सोमापुर विहारों की स्थापना की, बोधगया में चतुर्मुख महादेव की मूर्ति स्थापित करवायी तथा नालन्य विश्वविद्यालय को उदारतापूर्वक अनुदान दिया। धर्मपाल पालवंश का एक योग्य शासक था। खलीमपुर ताम्रपत्र अभिलेख के अनुसार उसने कन्नौज में एक दरबार किया, जिसमें भोज, मत्स्य, कुरु, बटु यवन, अवन्ती, गान्धार तथा कीड़ के शासकों ने भाग लिया एवं उसकी सार्वभौमिकता स्वीकार की।
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धर्मपाल ने पाटलिपुत्र में भी एक दरबार का अयोजन किया। अब वह वस्तुतः समस्त उत्तरी भारत का स्वामी (उत्तरापथस्वामी) बन गया।
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