वैदिक देवता का वर्गीकरण – वैदिक आर्यों में ‘देव’ शब्द की परिभाषा व्यापक थी जिसके अन्तर्गत परमपुरुष से लेकर प्रकृति की विभिन्न शक्तियाँ, पूर्वज, आचार्य, माता-पिता, अतिथि की गणना की जाती थी। आर्यों के देवता प्राकृतिक शक्तियों के प्रतिनिधि थे, जिनमें मानवीय गुणों को आर्यों ने आरोपित किया हुआ था। वैदिक काल में तीन प्रकार के देवताओ के स्वरूप का प्रतिपादन हुआ-
1.द्यु- स्थनीय देवता-
- द्यौ आकाश का मूर्तरूप देवता था।
- वरुण देवता द्यौ का ही एक रूप था, जिसे विश्व की समस्त सत्ताओं, मनुष्यों तथा देवताओं का राजा माना जाता था।
- सूर्य द्यु स्थानीय देवताओं में प्रमुख था।
- आश्विन, जिसका आविर्भाव ऊषा और सूर्य के उदय के मध्यवर्ती काल में होता है।
- मित्र देवता अर्थात उदित होता हुआ सूर्य ।
- सविता, जो सूर्य के पूर्णतः उदित होने की स्थिति है।
- पूषन देवता, जो सूर्य को पोषण शक्ति का प्रतीक है।
कनिष्क का जीवन एवं उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
2. अन्तरिक्ष स्थानीय देवता
इसमें इन्द्र सर्वप्रथम देवता था। इसके अतिरिक्त रूद्र, मातरिश्वा, अज, मरू, पर्जन्या, एकपाद, वायुवान तथा शाप भी अन्य देवता थे।
3. पृथ्वी स्थानीय देवता
इनमें अग्नि प्रमुख देवता था। बृहस्पति, सोम, नदियाँ, पृथ्वी मन्यु, श्रृद्धा, अनुभूति निऋति, कार्य, स्तम्भ, भी अन्य देवता होते थे।