धर्म में आधुनिक प्रवृत्ति – वर्तमान समय में धर्म उपयोगी न रहकर एक रूढ़िवादी संस्था के रूप में परिवर्तित हो चुका है। वर्ण व्यवस्था की उच्चोच्च परम्परा संस्कारों की कार्य विधि अनेक विधि निषेध और कर्म का सिद्धांत किसी समय अवश्य विशेष में रहे होगे, परंतु वर्तमान में इन्होंने न केवल व्यक्ति को एक निष्क्रिय और चेतना शून्य प्राणी बना दिया, बल्कि उसे श्रम एवं समूह कल्याण के आदर्श से भी दूर कर दिया।
धर्म के रूढ़िवादी तत्वों ने व्यक्ति को मोक्ष और परलोक की इतनी संकुचित धारणा से बाँध दिया है कि उसके सामने समूह और राष्ट्र के हित के सामने व्यक्तिवादी हितों को पूरा करना ही एक मात्र लक्ष्य रह गया है।
सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ व परिभाषा बताइए।
इन्हीं तत्वों ने देवदासी प्रथा, जाति व्यवस्था, अंतर्विवाह की संकीर्ण धारणा, स्त्रियों की निम्न स्थिति अस्पृश्यता, परिवार में कर्ता की स्वेच्छाचारिता, कुलीन विवाह और कर्मकण्डों पर आधारित पाखण्डवाद जैसी गम्भीर समस्याओं को जन्म दिया। वास्तविकता तो यह है कि एक लम्बे समय तक व्यावहारिक रूप से उपयोगी रह लेने के बाद हिन्दू समाज में आज अनेक विघटनकारी प्रवृत्तियाँ उत्पन्न होने लगी है जिसके फलस्वरूप धर्म व्यक्ति और समाज की प्रगति में बाधक बन गया है।