धर्म सुधार आंदोलन के परिणाम– इसके प्रमुख परिणाम निम्नलिखित थे—
(1) धर्म सुधार आन्दोलन और बौद्धिक प्रगति – जिस बौद्धिक आंदोलन ने धर्म सुधार के उदय में सहायता दी थी, उसके प्रसार से उस आंदोलन को और बल मिला। अपने नवीन सिद्धान्तों को स्थापित करने के लिए प्रोटेस्टंट इस बात पर जोर देते थे कि प्रत्येक व्यक्ति को बाइबिल स्वयं पढ़ने और उसका स्वयं अर्थ लगाने का अधिकार है। वे समझते थे कि ऐसी स्वतंत्रता मिलने से लोग उन्हीं के रास्ते पर आ जाएँगे और कैथोलिक धर्म के बाह्यावर को भूलने लगेंगे। जहाँ कैथोलिक धर्म पूजा पर अधिक जोर देता था, वहाँ प्रोटस्टैंट धर्म व्यक्तिगत विचार और विश्वास पर अधिक जोर देता था प्रोटेस्टेंट धर्म शिक्षा के प्रचार कार्य पर विचार और विश्वास पर अधिक जोर देता था। प्रोटेस्टेंट धर्म शिक्षा के प्रचार कार्य पर अधिक जोर देता था।
धर्मसुधारकों को इस बात की बड़ी चिंता थी कि उनके उपदेश जनता के पास कैसे पहुँचें अभी तक धार्मिक पुस्तकें प्रधानतः लैटिन भाषा में थीं, जबकि सुधारकों ने अपनी रचनाओं और उपदेशों के लिए लोकभाषा को अपना माध्यम बनाया। जनसाधारण तक धार्मिक उपदेश फैलाने के विचार से अंग्रेजी और जर्मन आदि लोकभाषाओं में बाइबिल का अनुवाद हुआ और इससे देशी भाषा सबल और समृद्धशाली हुई।
(2) धर्म सुधार और राष्ट्रीय राजा की शक्ति में वृद्धि
धर्म सुधार के कारण राष्ट्रीय राजा की शक्ति और प्रतिष्ठा में और विकास हुआ। बिना राष्ट्रीय राजाओं की सहायता के प्रोटेस्टेंट आंदोलन का सफल होना संभव नहीं था। रोमन कैथोलिक चर्च अंतर्राष्ट्रीय संस्था थी और राजाओं की सर्वोच्च सत्ता को नहीं मानती थी, किंतु प्रोटेस्टेंट आंदोलन ने एक ओर चर्च के अधिकारों का विरोध किया और दूसरी ओर राज्य के प्रति अपनी आज्ञाकारिता और कर्तव्य की घोषणा की। उस समय पतनोन्मुख सामन्त वर्ग की अराजक प्रवृत्तियों को दबाने और नवोदित मध्यम वर्ग को सहायता पहुँचाने के लिए समाज में एक त्राता की आवश्यकता थी। धर्म सुधार ने राजा को भी इस त्राता के रूप में दीक्षित किया और कहा कि राजा नया मसीहा है और वही समाज का त्राण कर सकता है। दरअसल धर्मसुधार राज्य की अंतिम और सबसे बड़ी विजय थी। इसके कारण राजा ने न केवल चर्च पर ही अपना अधिकार जमाया, बल्कि अपने राष्ट्र की सीमाओं के भीतर अपनी सत्ता को और निद्वंद्व बनाया।
(3) धर्म सुधार और संवैधानिक प्रगति
शुरू में धर्म सुधार से राजा की शक्ति में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, किंतु बाद में इसी के कारण एक आधा देशों में राजा की शक्ति पर प्रतिबंध लगाने के भी प्रयत्न होने लगे और इससे देश में संवैधानिक प्रगति हुई। प्रोटेस्टेंटों की सहायता से जब इंग्लैण्ड के राजा ने अपनी शक्ति को सुदृढ़ बना लिया, तो 17 वीं शताब्दी के आरंभ में उन्होंने स्वेच्छाचारी शासन स्थापित करने का प्रयास किया। इंग्लैण्ड में राजा और संसद के बीच संघर्ष का एक प्रमुख कारण धार्मिक था। जब स्टुअर्ट राजा अपने ढंग का धर्म चलाने लगे और कैथोलिक देशों के साथ संबंध जोड़ने लगे तो इंग्लैण्ड में प्यूरिटनों ने उनका प्रबल विरोध किया। यहां तक कि इस कारण 1642 ई. में वहाँ गृह-युद्ध छिड़ गया और 1649 ई. में प्यूरिटनों ने वहाँ के स्वेच्छाचारी राजा चार्ल्स प्रथम को फॉसी पर लटका दिया। यह गृहयुद्ध राजा पर संसद की विजय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
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(4) धर्म सुधार और नवीन आर्थिक आदर्श
ऐसे तो लगता है कि धर्म का अर्थ से कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता, किंतु तत्कालीन अर्थव्यवस्था पर धर्म सुधार का गहरा प्रभाव पहा कालविनवाद ने व्यापार और वाणिज्य का समर्थन किया था। जहाँ पहले कैथोलिक पादरी धन प्राप्ति के मार्ग को नरक का मार्ग बताते थे, वहाँ अब प्रोटेस्टेंट संप्रदाय धन प्राप्ति को धर्मानुकूल बताने लगा। 16वीं शताब्दी में सूद और मुनाफे के संबंध में धार्मिक विचार बदलने लगे। प्रोटेस्टेंट धर्मावलंबियों ने सिखाया कि जो लोग धन प्राप्त करने के अवसर से लाभ नहीं उठाते हैं, वे ईश्वर की सेवा नहीं करते। अब सूद लेना और मुनाफा कमाना उचित बताया जाने लगा। अतएव वाणिज्य व्यापार पर से धार्मिक प्रतिबंधों के हट जाने से इनका तेजी से विकास हुआ।
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