धर्म और सम्प्रदाय में क्या अन्तर है?

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धर्म और सम्प्रदाय में अन्तर-

धर्म और सम्प्रदाय में निम्न लिखित अन्तर है

धर्म- अलौकिक शक्ति में विश्वास एवं आस्था पर आधारित एक सामाजिक घटना को धर्म कहा जाता है। सामाजिक नियंत्रण का महत्वपूर्ण साधन भी धर्म को माना जाता है। यह मानव समाज में आदर्शों, मूल्यों नैतिकता एवं पवित्रता व कर्तव्य भावना की स्थापना करता है तथा इसके उल्लंघन पर अलौकिक शक्ति द्वारा दण्डित करने की बात करता है। जो मानव में भय उत्पन्न करता है तथा उसे गलत कार्यों को करने से भी रोकता है। यही वजह है कि धर्म सामाजिक संगठन एवं व्यवस्था को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। डेविस के अनुसार, “धर्म मानव समाज का सर्वव्यापी, स्थायी एवं शाश्वत तत्व है, जिसको समझे बिना समाज को जानना मुमकिन नहीं है।

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सम्प्रदाय – सम्प्रदाय के अंतर्गत मेरा सम्प्रदाय, मेरा पंथ व मेरा मत ही सर्वोत्तम है। उसी का मत सर्वोपरि होना चाहिए। मेरे ही सम्प्रदाय की तूती बोलनी चाहिए अथवा वे रहें तो मेरे अधीन होकर ही रहें। निरन्तर मेरे आदर्शों का पालन करें। मेरी मर्जी पर आश्रित रहें आदि की प्रधानता पाई जाती है। इस प्रकार कहा जा सकता है धार्मिक सम्प्रदाय से भिन्न सम्प्रदायों के प्रति उपेक्षा, घृणा, विरोध, दया-दृष्टि, उदासीनता एवं आशंका की भावना से यह ग्रसित रहता है। इनका वास्तविक भय या आशंका यह है कि अन्य सम्प्रदाय हमारे अपने सम्प्रदाय एवं संस्कृति को नष्ट कर देने या हमारे जान-माल को क्षति पहुँचाने हेतु कटिबद्ध है। इसी कारण विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों में तनाव एवं संघर्ष होता है।

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